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रसखान के सवैये
(अर्थ)
1
मानुष हौं तो वही रसखानि बसाैं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन।।
जौ खग हौं तो बसेरो कराैं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।।
शब्दार्थ –
मानुष – मनुष्य। बसौं – बसना, रहना। ग्वारन – ग्वाले। पसु – पशु। चरौ – चरना। नित – प्रतिदिन। पाहन – पत्थर। कहा बस – वश में न होना। धेनु – गाय। मँझारन – बीच में। गिरि – पहाड़। पुरंदर – इंद्र। खग – पक्षी। बसेरो – बसना। कालिंदी – यमुना। कूल – किनारा। कदंब – कदंब का वृक्ष। डारन – डाली।
अर्थ – इस सवैये में रसखान कृष्ण के प्रति अपना अनन्य प्रेम प्रकट करते हुए कहते हैं कि अगर अगले जन्म में उनको मनुष्य का रूप मिले तो वे ब्रज और गोकुल के ग्वालों के बीच बसना चाहेंगे। अगर पशु का जन्म मिले तो भी दूसरों के बस में होकर भी नंद की गायों के बीच रहकर चरना चाहेंगे। अगर रसखान को अगले जन्म में पत्थर बनना पड़े तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना स्वीकार करेंगे, जिसे कृष्ण ने अपनी तर्जनी उंलगी पर उठा का इंद्र के कोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी। अगर पक्षी का जन्म मिले तो रसखान यमुना के किनारे पर खड़े कदंब के पेड़ पर अपना बसेरा करना चाहेंगे।
प्रतिपाद्य – रसखान ने कृष्ण और कृष्ण से जुड़ी हर वस्तु के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया है।
2
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डाराैं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं।।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहाराैं।।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।
शब्दार्थ – कामरिया – कंबल। तड़ाग – तालाब। कलधौत के धाम – सोने-चाँदी के महल। करील – काँटेदार झाड़ी। वारौं – न्योछावर करना।
अर्थ – गाय चराने जाते समय कृष्ण के हाथ की लाठी और कंधे पर पड़े कंबल को पाने के लिए रसखान तीनों लोकों का राज त्याग देना चाहते हैं। वे नंद की गाय चराने के सुख के आगे आठों सिद्धियों और नौ निधियों के सुख को भी भुला सकते हैं। रसखान कवि कहते हैं कि वे कब इन आँखों से ब्रज के वन, बगीचे और तालाबों को देख सकेंगे। अर्थात वे कृष्ण से संबन्धित स्थानों को निहारते हुए अपना जीवन बिता देना चाहते हैं। अंत वे कहते हैं कि वे ब्रज की कंटीली झड़ियों के बागों पर सोने-चाँदी के करोड़ों महल न्योछावर कर सकते हैं।
प्रतिपाद्य – कृष्ण और ब्रज भूमि के सानिध्य में रहने के लिए रसखान अपने जीवन के सभी ऐशो आराम त्याग सकते हैं।
3
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
शब्दार्थ –
भावतो – अच्छा लगना
अर्थ – इस सवैये में कृष्ण के रूप-सौंदर्य पर गोपियों की मुग्धता का वर्णन है। एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि वह सिर पर मोर का पंख रख लेगी और गुंज की माला पहन लेगी। शरीर पर पीतांबर धारण कर लेगी, हाथ में कृष्ण की लकड़ी लेकर वन में और गोवर्धन पर्वत पर ग्वालों के साथ फिरेगी। रसखान के अनुसार गोपी कहती है कि जैसे कृष्ण तुझे प्रिय हैं, ऐसे ही वो मुझे भी अच्छे लगते हैं, मैं तेरे कहने से ये सारे स्वांग करने के लिए तैयार हूँ लेकिन जिस मुरली को कृष्ण अपने होठों से लगाते हैं उस मुरली को मैं अपने होठों से नहीं लगाऊँगी।
प्रतिपाद्य – गोपी कृष्ण के समान वस्त्र आदि तो धारण कर लेगी लेकिन कृष्ण की मुरली को अपने होठों से नहीं लगाना चाहती, क्योंकि गोपियाँ कृष्ण की मुरली को अपनी सौत समझती है।
