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मेरे बचपन के दिन (पाठ का सार)
मेरे बचपन के दिन अध्याय में महादेवी वर्मा द्वारा उस समय की स्मृतियों का सजीव चित्रण है जब वे अपनी सहेली सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ विद्यालय में पढ़ा करती थीं। इसमें उन्होंने लड़कियों के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण विद्यालय में उनकी सहपाठियों छात्रावास का जीवन तत्कालीन सौहार्द्रपूर्ण वातावरण आपसी प्रेमभाव स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति विद्यार्थियों का दृष्टिकोण गाँधी जी के साथ अपनी मुलाकात तथा कवि सम्मेलनों में अपनी उपलब्धियों का सजीव चित्रण किया है।
अपने बचपन की स्मृतियों में खोई हुई लेखिका महादेवी वर्मा कहती हैं कि उनका जन्म कई पीढ़ियों के बाद हुआ था क्योंकि उनके परिवार में दो सौ वर्षों तक किसी लड़की का जन्म नहीं हुआ। पहले उस परिवार में पैदा होते ही लड़कियों को मार दिया जाता था। उन्हें पहले जैसी लड़कियों की स्थिति से नहीं गुज़रना पड़ा। उनकी माता ने ही लेखिका को पंचतंत्र पढ़ाया। लेखिका को मिशन स्कूल भेजा गया। यहाँ नए वातावरण में उसका मन न लगा। लेखिका को छात्रावास के कमरे में चार लड़कियों के साथ रहना पड़ा। जिसमें उसकी पहली साथिन के रूप में सुभद्रा कुमारी चौहान मिली जो उससे दो साल बड़ी थी। संयोग से दोनों ही कविताएँ लिखती थीं।
सुभद्रा कुमारी चौहान सवेरे ‘प्रभाती’ तथा सायंकाल मीरा के ‘पद’ गाती करती थी। यही सब सुनकर लेखिका ने ब्रज भाषा में लिखना शुरू कर दिया था परंतु छात्रावास में सुभद्रा कुमारी को देख खड़ी बोली में लिखने लगी। उसके बाद गाँधी जी का सत्याग्रह आरंभ हो गया और आनंदभवन स्वतंत्रता संघर्ष का केंद्र बन गया। लेखिका उत्साहपूर्वक कविता पाठ करती और पुरस्कृत होती।
एक दिन लेखिका को एक कविता पर चाँदी का नक्काशीदार सुंदर कटोरा पुरस्कारस्वरूप मिला। लेखिका ने जब सुभद्रा कुमारी को कटोरा दिखाया तो उन्होंने उसी में खीर बनाकर खिलाने के लिए कहा। उसी बीच आनंद भवन में बापू आए। लेखिका ने वह कटोरा गाँधी जी को दिखाया और उनके माँगने पर उन्हें दे दिया । छात्रावास के कमरे से सुभद्रा कुमारी के जाने के बाद उस कमरे में मराठी छात्रा ज़ेबुनिन्सा आ गई । वह मराठी मिली – जुली हिंदी बोलती थी। जिस प्रांत से जो लड़कियाँ आती थीं वहीं की भाषा बोला करती थीं । बेगम साहिबा को सभी ताई कहती थीं। लेखिका तथा अन्य सहेलियों के जन्मदिन वहीं मनाए जाते थे । वे अपने बेटे को लेखिका से राखी बँधवाती थीं। लेखिका के छोटे भाई का मनमोहन नाम उन्हीं बेगम साहिबा का दिया हुआ था। वही प्रोफेसर मनमोहन वर्मा आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी तथा गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे। ऐसा सद्भावपूर्ण वातावरण आज सपने जैसा लगता है। तात्पर्य यह है कि लेखिका के भाई का वही नाम चलता रहा जो बेगम साहिबा ने दिया था। उनके घर हिंदी और उर्दू बोली जाती थी। उस समय के वातावरण में हिंदू–मुस्लिम सब अत्यंत निकट थे। लेखिका कहती है कि वह सपना आज खो गया है। यदि वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और ही होती ।
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मेरे बचपन के दिन (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – ‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा जो अन्य लड़कियाें को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
उत्तर – उस समय भारत में लड़कियों की दशा अच्छी नहीं थी। लड़कियों के जन्म लेते ही प्रायः उन्हें मार दिया जाता था। उन्हें बोझ समझा जाता था। लड़की के जन्म पर पूरे घर में मातम छा जाता था।
(ख) लड़कियों के जन्म के संबंध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर – आज लड़कियों के जन्म के संबंध में परिस्थितियाँ थोड़ी बदली हैं। पढ़े-लिखे लोग लड़का-लड़की के अंतर को धीरे-धीरे कम करते जा रहे हैं। अधिकतर स्थानो पर लड़कियों को लड़कों की तरह पढ़ाया-लिखाया भी जाता है। परंतु लड़कियों के साथ भेदभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है।
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प्रश्न – लेखिका उर्दू-फ़ारसी क्यों नहीं सीख पाईं?
