कक्षा 8 » दीवानों की हस्ती (कविता)

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दीवानों की हस्ती
(कविता का अर्थ)

हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।

शब्दार्थ : हस्ती – अस्तित्व। आलम – दुनिया, माहौल।

भावार्थ : कवि स्वयं को मस्तमौला स्वभाव का बताते हुए कहता है कि हम दीवाने, मस्ती में रहने वाले लोगों का क्या अस्तित्व है। हम आज यहाँ हैं तो कल कहीं ओर होंगे। हमारा कोई ठिकाना नहीं है। हम जहाँ जाते हैं वहीं मस्ती का माहौल हमारे साथ जाता है अर्थात हम हर जगह खुशियाँ फैलते हैं।

आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?

शब्दार्थ : उल्लास – खुशी, हर्ष।

भावार्थ : इन पंक्तियों में कवि ने कहा है कि दीवाने-मस्तमौला लोग जहाँ भी जाते हैं वहाँ का माहौल ख़ुशियों से भर जाता है। फिर जब वो उस जगह को छोड़कर जाने लगते हैं तो सब काफी दुखी हो जाते हैं। लोगों को उनके जाने का पता तक नहीं चलता। वो तो मन में ही अफ़सोस करते रह जाते हैं। उन्हें पता ही नहीं चलता कि कवि कब आए और कब चले गए।

इस प्रकार कवि कह रहा है कि एक जगह टिककर रहना उसका  स्वभाव नहीं है उसे घूमते रहना पसंद है।

किस ओर चले? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,

शब्दार्थ : जग – संसार

भावार्थ : कवि कहता है कि मुझसे मत पूछो में कहाँ जा रहा हूँ। मुझे तो बस चलते रहना है इसीलिए मैं चले जा रहा हूँ। मैनें इस दुनिया से कुछ ज्ञान प्राप्त किया है। अब मैं उस ज्ञान को बाकी लोगों को देना चाहता हूँ। इसलिए मुझे लगातार चलते रहना होगा।

दो बात कही, दो बात सुनी_
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।

शब्दार्थ : छककर – मन भर कर।

भावार्थ : कविता की इन पंक्तियों में कवि कह रहा है कि वो जहाँ भी जाता है, लोगों से घुल-मिल जाता है। उनके सुख-दुख बाँटता है। कवि के लिए सुख और दुख दोनों भावनाएँ एक समान हैं। इसलिए कवि दोनों परिस्थितियों को शांत रहकर सहन कर लेता है।

हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।

शब्दार्थ : स्वच्छंद – अपनी इच्छा के अनुसार चलने वाला। उर – हृदय।

भावार्थ : इन पंक्तियों में कवि कहता है कि इस स्वार्थी दुनिया में लोग भिखमंगों की तरह सबसे कुछ ना कुछ माँगते ही रहते हैं। मगर कवि स्वार्थी नहीं हैं। इसलिए उसने स्वार्थी दुनिया पर बिना किसी शर्त के अपना अनमोल प्यार लुटाया है।

कवि को जीवन में काफी बार असफलता स्वाद चखना पड़ा है लेकिन इसका दोष उसने कभी किसी दूसरे पर नहीं डाला। इस तरह कवि ने स्वार्थी दुनिया को भरपूर प्यार दिया और अपनी हार का भार हमेशा स्वयं ही उठाया है।

अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें रुकनेवाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले।

शब्दार्थ : 

भावार्थ : इन पंक्तियों में कवि कहता है कि अब उसके लिए इस दुनिया में कोई भी अपना या पराया नहीं है। जो लोग एक मंज़िल पाकर वहीं ठहर जाना चाहते हैं उन्हें कवि ने सुखी और आबाद रहने का आशीर्वाद दिया है। मगर कवि ख़ुद एक जगह बाँध कर नहीं रहना चाहता। उसने अपने सभी सांसारिक बंधन तोड़ दिये हैं और अब वो अपने चुने हुए मार्ग पर आगे बढ़ता जा रहा है।

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दीवानों की हस्ती
(प्रश्न-उत्तर)

कविता से

प्रश्न – कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’
क्यों कहा है?

उत्तर – कवि के आने से लोगों में ख़ुशी छा जाती है। इससे कवि भी प्रसन्न होता है। लेकिन जब कवि किसी जगह को छोड़कर जाने लगता है तो लोग दुखी हो जाते हैं। ऐसे समय में सबकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ कहा है।

प्रश्न – भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटानेवाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?

उत्तर – कवि के अनुसार ये स्वार्थी दुनिया इतनी लालची है कि इसने कभी निस्वार्थ भाव से कुछ देना कभी सीखा ही नहीं। कवि ने जिंदगीभर लोगों को सच्चा प्यार दिया। दुनिया ने उसे बदले में प्यार नहीं किया। इसी वजह से कवि निराश है उसे लगता है कि वह लोगों के मन में प्रेम और खुशियों के बीज बोने में असफल ही रह गया।

प्रश्न – कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?

उत्तर – इस कविता में मुझे कवि के जीवन जीने का नज़रिया सबसे अच्छा लगा। वो दुनिया की मोहमाया से दूरए सबको प्यार लुटाने में लगा है। साथ हीए कवि जीवन में आने वाले सुख-दुख का एक समान ढंग से सामना करता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में सबसे ज्यादा सुखी और संतुष्ट रहता है।

कविता से आगे

प्रश्न – जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

अनुमान और कल्पना

प्रश्न – एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि ‘हम दीवानों की क्या हस्ती, हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले।’ दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि ‘मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।’ यह मस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना मस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

भाषा की बात

प्रश्न – संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’ ‘जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों
का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करनेवाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।

उत्तर – छात्र स्वयं करें।

 

टेस्ट/क्विज

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