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कैदी और कोकिला (कविता का अर्थ)
ब्रितानी उपनिवेशवाद के शोषण तंत्र का बारीक विश्लेषण करती कैदी और कोकिला कविता बहुत लोकप्रिय रही है। यह कविता भारतीय स्वाधीनता सेनानियों के साथ जेल में किए गए दुर्व्यवहारों और यातनाओं का मार्मिक साक्ष्य प्रस्तुत करती है। कवि जेल में एकाकी और उदास है। कोकिल से अपने मन का दुख, असंतोष और ब्रितानी शासन के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए वह कहता है कि यह समय मधुर गीत गाने का नहीं बल्कि मुक्ति का गीत सुनाने का है। कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है इसीलिए
अर्द्धरात्रि में चीख उठी है।
क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
संदेशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली?
शब्दार्थ :- बटमार – रास्ते में यात्रियों को लूट लेने वाला। हिमकर – चंद्रमा
भावार्थ :- कवि माखनलाल चतुर्वेदी कोयल से पूछते हैं कि तुम क्या गा रही हो? गाते-गाते बीच में चुप क्यों हो जाती हो? हे कोयल! कुछ तो बोलो। मुझे कुछ बताओ? तुम मेरे लिए किसका संदेश लेकर आई हो? कुछ तो बोलो? कवि कहता है कि ऐसे समय में जब मुझे ऊँची काली दीवारों की कालकोठरी में रखा गया, जहाँ डाकू, चोरों और लुटेरों के बीच में मुझे भर पेट खाना भी नहीं देते और मरने भी नहीं देते। जहाँ में तड़प-तड़प रह जाता हूँ। मेरे जीवन पर शासन का कड़ा पहरा लगा हुआ है, ये शासन का काला साया है या रात्री का गहन अंधकार है। आसमान की ओर देखता हूँ तो चंद्रमा भी दिखाई नहीं देता और रात्री भी काली दिखाई दे रही है। ऐसे समय में तू क्यों जाग रही है? कोयल कुछ बोलो तो।
क्यों हूक पड़ी?
वेदना बोझ वाली-सी_
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ :- हूक – करुण आवाज।
भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि कोयल की आवाज में उपस्थित दर्द को महसूस कर रहा है। उसे लगता है कि कोयल को भी जेल में बंद भारतीयों की वेदनाओं का अहसास है। इसीलिए उसके कंठ से मीठी एवं मधुर ध्वनि की जगह वेदना के स्वर सुनाई पड़ रहे है। जिसमें कोयल के दर्द की हूक शामिल है। कवि के अनुसार कोयल अपनी वेदना सुनाना चाहती है।
इसीलिए कवि कोयल से पूछ रहा है- कोयल! तुम बताओ तो मुझे कि तुम्हारा क्या लुट गया है जो तुम्हारे गले से वेदना की ऐसी हूक सुनाई दे रही है। कोयल तो अपनी सबसे मीठी एवं सुरीली आवाज के लिए सभी जगह विख्यात है। फिर क्यों तुम्हारी आवाज में करुण वेदना महसूस हो रही है, कोयल कुछ तो बताओ?
क्या हुई बावली?
अर्द्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ :-
भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि फिर से कोयल से हूकने का कारण पूछता है और कोयल से कहता है कि क्या तू पागल हो गई है जो आधी रात को चीख रही है या तुझे किसी जंगल में लगी आग की भयंकर ज्वालाएँ दीख रही है, जिनसे डरकर तू चीख रही है? कोयल कुछ तो बोलो?