उत्तर – लेखिका उर्दू-फ़ारसी इसलिए नहीं सीख पाई क्योंकि लेखिका की रुचि उर्दू-फ़ारसी में नहीं थी। उसे लगता था कि वह उर्दू-फ़ारसी नहीं सीख सकती है। उसे उर्दू-फ़ारसी पढ़ाने के लिए जब मौलवी साहब आते थे तब वह चारपाई के नीचे छिप जाती थी। मौलवी साहब ने पढ़ाने आना बंद कर दिया इसलिए वह उर्दू-फ़ारसी नहीं सीख पाई।
प्रश्न – लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर – लेखिका ने अपनी माँ के हिंदी-प्रेम और लेखन-गायन में रुचि का वर्णन किया है। लेखिका की माँ हिंदी तथा संस्कृत जानती थीं। इसलिए इन दोनों भाषाओं का प्रभाव महादेवी पर भी पड़ा। महादेवी की माता धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। वे पूजा-पाठ किया करती थीं। सवेरे ‘कृपानिधान पंछी बन बोले’ पद गाती थीं। प्रभाती गाती थीं। शाम को मीरा के पद गाती थीं। वे लिखा भी करती थीं।
प्रश्न – जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है?
उत्तर – जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को लेखिका ने आज के संदर्भ में स्वप्न जैसा इसलिए कहा है क्योंकि जवारा के नवाब और लेखिका का परिवार अलग-अलग धर्म के होकर भी आत्मीय संबंध रखते थे। उनमें भाषा और जाति की दीवार बाधक न थी। दोनों परिवार एक-दूसरे के त्योहारों को मिल-जुलकर मनाते थे। लेखिका के अनुसार ऐसा मेल-मिलाप वर्तमान में दुर्लभ हो गया है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न – जेबुन्निसा महादेवी वर्मा के लिए बहुत काम करती थी। जेबुन्निसा के स्थान पर यदि आप होतीं/होते तो महादेवी से आपकी क्या अपेक्षा होती?
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न – महादेवी वर्मा को काव्य प्रतियोगिता में चाँदी का कटोरा मिला था। अनुमान लगाइए कि आपको इस तरह का कोई पुरस्कार मिला हो और वह देशहित में या किसी आपदा निवारण के काम में देना पड़े तो आप कैसा अनुभव करेंगे/करेंगी?
