कक्षा 9 » उपभोक्तावाद की संस्कृति (श्यामचरण दूबे)

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उपभोक्तावाद की संस्कृति
(पाठ का सार)

शब्दार्थ :- वर्चस्व – प्रधानता। विज्ञापित – प्रचारित/सूचित। अनंत – जिसका अंत न हो। सौंदर्य प्रसाधन – सुंदरता बढ़ाने वाली सामग्री। परिधान – वस्त्र। अस्मिता – अस्तित्व, पहचान। अवमूल्यन – मूल्य गिरा देना। क्षरण – नाश। उपनिवेश – वह विजित देश जिसमें विजेता राष्ट्र के लोग आकर बस गए हों। प्रतिमान – मानदंड। प्रतिस्पर्धा – होड़। छद्म – बनावटी। दिग्भ्रमित – रास्ते से भटकना, दिशाहीन। वशीकरण – वश में करना। अपव्यय – पि़्ाफ़जूलखर्ची। तात्कालिक – उसी समय का। परमार्थ – दूसरों की भलाई।

सांस्कृतिक अस्मिता – अस्मिता से तात्पर्य है पहचान। हम भारतीयों की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है। यह सांस्कृतिक पहचान भारत की विभिन्न संस्कृतियों के मेल-जोल से बनी है। इस मिली-जुली सांस्कृतिक पहचान को ही हम सांस्कृतिक अस्मिता कहते हैं।

सांस्कृतिक उपनिवेश – विजेता देश जिन देशों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करता है, वे देश उसके उपनिवेश कहलाते हैं। सामान्यतया विजेता देश की संस्कृति विजित देशों पर लादी जाती है, दूसरी तरफ़ हीनता ग्रंथिवश विजित देश विजेता देश की संस्कृति को अपनाने भी लगते हैं। लंबे समय तक
विजेता देश की संस्कृति को अपनाए रखना सांस्कृतिक उपनिवेश बनना है।

बौद्धिक दासता – अन्य को श्रेष्ठ समझकर उसकी बौद्धिकता के प्रति बिना आलोचनात्मक दृष्टि अपनाए उसे स्वीकार कर लेना बौद्धिक दासता है।

छद्म आधुनिकता – आधुनिकता का सरोकार विचार और व्यवहार दोनों से है। तर्कशील, वैज्ञानिक और आलोचनात्मक दृष्टि के साथ नवीनता का स्वीकार आधुनिकता है। जब हम आधुनिकता को वैचारिक आग्रह के साथ स्वीकार न कर उसे फ़ैशन के रूप में अपना लेते हैं तो वह छद्म आधुनिकता
कहलाती है।

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उपभोक्तावाद की संस्कृति 
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न :-  लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर :- लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ का अभिप्राय मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म आराम से है। परंतु आजकल लोग केवल उपभोग-सुख को ‘सुख’ कहने लगे हैं।

प्रश्न :- आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

उत्तर :- उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण व्यक्ति उपभोग को ही सुख समझने लगा है। लोग अधिकाधिक वस्तुओं का उपभोग कर लेना चाहते हैं। लोग बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदकर दिखावा करने लगे हैं। इस संस्कृति से मानवीय संबंध कमजोर हो रहे हैं। अमीर-गरीब के बीच दूरी बढ़ने से समाज में अशांति बढ़ रही है।

प्रश्न :- लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?

उत्तर :- उपभोक्तावादी संस्कृति भोग को बढ़ावा देती है और नैतिकता तथा मर्यादा को समाप्त करती है। गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें अर्थात् अपनी संस्कृति को संभाल कर रखें। लेकिन आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। इसलिए लेखक ने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।

प्रश्न :- आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

उत्तर :- उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण लोग उपभोग का ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। इससे वे वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है।

(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।

उत्तर :- लोग समाज में प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के उपाय अपनाते हैं। उनमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैं। पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार  हेतु अधिक-से-अधिक मूल्य देखकर सुंदर जगह सुनिश्चित करने लगे हैं। उनका ऐसा करना नितांत हास्यास्पद है।

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रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न :- कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी0वी0 पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों?