4
काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै।।
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।।
शब्दार्थ –
अटा – कोठा, अट्टालिका। टेरि – पुकारकर बुलाना।
अर्थ – इस सवैये में गोपी की मनोदशा का वर्णन है। रसखान के अनुसार गोपी कहती है कि श्रीकृष्ण जब मुरली की मधुर धुन मंद मंद बजाते हैं तो वह अपने कानों पर अंगुली रख लेती है। श्रीकृष्ण अटारी पर चढ़कर जब मोहिनी तान गायों को सुनाते हैं तो वह उसको अनसुना करना चाहती है।
गोपी अपनी माई से कहती है कि अगर कल को ब्रजवासी तुझे कितना भी उलाहना दें कि उन्होने मुझे समझाया लेकिन मैंने कृष्ण को निहारना नहीं छोड़ा तो तुम मुझे दोषी न मानना, क्योंकि कृष्ण की मुस्कान इतनी मनमोहक है कि मुझसे वो छवि संभाली नहीं जाती।
प्रतिपाद्य – गोपी कृष्ण के चित्त और मोहिनी मुस्कान के सामने स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाती।
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रसखान के सवैये (प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न- ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर – कवि हर रूप में श्रीकृष्ण का भक्ति और प्रेम पाना चाहते हैं। ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम निम्न रूपों में अभिव्यक्त हुआ है-
(क) कवि रसखान मनुष्य का जन्म मिलने पर ब्रज का ग्वाला बनाना चाहते है।
(ख) कवि रसखान पशु का जन्म मिलने पर नंद बाबा की गाय बनना चाहते है।
(ग) कवि रसखान पत्थर के रूप में जन्म मिलने पर गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहते हैं।
(घ) कवि रसखान पक्षी का जन्म मिलने पर यमुना किनारे खड़े कदंब के वृक्ष पर बसेरा चाहते हैं।
प्रश्न- कवि का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण हैं?
उत्तर – कवि को लगता है कि ब्रज के कण-कण में कृष्ण समाए हुए हैं। इसलिए वन, बाग और तालाब को देखने से उन्हें अपने आराध्य कृष्ण से जुड़ाव महसूस होता है। यह कवि के कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और गहन भक्ति को दर्शाता है। कवि इन स्थानों में कृष्ण को उपस्थित देखकर अपने हृदय की अनन्यता और समर्पण भाव को प्रकट करते हैं।
प्रश्न- एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है?
उत्तर – कवि के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण हैं-कृष्ण। रसखान के लिए कृष्ण आराध्य हैं। कवि को कृष्ण की ब्रजभूमि से अत्यंत प्रेम है। इसलिए कृष्ण की एक-एक चीज़ उसके लिए महत्त्वपूर्ण है। कृष्ण की लाठी और कंबल जो प्रत्येक ग्वाला द्वारा पहना जा रहा है, वह उनके लिए अत्यंत मूल्यवान है। कवि हर वह काम करने को तैयार है जिससे वह कृष्ण के सान्निध्य में रह सके। यही कारण है कि वह कृष्ण की लाठी और कंबल के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार है।
प्रश्न- सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर – एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि वह सिर पर मोर का पंख रख लेगी और गुंज की माला पहन लेगी। शरीर पर पीतांबर धारण कर लेगी, हाथ में कृष्ण की लकड़ी लेकर वन में और गोवर्धन पर्वत पर ग्वालों के साथ फिरेगी। रसखान के अनुसार गोपी कहती है कि जैसे कृष्ण तुझे प्रिय हैं, ऐसे ही वो मुझे भी अच्छे लगते हैं, मैं तेरे कहने से ये सारे स्वांग करने के लिए तैयार हूँ लेकिन जिस मुरली को कृष्ण अपने होठों से लगाते हैं उस मुरली को मैं अपने होठों से नहीं लगाऊँगी। गोपी कृष्ण के समान वस्त्र आदि तो धारण कर लेगी लेकिन कृष्ण की मुरली को अपने होठों से नहीं लगाना चाहती, क्योंकि गोपियाँ कृष्ण की मुरली को अपनी सौत समझती है।
