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प्रेमचंद के फटे जूते (पाठ का सार)
शब्दार्थ :
उपहास – खिल्ली उड़ाना, मजाक उड़ाने वाली हँसी। आग्रह – पुनः पुनः निवेदन करना। क्लेश – दख्ु श। तगादा – तकाजा। पन्हैया – देशी जूतियाँ। बिसरना – भूल जाना। नेम – नियम। धरम – कर्तव्य। बंद – फीता। बेतरतीब – अव्यवस्थित। ठाठ – शान। बरकाकर – बचाकर।
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ शीर्षक निबंध में परसाई जी ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की अंतर्भेदी सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज की दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है।
लेखक प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर आश्चर्यचकित होकर कहता है कि फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी? जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है। फिर भी चेहरे पर बड़ी बेपरवाही और विश्वास है। यह केवल मुस्कान नहीं है इसमें उपहास है और व्यंग्य है। लेखक आगे कहता है कि इससे अच्छा होता कि तुम फोटो ही नहीं खिंचाते। तुम फोटो का महत्व नहीं समझते। लोग तो फोटो खिचाने के लिए जूते क्या कपड़े और बीवी तक माँग लेते हैं। एक टोपी तक नहीं पहनी। टोपी तो आठ आने में मिल जाती है।
तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक और न जाने क्या-क्या कहलाते थे। मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। फिर लेखक अपनी बात करता है कि मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। मगर अंगुली बाहर नहीं निकलती पर अंगूठे के नीचे तला फट गया है जिससे अंगूठा रगड़ खाकर छील जाता है। लेकिन जूता फटा होने के बावज़ूद तुम्हारा पाँव सुरक्षित है। तुम पर्दे का महत्व नहीं समझते और हम पर्दे पर क़ुर्बान हो रहे हैं। फिर भी तुम मुस्करा रहे हो। यह ऱाज़ समझ में नहीं आया। लगता है तुमने किसी सख्त चीज़ से ठोकर मारकर अपना जूता फाड़ लिया। तुम उसे बचकर उसके बगल से भी निकल सकते थे। पर तुम समझौता नहीं कर सके। मै समझता हूँ, तुम्हारी अंगुली का इशारा भी समझता हूँ और यह व्यंग्य मुस्कान भी समझता हूँ।
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प्रेमचंद के फटे जूते
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?
उत्तर – प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर आती हैं-
- प्रेमचंद को समझौता करना मंजूर न था।
- प्रेमचंद सीधा-सादा जीवन जीते थे।
- प्रेमचंद उच्च विचारों के धनी थे।
- प्रेमचंद सामाजिक बुराइयों से हमेशा दूर रहे।
- प्रेमचंद स्वाभिमानी व्यक्ति थे।
- प्रेमचंद प्रत्येक परिस्थिति का डटकर मुकाबला करते थे।
प्रश्न – सही कथन के सामने (!) का निशान लगाइए-
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली
बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर – लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
प्रश्न – नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक
जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
उत्तर – यहाँ जूता स्मृद्धशाली लोगों और प्रभुत्व का तथा टोपी गुणी लोगों और सम्मान का प्रतीक हैं। विडंबना है कि जिसका स्थान पाँव में है उसे अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता रहा है। जिसका स्थान ऊँचा है, उसे कम सम्मान मिलता रहा है।
आजकल तो जूतों का अर्थात् धनवानों का मान-सम्मान और भी अधिक बढ़ गया है। एक धनवान पर पच्चीसों गुणी लोग न्योछावर होते हैं अर्थात गुणी लोग भी धनवानों की जी-हुजूरी करते नजर आते हैं।
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
उत्तर – प्रेमचंद अंदर से जैसे थे, वैसे ही वो बाहर दिखते थे। उन्होंने कभी भी वास्तविकता को छिपाने का प्रयास नहीं किया। प्रेमचंद ने कभी पर्दे अर्थात् लुकाव-छिपाव को महत्त्व नहीं दिया।
लेखक व्यंग्य करता है कि हम अर्थात स्वयं को सभ्य मानने वाले लोग पर्दा रखने को बड़ा गुण मानते हैं। अपने कष्टों को छिपाकर समाज के सामने सुखी होने का ढोंग करते हैं। जो व्यक्ति अपने दोषों को छिपाकर स्वयं को महान सिद्ध करता है, हम उसे ही श्रेष्ठ मानते हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
उत्तर – हरिशकर परसाई कहते हैं कि प्रेमचंद ने जिस भी कृत्य को घृणा-योग्य समझा उसकी ओर हाथ की अँगुली से नहीं, बल्कि अपने पाँव की अँगुली से इशारा किया। कहने का अर्थ है उसे अपने जूते की नोक पर रखा और उसके विरुद्ध संघर्ष किया।
प्रश्न – पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी?’ लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजहें हो सकती हैं?
