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मेरे संग की औरतें (पाठ का सार)
प्रस्तुत संस्मरण लेखिका मृदुला गर्ग द्वारा लिखा गया है। इसमें लेखिका ने अपने परिवार की औरतों के व्यक्तित्व और स्वभाव पर प्रकाश डाला है। लेखिका ने अपनी नानी के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। लेखिका की नानी अनपढ़, परंपरावादी और पर्दा-प्रथा वाली औरत थीं। उनके नाना ने तो विवाह के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय से बैरिस्ट्री पास की और विदेशी शान-शौकत से जिंदगी बिताने लगेए परंतु नानी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अतरू नानी ने अपनी पुत्री की शादी की ज़िम्मेदारी अपने पति के एक मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारे लाल शर्मा को सौंप दी कि वे अपनी बेटी की शादी आज़ादी के सिपाही से करवाना चाहती हैं। अत: लेखिका की माँ की शादी एक स्वतंत्रता सेनानी से हुई। वे अब खादी की साड़ी पहना करती थींए जो उनके लिए असहनीय थी। लेखिका ने अपनी माँ को कभी भारतीय माँ जैसा नहीं देखा था। वे घर-परिवार और बच्चों के खान-पान आदि में ध्यान नहीं देती थीं। उन्हें पुस्तकें पढ़ने और संगीत सुनने का शौक था। उनमें दो गुण मुख्य थे-पहलाए कभी झूठ न बोलना और दूसराए वे एक की गोपनीय बात को दूसरे पर जाहिर नहीं होने देती थीं। इसी कारण उन्हें घर में आदर तथा बाहरवालों से दोस्ती मिलती थी। लेखिका की परदादी को लीक से हटकर चलने का शौक था। उन्होंने मंदिर में जाकर विनती की कि उनकी पतोहू का पहला बच्चा लड़की हो। उनकी यह बात सुनकर लोग हक्के-बक्के से रह गए थे। ईश्वर ने उनके घर में पूरी पाँच कन्याएँ भेज दीं।
एक बार घर के सभी लोग घर से बाहर एक बरात में गए हुए थे और घर में जागरण था। अतरू लेखिका की दादी शोर मचने की वजह से दूसरे कमरे में जाकर सोई हुई थीं। तभी चोर ने सेंध लगाई और उसी कमरे में घुस आया। परदादी की नींद खुल गई। उन्होंने चोर से एक लोटा पानी माँगा। बूढ़ी दादी के हठ के आगे चोर को झुकना पड़ा और वह कुएँ से पानी ले आया। परदादी ने आधा लोटा पानी खुद पिया और आधा लोटा पानी चोर को पिला दिया और कहा कि अब हम माँ-बेटे हो गए। अब तुम चाहे चोरी करो या खेती करो। उनकी बात मानकर चोर चोरी छोड़कर खेती करने लगा।
लेखिका की बहनों में कभी इस हीन-भावना की बात नहीं आई कि वे एक लड़की हैं। पहली लड़की जिसके लिए परदादी ने मन्नत माँगी थी वह मंजुला भगत थीं। दूसरे नंबर की लड़की खुद लेखिका मृदुला गर्ग (घर का नाम उमा) थीं। तीसरी बहन का नाम चित्रा और उसके बाद रेणु और अचला नाम की बहनें थीं। इन पाँच बहनों के बाद एक भाई राजीव था।
लेखिका का भाई राजीव हिंदी में और अचला अंग्रेजी में लिखने लगी और रेणु विचित्र स्वभाव की थी। वह स्कूल से वापसी के समय गाड़ी में बैठने से इनकार कर देती थी और पैदल चलकर ही पसीने से तर होकर घर आती थी। उसके विचार सामंतवादी व्यवस्था के खिलाफ़ थे। वह बी०ए० पास करना भी उचित नहीं मानती थी। लेखिका की तीसरी बहन चित्रा को पढ़ने में कम तथा पढ़ाने में अधिक रुचि थी। इस कारण उसके शिष्यों से उसके कम अंक आते थे। उसने अपनी शादी के लिए एक नज़र में लड़का पसंद करके ऐलान किया कि वह शादी करेगी तो उसी से और उसी के साथ उसकी शादी हुई।
अचलाए सबसे छोटी बहनए पत्रकारिता और अर्थशास्त्र की छात्रा थी। उसने पिता की पसंद से शादी कर ली थी और उसे भी लिखने का रोग था। सभी ने शादी का निर्वाह भली-भाँति किया। लेखिका शादी के बाद बिहार के एक कस्बेए डालमिया नगर में रहने लगीं। वहीं पर वहाँ की औरतों के साथ उन्होंने नाटक भी किए। इसके बाद मैसूर राज्य के कस्बेए बागलकोट में रहीं। वहाँ लेखिका ने अपने बलबूते पर प्राइमरी स्कूल खोलाए जिसमें उनके और अन्य अफसरों के बच्चों ने अपनी पढ़ाई की तथा भिन्न-भिन्न शहरों के अलग-अलग विद्यालयों में दाखिला लिया। विद्यालय खोलकर लेखिका ने दिखा दिया कि वे अपने प्रयास में कभी असफल नहीं हो सकतीं। परंतु लेखिका स्वयं को अपनी छोटी बहन रेणु से कमतर आँकती थीं। वे एक अन्य घटना का स्मरण करते हुए लिखती हैं कि दिल्ली में 1950 के अंतिम दौर में नौ इंच तेज बारिश हुई तथा चारों तरफ़ पानी भर गया था। रेणु की स्कूल-बस नहीं आई थी। सबने कहा कि स्कूल बंद होगाए अतः वह स्कूल न जाए किंतु वह नहीं मानी। अपनी धुन की पक्की वह दो मील पैदल चलकर स्कूल गई और स्कूल बंद होने पर वापस लौटकर आई। लेखिका मानती हैं कि अपनी धुन में मंजिल की ओर चलते जाने का और अकेलेपन का कुछ और ही मज़ा होता है।