क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ?-जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ :-
भावार्थ :-
इन पंक्तियों में कवि कोयल से कहता है कि क्या तुम मेरे हाथों में पड़ी इन लोहे की जंजीरे को नहीं देख पा रही हो। ये मेरे हाथों में बंधी जंजीरें नहीं हैं, ये तो ब्रिटिश राज के द्वारा मुझे पहनाये गए गहने हैं अर्थात स्वतंत्रता सेनानियों के लिए लोहे की जंजीरें किसी गहने से कम नही थी।
आगे कवि कहता है कि कोल्हू के चलने से जो आवाज आती है, वो हमारी जिंदगी का गीत बन गया है। बड़े दृ बड़े पत्थरों को तोड़ कर छोटी-छोटी गिट्टियों बनाती हैं। उन गिट्टियों पर हमारे अँगुलियों के निशान कुछ इस तरह से पड़ गए हैं मानों जैसे हमने इन गिट्टियों पर स्वतन्त्रता के गीत उकेर दिये हो। हम अपने पेट पर जुआ बांधकर मोट (चमड़े का एक थैला, जिससे कुँए में डाल कर पानी निकाला जाता हैं) से पानी निकाल कर ब्रिटिश राज की अकड़ का कुआं धीरे-धीरे खाली कर रहे हैं। यानि वो भले ही हम पर कितना अत्याचार क्यों न कर लें लेकिन हमें तोड़ नहीं सकते हैं और न ही हमारे अंदर की देशभक्ति की भावना को कम कर सकते हैं । धीरे-धीरे ही सही लेकिन एक दिन हम इस अंग्रेजी शाशन को उखाड़ फेंकेंगे।
हे सखी ! शायद तुम दिन में इसलिए नहीं गाती हो क्योंकि तुम्हें लगता हैं कि कहीं तुम्हारी वेदना भरी चीख सुनकर कैदियों का दिल करुणा से न भर जाएँ या हम कमजोर न पड़ जाएँ। इसीलिए तुम आधी रात में हमें ढांढस बंधाने आयी हो।
कवि कोयल से पूछते हैं कि हे सखी ! इस सन्नाटे वाली काली रात के अंधकार को भेदकर तुम क्यों रो रही हो? कहीं तुम इन सोए हुए कैदियों को जगा कर इनके मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह के बीज़ तो नहीं बो रही हो है? कोयल कुछ तो बोलो?
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह- शृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ :-
भावार्थ :-
यहाँ पर कवि कोयल के कालेपन की तुलना जेल की अन्य चीजों से करते हुए कह रहा है कि जिस तरह तुम काली हो उसी तरह ये रात, अंग्रेजी शासन के कामकाज, उनकी सोच व कल्पना भी काली हैं। मैं जिस काल कोठरी में बंद हूँ वह भी काली हैं। जेल में मुझे मिले टोपी, कंबल और लोहे की जंजीर भी काली ही है।
हे सखी ! इस अँधेरी काली रात में जेल के पहरेदार की काली सर्पनी की फुंकार जैसी हुंकार (आवाज) मुझे गाली जैसी ही लग रही हैं। यानि बार-बार पहरेदार की जागते रहो की आवाज उन्हें याद दिलाती कि वो कैद में हैं। कवि ने यहाँ पर काले रंग को अपमान, निराशा व दुःख का प्रतीक माना है।
कवि कोयल से कहता है कि सखी ! तुम मदहोशी में इस काले संकट रूपी सागर (जेल) में मरने को क्यों उतावली हो? कोयल तुम तो बहुत सुरीला गाती हो लेकिन तुम अपने उन चमकीले गीतों को इस संकट रूपी सागर में क्यों तैरा रही हो यानि तुम यहाँ क्यों अपने सुरीले गीत गा रही हो?
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
शब्दार्थ :-
भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि कोयल से कहता है कि तेरी और मेरी परिस्थितियों में बहुत अंतर है। मैं गुलाम हूँ और तू आजादी हैं। तुम हरे-भरे पेड़ों की एक डाली से दूसरी डाली घूम फिर सकती हो और मैं इस काल कोठरी में बंद हूँ। तुम्हारे लिए तो पूरा आकाश खुला है। तुम पूरे आकाश में कहीं भी उड़ सकती हो और मेरे पास तो सिर्फ एक दस फीट की छोटी सी एक अंधेरी कालकोठरी है जहाँ मैं अपना जीवन बिता रहा हूँ। जब तू गीत गाती है तो लोग वाह-वाह करते हैं लेकिन मेरा रोना भी गुनाह माना जाता है। तेरे-मेरे जीवन में इतनी विषमताएँ होने के बावजूद भी, तू यहां आकर रणभेरी (युद्ध की ललकार) का विगुल क्यों बजा रही हो?
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ :-
भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि कोयल से कहता है कि हे सखी ! तुम्हारी इस करुण पुकार पर मैं अपनी इस रचना में और क्या-क्या लिखूँ कि लोगों में अंदर स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए जोश व देशभक्ति की भावना पैदा हो सके और वो इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लें।
अंत में कवि कहता है कि मोहन (मोहनदास करमचंद्र गांधी) ने जो भारत माता को स्वतंत्र करने का व्रत लिया हैं। उस व्रत के लिए मैं अपनी कविताओं से किसके प्राणों में अमृत भर दूँ यानि मैं अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों के अंदर ऐसा जोश भर दूँ कि वे इस आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हो जाएँ।
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कैदी और कोकिला (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – कोयल की कूक सुनकर कवि की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर – कवि जेल में एकाकी और उदास है। कोकिल से अपने मन का दुख, असंतोष और ब्रितानी शासन के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करते हुए वह कहता है कि यह समय मधुर गीत गाने का नहीं बल्कि मुक्ति का गीत सुनाने का है। कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को एक कारागार के रूप में देखने लगी है इसीलिए अर्द्धरात्रि में चीख उठी है।
प्रश्न – कवि ने कोकिल के बोलने के किन कारणों की संभावना बताई?