उत्तर – मुझे चाँदी के कटोरे जैसा कीमती पुरस्कार मिला हो और देशहित की बात आए तो मैं ऐसे पुरस्कार को खुशी-खुशी देता। देश के हित में ही देशवासियों का हित निहित होता है। ऐसा करके मुझे कई गुना खुशी प्राप्त होती और मैं गौरवान्वित महसूस करता।
प्रश्न – लेखिका ने छात्रवास के जिस बहुभाषी परिवेश की चर्चा की है उसे अपनी मातृभाषा में लिखिए।
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न – महादेवी जी के इस संस्मरण को पढ़ते हुए आपके मानस-पटल पर भी अपने बचपन की कोई स्मृति उभरकर आई होगी, उसे संस्मरण शैली में लिखिए।
उत्तर – विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न – महादेवी ने कवि सम्मेलनों में कविता पाठ के लिए अपना नाम बुलाए जाने से पहले होने वाली बेचैनी का जिक्र किया है। अपने विद्यालय में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते समय आपने जो बेचैनी अनुभव की होगी, उस पर डायरी का एक पृष्ठ लिखिए।
उत्तर – आज विद्यालय में स्वतन्त्रता दिवस का आयोजन है। सभी छात्र-छात्राओं के अतिरिक्त सैकड़ों अतिथि भी मंडप में पधारे हैं। मैं मंच के पीछे अपनी बारी की प्रतीक्षा में बैठा हूँ। मुझे कविता बोलनी है। हालाँकि मैंने पहले भी मंच पर कविता बोली है, परंतु जाने क्यों, आज मेरा दिल धक्-धक् कर रहा है। जैसे-जैसे मेरे बोलने का समय निकट आ रहा है, मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही है। मेरा सारा ध्यान अपना नाम सुनने में लगा है। डर भी लग रहा है कि कहीं मैं कविता भूल न जाऊँ। इसलिए मैंने लिखित कविता हाथ में ले ली है। यदि भूलने लगूंगा तो इसका सहारा ले लूंगा। लो, मेरा नाम बुल चुका है। मैं स्वयं को सँभाल रहा हूँ। मेरे कदमों में आत्मविश्वास आ गया है। अब मैं नहीं भूलूंगा।
भाषा-अध्ययन
प्रश्न – पाठ से निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द ढूँढ़कर लिखिएµ
विद्वान, अनंत, निरपराधी, दंड, शांति।
उत्तर –
विद्वान – मूर्ख
अनंत – अंत
निरपराधी – अपराधी
दंड – पुरस्कार
शांति – विवाद, अशांति
प्रश्न – निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग/प्रत्यय अलग कीजिए और मूल शब्द बताइए-
उपसर्ग प्रत्यय मूल शब्द
निराहारी – निऱ ई आहार
सांप्रदायिकता – x इक, ता संप्रदाय
अप्रसन्नता – अ ता प्रसन्न
अपनापन – x पन अपना
किनारीदार – x दार किनारी
स्वतंत्रता – स्व ता तंत्र।
प्रश्न – निम्नलिखित उपसर्ग-प्रत्ययों की सहायता से दो-दो शब्द लिखिएµ
उत्तर –
उपसर्ग से बने शब्द
अन् – अनेकता, अनेक
अ – अविश्वास, अज्ञान
सत् – सत्संग, सद्गुण
स्व – स्वरूप, स्वराज
दुर् – दुर्जन, दुर्घटना
प्रत्यय से बने शब्द
दार – दानेदार, थानेदार
हार – उपहार, होनहार
वाला – दूधवाला, सब्जीवाला
अनीय – पठनीय, पूजनीय
प्रश्न – पाठ में आए सामासिक पद छाँटकर विग्रह कीजिए – पूजा-पाठ पूजा और पाठ।
उत्तर –
समस्त शब्द विग्रह समास का नाम
कुल-देवी कुल की देवी तत्पुरुष
परमधाम ‘परम धाम (घर) है जो (स्वर्ग) बहुव्रीहि
पहले-पहल सबसे पहले अव्ययीभाव
पंचतंत्र पंच तंत्रों का समाहार द्विगु
छात्रावास छात्रों के लिए आवास तत्पुरुष
रोने-धोने रोने और धोने द्वंद्व
कृपानिधान कृपा के निधान तत्पुरुष
प्रचार-प्रसार प्रचार और प्रसार द्वंद्व
उर्दू-फ़ारसी उर्दू और फ़ारसी द्वंद्व
सत्याग्रह सत्य के लिए आग्रह तत्पुरुष
जेब-खर्च जेब के लिए खर्च तत्पुरुष
कवि-सम्मेलन कवियों का सम्मेलन तत्पुरुष
जन्मदिन जन्म का दिन तत्पुरुष
निराहार बिना आहार नञ् तत्पुरुष
ताई-चाची ताई और चाची द्वंद्व
टेस्ट/क्विज
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