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मेरे संग की औरतें
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थीं?
उत्तर – लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा नहीं था लेकिन उनके बारे में सुना अवश्य था। उसने सुना था कि उसकी नानी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में प्रसिद्ध क्रांतिकारी प्यारेलाल शर्मा से भेंट की थी और उनसे कहा कि वे अपनी बेटी की शादी किसी क्रांतिकारी से करवाना चाहती हैं, अंग्रेजों के किसी भक्त से नहीं।देश की स्वतंत्रता की पवित्र भावना बहुत सच्ची थी। इसमें साहस था। जीवन भर पर्दे में रहकर भी उन्होंने किसी अन्य पुरुष से मिलने की हिम्मत की। इससे उनके साहसी व्यक्तित्व और स्वतंत्रता की भावना का पता चला है। लेखिका इन्हीं गुणों के कारण उनका सम्मान करती है।
प्रश्न – लेखिका की नानी की आजादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही?
उत्तर – लेखिका की नानी ने आज़ादी के आंदोलन में सीधे-सीधे भाग नहीं लिया था, लेकिन आज़ादी के आंदोलन में उनका अप्रत्यक्ष योगदान अवश्य था। उनके मन में आज़ादी के प्रति जुनून था। अपनी मृत्यु को निकट देखकर उन्होंने अपने पति के मित्र स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा को बुलवाया और कहा कि उनकी बेटी के लिए वर वे ही देखें जो स्वतंत्रता का दीवाना हो। इससे उनकी बेटी का विवाह आज़ादी के आंदोलन में भाग लेने वाले उस लड़के से हो सका जिसे आई0सी0एस0 परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया था। इस प्रकार लेखिका की नानी ने आज़ादी के आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाई।
प्रश्न – लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन के आलोक में-
(क) लेखिका की माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – लेखिका की माँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं-
- वे स्वतंत्रता आंदोलन के लिए काम करती थीं। उनकी सोच मौलिक थी। लेखिका के शब्दों में वह खुद अपने तरीके से आज़ादी के जुनून को निभाती थीं।
- उनका व्यक्तित्व ऐसा प्रभावी था कि ठोस कामों के बारे में उनसे केवल राय ली जाती थी और उस राय को पत्थर की लकीर मानकर निभाया जाता था।
- लेखिका की माँ का सारा समय किताबें पढ़ने, साहित्य चर्चा करने और संगीत सुनने में बीतता था।
- वे कभी बच्चों के साथ लाड़-प्यार भी नहीं करती थीं।
- वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं।
- वे एक की गोपनीय बात दूसरे से नहीं कहती थीं।
(ख) लेखिका की दादी के घर के माहौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।
उत्तर – लेखिका की दादी का घर विरोधाभासों का संगम था। पारंपरिक लीक से परे परदादी चाहती थीं कि उनकी पतोहू को होने वाली पहली संतान कन्या हो। उसने यह मन्नत मानकर जगजाहिर भी कर दी। लेखिका की माँ घर का कोई काम नहीं करती थीं। वे आज़ादी के आंदोलन में सक्रिय रहती थीं। उन्हें पुस्तकें पढ़ने, संगीत सुनने और साहित्य चर्चा करने से ही फुर्सत नहीं थी। उनके पति भी क्रांतिकारी थे और अधिक समृद्ध नहीं थे। लेखिका के दादा अंग्रेजों के बड़े प्रशंसक थे। घर में चलती उन्हीं की थी। घर की नारियाँ अपने-अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र थीं। कोई किसी के विकास में बाधा नहीं बनता था।
प्रश्न – आप अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी?