उत्तर – कवि ने कोकिल के बोलने के निम्नलिखित कारणों की संभावना बताई –
- किसी का संदेशा लेकर आयी है।
- कोयल कैदियों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त कर रही है।
- कोयल बावली हो गई है।
- कोयल को जंगल में आग की ज्वालाएँ दिखाई दी हैं।
- ब्रिटिश शासन के प्रति विद्रोह की चेतना जगाना चाहती है।
प्रश्न – किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है और क्यों?
उत्तर – ब्रिटिश शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है क्योंकि पराधीन भारत में अंग्रेजी सत्ता ने भारत के लोगों पर तरह-तरह के अत्याचार किये। लोगों को जेलों में भेजा गया। उन पर झूठे मुकदमे चलाए। सजाए मौत, काला पानी की सजा दी गयी। भारत की संपदा इंग्लैंड भेजी गई। भारत की एकता-अखंडता और सांस्कृतिक धरोहर को नुकसान पहुँचाया गया।
प्रश्न – कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर – कविता के आधार पर कह सकते हैं कि पराधीन भारत में जेलों में बंद कैदियों को निम्नलिखित यंत्रनाएँ दी जाती थीं-
- ब्रिटिश शासन काल में भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था।
- खाने को भरपेट भोजन भी नहीं दिया जाता था।
- दिन भर कोल्हू चलाने ए पत्थर तोड़ने या मोट के द्वारा कुँए से पानी निकालने जैसे कार्य कराए जाते थे।
- उनके साथ गाली-गलौज व अभद्र व्यवहार किया जाता था।
- उनको ऊंची-ऊंची दीवारों के बीच बनी बहुत छोटी व अंधेरी कालकोठरियों में जंजीरों से बांधकर रखा जाता था।
- उनको अनेक तरह की यातनाएं दी जाती थी।
प्रश्न – भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो!
उत्तर – इसीलिए कवि कोयल से पूछ रहा है- कोयल! तुम बताओ तो मुझे कि तुम्हारा क्या लुट गया है जो तुम्हारे गले से वेदना की ऐसी हूक सुनाई दे रही है। कोयल तो अपनी सबसे मीठी एवं सुरीली आवाज के लिए सभी जगह विख्यात है। फिर क्यों तुम्हारी आवाज में करुण वेदना महसूस हो रही है, कोयल कुछ तो बताओ?
(ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कँूआ।
उत्तर – कवि कहता है कि हम अपने पेट पर जुआ बाँधकर मोट (चमड़े का एक थैला, जिससे कुँए में डाल कर पानी निकाला जाता हैं) से पानी निकाल कर ब्रिटिश राज की अकड़ का कुआं धीरे-धीरे खाली कर रहे हैं। यानि वो भले ही हम पर कितना अत्याचार क्यों न कर लें लेकिन हमें तोड़ नहीं सकते हैं और न ही हमारे अंदर की देशभक्ति की भावना को कम कर सकते हैं । धीरे-धीरे ही सही लेकिन एक दिन हम इस अंग्रेजी शाशन को उखाड़ फेंकेंगे।
प्रश्न – अद्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि को क्या अंदेशा है?
उत्तर – कवि को अंदेशा है कि शायद कोयल दिन में इसलिए नहीं गाती हो क्योंकि उसकी वेदना भरी चीख सुनकर कैदियों का दिल करुणा से न भर जाएँ या वे कमजोर न पड़ जाएँ। इसीलिए वह आधी रात में हमें ढांढस बंधाने आयी हो।
कवि को ये अंदेशा भी है कि इस सन्नाटे वाली काली रात के अंधकार को भेदकर वह इन सोए हुए कैदियों को जगा कर इनके मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह के बीज़ तो नहीं बो रही है।
प्रश्न – कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है?
उत्तर – कवि और कोयल की परिस्थितियों में बहुत अंतर है। इसलिए कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है। उसे लगता है कि मैं गुलाम हूँ और कोयल आजाद हैं। वह हरे-भरे पेड़ों की एक डाली से दूसरी डाली घूम फिर सकती है और कवि इस काल कोठरी में बंद है। कोयल के लिए तो पूरा आकाश खुला है। वह पूरे आकाश में कहीं भी उड़ सकती है और कवि के पास तो सिर्फ एक दस फीट की छोटी सी एक अंधेरी कालकोठरी है जहाँ वह अपना जीवन बिता रहा है। जब कोयल गीत गाती है तो लोग वाह-वाह करते हैं लेकिन कवि का रोना भी गुनाह माना जाता है। दोनों के जीवन में इतनी विषमताएँ होने के बावजूद भी, कोयल जेल में आकर रणभेरी (युद्ध की ललकार) का विगुल क्यों बजा रही है?