प्रश्न- आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर – रसखान कृष्ण के प्रति अपना अनन्य प्रेम प्रकट करते हुए कहते हैं कि अगर अगले जन्म में उनको मनुष्य का रूप मिले तो वे ब्रज और गोकुल के ग्वालों के बीच बसना चाहेंगे। अगर पशु का जन्म मिले तो भी दूसरों के बस में होकर भी नंद की गायों के बीच रहकर चरना चाहेंगे। अगर रसखान को अगले जन्म में पत्थर बनना पड़े तो गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना स्वीकार करेंगे, जिसे कृष्ण ने अपनी तर्जनी उंलगी पर उठा का इंद्र के कोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी। अगर पक्षी का जन्म मिले तो रसखान यमुना के किनारे पर खड़े कदंब के पेड़ पर अपना बसेरा करना चाहेंगे। रसखान ने कृष्ण और कृष्ण से जुड़ी हर वस्तु के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया है।
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प्रश्न- चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आप को क्यों विवश पाती हैं?
उत्तर :- रसखान के अनुसार गोपी कहती है कि श्रीकृष्ण जब मुरली की मधुर धुन मंद मंद बजाते हैं तो वह अपने कानों पर अंगुली रख लेती है। श्रीकृष्ण अटारी पर चढ़कर जब मोहिनी तान गायों को सुनाते हैं तो वह उसको अनसुना करना चाहती है। गोपी अपनी माई से कहती है कि अगर कल को ब्रजवासी तुझे कितना भी उलाहना दें कि उन्होने मुझे समझाया लेकिन मैंने कृष्ण को निहारना नहीं छोड़ा तो तुम मुझे दोषी न मानना, क्योंकि कृष्ण की मुस्कान इतनी मनमोहक है कि मुझसे वो छवि संभाली नहीं जाती। गोपी कृष्ण के चित्त और मोहिनी मुस्कान के सामने स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाती और स्वयं को विवश पाती हैं।
प्रश्न- भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
उत्तर – रसखान कवि कहते हैं कि वे कृष्ण से संबन्धित स्थानों को निहारते हुए अपना जीवन बिता देना चाहते हैं। अंत वे कहते हैं कि वे ब्रज की कंटीली झड़ियों के बागों पर सोने-चाँदी के करोड़ों महल न्योछावर कर सकते हैं।
(ख) माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।
उत्तर – गोपी अपनी माई से कहती है कि अगर कल को ब्रजवासी तुझे कितना भी उलाहना दें कि उन्होने मुझे समझाया लेकिन मैंने कृष्ण को निहारना नहीं छोड़ा तो तुम मुझे दोषी न मानना, क्योंकि कृष्ण की मुस्कान इतनी मनमोहक है कि मुझसे वो छवि संभाली नहीं जाती। गोपी कृष्ण के चित्त और मोहिनी मुस्कान के सामने स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाती और स्वयं को विवश पाती हैं।
प्रश्न- ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर – अनुप्रास अलंकार
प्रश्न- काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।
उत्तर :-
(क) भाव-सौंदर्य – गोपी कृष्ण के समान वस्त्र आदि तो धारण कर लेगी लेकिन कृष्ण की मुरली को अपने होठों से नहीं लगाना चाहती, क्योंकि गोपियाँ कृष्ण की मुरली को अपनी सौत समझती हैं।
(ख) शिल्प-सौंदर्य –
- पंक्ति में लयात्मकता है।
- ब्रज भाषा है।
- ‘मुरली मुरलीधर’ – में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘अधरान धरी अधरा न धरौंगी’ में यमक अलंकार है।
क्विज/टेस्ट
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