उत्तर – हमारे विचार से लेखक को तुरंत ही ध्यान आया होगा कि प्रेमचंद सादगी पसंद व्यक्ति हैं। वे हमेशा आडंबर तथा दिखावे से दूर रहने वाले व्यक्ति हैं। उनका रहन-सहन दूसरों से अलग है। इसलिए लेखक ने अपनी टिप्पणी बदल दी।
प्रश्न – आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन सी बातें आकर्षित करती हैं?
उत्तर – इस व्यंग्य की सबसे आकर्षक बात है- व्यंग्य शैली। लेखक एक संदर्भ से दूसरे संदर्भ की ओर बढ़ता चला जाता है। लेखक गागर में सागर भरने का प्रयत्न करता है। इस निबंध में प्रेमचंद के फटे जूते से बात शुरू होती है। वह बात खुलते-खुलते प्रेमचंद के पूरे व्यक्तित्व को उद्घाटित कर देती है। बात से बात निकालने की यह व्यंग्य शैली बहुत ही आकर्षक है।
प्रश्न – पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा?
उत्तर – ‘टीला’ शब्द मार्ग में आने वाली बाधाओं का प्रतीक है। जिस तरह चलते-चलते रास्ते में टीला आने पर व्यक्ति उसे पार करने के लिए विशेष परिश्रम करते हुए आगे बढ़ता है उसी प्रकार सामाजिक विषमता, छुआछूत, गरीबी, निरक्षरता, अंधविश्वास आदि भी मनुष्य की उन्नति में बाधक बनती है। इन्हीं बुराइयों के संदर्भ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न – प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई जी ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें।
प्रश्न – आपकी दृष्टि में वेश-भूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है?
उत्तर- लोग वेशभूषा को सामाजिक प्रतिष्ठा का सूचक मानने लगे हैं। लोग उस व्यक्ति को ज्यादा मान-सम्मान और आदर देने लगे हैं जिसकी वेशभूषा अच्छी होती है। आज किसी पार्टी में कोई धोतीकुर्ता पहनकर जाए तो उसे पिछड़ा समझा जाता है। इसी प्रकार कार्यालयों के कर्मचारी वेशभूषा के अनुरूप व्यवहार करते हैं।
भाषा अध्ययन
प्रश्न – पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
मुहावरा : हौसला पस्त करना।
अर्थ : उत्साह नष्ट करना।
वाक्य प्रयोग : भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के हौसले पस्त कर दिए।
मुहावरा : ठोकर मारना।
अर्थ : चोट करना।
वाक्य प्रयोग : प्रेमचंद ने जीवन की मुसीबतों को खूब ठोकरें मारी।
मुहावरा : टीला खड़ा होना।
अर्थ : बाधाएँ आना।
वाक्य प्रयोग : जीवन इतना आसान नहीं है। यहाँ पग-पग पर टीले खड़े हैं।
मुहावरा : पहाड़ फोड़ना ।
अर्थ : बाधाएँ नष्ट करना।
वाक्य प्रयोग : प्रेमचंद उन लेखकों में से थे जिन्होंने पहाड़ फोड़ना सीखा था, बचना नहीं।
मुहावरा : जंजीर होना ।
अर्थ : बंधन होना।
वाक्य प्रयोग : फैशन हमारे उच्च व्यक्तिव की जंजीर नहीं होना चाहिए।
प्रश्न – प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर- प्रेमचंद का व्यक्तित्व उभारने के लिए जिन विशेषणों का प्रयोग किया है वे निम्न हैं-
- जनता के लेखक
- महान कथाकार
- साहित्यिक पुरखे
- युग प्रवर्तक
- उपन्यास-सम्राट
क्विज/टेस्ट
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