प्रश्न – कवि के स्मृति-पटल पर कोयल के गीतों की कौन सी मधुर स्मृतियाँ अंकित हैं, जिन्हें वह अब नष्ट करने पर तुली है?
उत्तर – कोयल सुरीले कंठ से गाती है। उसके मधुर गीतों को सुनकर लोग मग्न होते हैं। कवि के स्मृति पटल पर भी कोयल के मीठे व सुरीले स्वर में गाए गीत अंकित है। लेकिन यहाँ पर कोयल बड़े ही कर्कश स्वर में चीख रही है जो कवि को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है।
प्रश्न – हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है?
उत्तर – कवि को स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण हथकड़ियाँ पहनाकर जेल में डाल दिया गया। कवि उन हथकड़ियों को मुसीबत के स्थान पर गहना समझकर खुशी-खुशी पहनना स्वीकार करते हैं। कवि मानता है कि इन्हीं परेशानियों से गुजर कर एक दिन भारत आजादी का सूरज देखेगा और उस आजादी को पाने में कवि का भी योगदान होगा। कवि इस बात के लिए गर्व का अनुभव करता है।
प्रश्न – ‘काली तू —- ऐ आली!’-इन पंक्तियों में ‘काली’ शब्द की आवृत्ति से उत्पन्न चमत्कार का विवेचन कीजिए।
उत्तर – इस पूरे काव्य खंड में ‘काली’ शब्द का प्रयोग कई बार किया गया है लेकिन हर बार इसका अर्थ अलग-अलग है। काली शब्द का प्रयोग कोयल के रंग, अंग्रेजों के अन्यायपूर्ण और अत्याचारी शासन, कल्पना व सपनों का धूमिल हो जाना, काल कोठरी के अंधकार, टोपी-कंबल व हथकड़ियों के रंग के लिए किया गया है। ‘काली’ शब्द कवि के अंदर के निराशा और वेदना के भाव को भी दर्शाता है।
प्रश्न – काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
(क) किस दावानल की ज्वालाएँ हैं दीखीं?
उत्तर –
भाव-सौंदर्य : – इन पंक्तियों में कवि कोयल से हूकने का कारण पूछता है और कोयल से कहता है कि क्या तुझे किसी जंगल में लगी आग की भयंकर ज्वालाएँ दीख रही है, जिनसे डरकर तू चीख रही है? कोयल कुछ तो बोलो?
शिल्प-सौंदर्य :-
- खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है।
- प्रश्नात्मक शैली है।
(ख) तेरे गीत कहावें वाह, रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी, बजा रही तिस पर रणभेरी!
उत्तर –
भाव-सौंदर्य : – जब कोयल गीत गाती है तो लोग वाह-वाह करते हैं लेकिन कवि का रोना भी गुनाह माना जाता है। दोनों के जीवन में इतनी विषमताएँ होने के बावजूद भी, कोयल जेल में आकर रणभेरी (युद्ध की ललकार) का विगुल क्यों बजा रही है?
शिल्प-सौंदर्य :-
- खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है।
- प्रश्नात्मक शैली है।
प्रश्न – कवि जेल के आसपास अन्य पक्षियों का चहकना भी सुनता होगा। लेकिन उसने कोकिला से ही बात क्यों की है?
उत्तर- कोयल हमेशा दिन में अपने मधुर कंठ से सुरीला गीत गाती है। लेकिन वह अपना मधुर गीत रात में नहीं गाती हैं। इसीलिए आधी रात के वक्त कोयल की वेदना भरी चीख सुनकर कवि के मन में कई आशंकाएँ जन्म लेती हैं और वह उससे बातें करने लग जाता है।
प्रश्न – आपके विचार से स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों के साथ एक-सा व्यवहार क्यों किया जाता होगा?
उत्तर- ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने भारतीयों के लिए अपने हिसाब से ही नियम-कानून तय किए थे। उनकी नजर में स्वतंत्रता सेनानियों और अपराधियों में कोई खास फर्क नहीं था। वो दोनों को ही अपना अपराधी मानते थे। वो भारत में अपनी सत्ता की जड़ों को मजबूती से जमाये रखना चाहते थे। इसीलिए वो किसी भी विद्रोह को दबाने का पूरा प्रयास करते थे और विद्रोह करने वालों पर तरह-तरह के अत्याचार करते थे ताकि उनका मनोबल तोड़ा जा सके और आगे से उनके खिलाफ कोई विद्रोह करने की हिम्मत ना कर पाए।
क्विज/टेस्ट
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