उत्तर :- टी.वी. पर आने वाले विज्ञापन बहुत प्रभावशाली होते हैं और हमारे मन में वस्तुओं के प्रति भ्रामक आकर्षण जगा देते हैं। वे हमारी इंद्रियों को प्रभावित करते हैं। इसलिए अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें लालायित कर देती हैं।

प्रश्न :- आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।

उत्तर :- हमारे अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए न कि विज्ञापन। कई बार लोग विज्ञापन देखकर ही अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लेते हैं, जिससे उनको नुकसान उठाना पड़ता है। विज्ञापन वस्तुओं की विविधता, मूल्य, उपलब्धता आदि का ज्ञान तो कराते हैं परंतु हमें उनकी गुणवत्ता का ज्ञान अपने विवेक से करके ही खरीदना चाहिए।

प्रश्न :- पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर :- यह बात बिल्कुल सत्य है कि वर्तमान में  दिखावे की संस्कृति के कारण लोग उन्हीं चीजों को अपना रहे हैं, जो दुनिया की नजरों में अच्छी हैं। सारे सौंदय-प्रसाधन मनुष्यों को सुंदर दिखाने के ही प्रयास करते हैं। पहले यह दिखावा औरतों में होता था, आजकल पुरुष भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं।

प्रश्न :- आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही
है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर :- उपभोक्ता संस्कृति के प्रभाव से हमारे रीति-रिवाज और त्योहार अछूते नहीं हैं। हमारे रीति-रिवाज और त्योहार भाईचारा बढ़ाने वाले, वर्ग भेद मिटाने वाले हुआ करते थे, परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से इनमें बदलाव आ गया है। त्योहार अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। उदाहरण के लिए आज रक्षाबंधन के पावन अवसर पर भाई द्वारा बहन को दिए गए उपहार से उनके प्रेम का मूल्य आँका जाता है।

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भाषा-अध्ययन

प्रश्न :- धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में ‘बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है-धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।

(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पाँच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।

उत्तर :-

  1. धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। (धीरे-धीरे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
  2. आपको लुभाने की जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है। (‘निरंतर’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
  3. सामंती संस्कृति के तत्त्वे भारत में पहले भी रहे हैं। (‘पहले’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
  4. अमरीका में आज जो हो रहा है। (‘आज’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
  5. कल वह भारत में भी आ सकता है। (‘कल’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)

(ख) धीरे-धीरे, जोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज्यादा, यहाँ, उधर, बाहर-इन क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।

उत्तर :-

  • धीरे-धीरे – कोरोना की बीमारी धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल चुकी है।
  • जोर-से – अचानक यहाँ जोर-से बम फटा।
  • लगातार – वह कल से लगातार गा रहा है।
  • हमेशा – हमेशा सत्य का पालन करना चाहिए।
  • आजकल – आजकल समाज बदलता जा रहा है।
  • कम – भारत में मोरों की संख्या कम होती जा रही है।
  • ज्यादा – उत्तर प्रदेश गन्ने की फसल ज्यादा है।
  • यहाँ – कल तुम यहाँ मत आना।
  • उधर – मैंने जानबूझकर उधर देखा।
  • बाहर – तुम बाहर चले जाओ।

(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-
वाक्य क्रिया-विशेषण विशेषण

(1) कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।

उत्तर :-

निरंतर – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण

(2) पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।

उत्तर :-

पके – विशेषण

(3) रसोईघर से आती पुलाव की हलकी खुशबू से मुझे जोरों की भूख लग आई।

उत्तर :-

हलकी – विशेषण

जोरों  की – रीतिवाचक क्रिया-विशेषण

(4) उतना ही खाओ जितनी भूख है।

उत्तर :-

उतना – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण

जितनी – परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण

(5) विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है।

उत्तर :-

आजकल – कालवाचक क्रिया-विशेषण

बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न :- ‘दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों का बच्चों पर बढ़ता प्रभाव’ विषय पर अध्यापक और विद्यार्थी के बीच हुए वार्तालाप को संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

प्रश्न :- इस पाठ के माध्यम से आपने उपभोक्ता संस्कृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। अब आप अपने अध्यापक की सहायता से सामंती संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करें और नीचे दिए गए विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में कक्षा में अपने विचार व्यक्त करें। क्या उपभोक्ता संस्कृति सामंती संस्कृति का ही विकसित रूप है

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

प्रश्न :- आप प्रतिदिन टी-वी- पर ढेरों विज्ञापन देखते-सुनते हैं और इनमें से कुछ आपकी जबान पर चढ़ जाते हैं। आप अपनी पसंद की किन्हीं दो वस्तुओं पर विज्ञापन तैयार कीजिए।

उत्तर :- छात्र स्वयं करें।

 

टेस्ट/क्विज

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