उत्तर – परदादी परंपरा से अलग चलने की जो बात करती थीं। परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत माँगी जिससे वे अपने कार्य-व्यवहार द्वारा सबको दर्शा सकें। इसके अतिरिक्त उनके मन में लड़का-लड़की के लिए कोई अंतर नहीं होगा।
प्रश्न – डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है-पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – पाठ के आधार पर कह सकते हैं कि दृढ़ विश्वास और सहज व्यवहार ही मनुष्य के पास सबसे प्रभावी अस्त्र है। यदि कोई गलत राह पर हो तो उसे डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव देने की बजाय सहजता से व्यवहार करना चाहिए। लेखिका की नानी ने भी यही किया। उन्होंने अपने पति की अंग्रेज़ भक्ति का न तो मुखर विरोध किया और न ही समर्थन। वे जीवन भर अपने आदर्शों पर टिकी रहीं। अतः वे अंतिम समय में मनवांछित कार्य कर सकीं।
प्रश्न – ‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’- इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलंके के लिए लेखिका ने अथक प्रयास किए। उसने कर्नाटक के बागलकोट जैसे छोटे से कस्बे में रहते हुए बच्चों की शिक्षा की दिशा में सोचना शुरू किया। उसने कैथोलिक विशप से वहाँ स्कूल खोल देने की प्रार्थना की। जब मिशन स्कूल के लिए तैयार न हुआ तब लेखिका ने अंग्रेजी, हिंदी और कन्नड़ तीन भाषाएँ सिखाने वाला स्कूल खोला और उसे कर्नाटक सरकार से मान्यता दिलवाई।
प्रश्न – पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?
उत्तर – पाठ के आधार कहा जा सकता है कि जीवन में ऊँची भावना वाले दृढ़ संकल्पी लोगों को श्रद्धा से देखा जाता है। जो लोग प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर गलत रूढ़ियों को तोड़ डालने की हिम्मत रखते हैं, समाज में उनका खूब आदर-सम्मान होता है।
प्रश्न – ‘सच, अकेलेपन का मजा ही कुछ और है’-इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – ‘सच, अकेलेपन का मजा ही कुछ और है।’ इस कथन के आधार पर ज्ञात होता है कि लेखिका और उसकी बहन दोनों के व्यक्तित्व विषय में कहा जा सकता हैं –
- वे अपने दृढ़ निश्चय और जिद्दीपन के कारण उक्त कथन को चरितार्थ ही नहीं करती हैं बल्कि उसका आनंद भी उठाती हैं।
- लेखिका की बहन रेणु तो लेखिका से भी दो कदम आगे थी। वह गरमी में भी उस गाड़ी में नहीं आती थी जिसे उसके पिता ने स्कूल से उसे लाने के लिए लगवा रखा था। एक बहन गाड़ी में आती थी जबकि रेणु पैदल।
- शहर में एक बार नौ इंच बारिश होने पर शहर में पानी भरने के कारण घरवालों के मना करते रहने पर भी वह लब-लब करते पानी में स्कूल गई और स्कूल बंद देखकर लौट आई।
- लेखिका ने बिहार के डालमिया शहर में रूढ़िवादी स्त्री-पुरुषों के बीच जागृति पैदा की और उनके साथ नाटक करते हुए सूखा राहत कोष के लिए धन एकत्र किया ।
- लेखिका ने कर्नाटक के छोटे से कस्बे में बच्चों के लिए स्कूल खोला और सरकार से मान्यता दिलवाई।
टेस्ट/क्विज
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