हिन्दी साहित्य का इतिहास » आधुनिक काल

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
(1864, दौलतपुर, रायबरेली, उत्तर प्रदेश 1938)
काव्य मौलिक- काव्य मंजूसा, सुमन, कान्यकुब्ज, अबला विलाप ⇔ अनूदित काव्य संग्रह– कुमारसंभवसार, कविता विलाप, गंगालहरी, ऋतुतरंगिनी
निबंध-संग्रह रसज्ञ रंजन, सुचयन, साहित्य सीकर, लेखांजलि, (निबंध – जर्मनी में संस्मरणकृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन, सर विलियम जोंस ने संस्मरणकृत कैसी सीखी, कवि कर्त्तव्य, कवि और कविता, क्या हिंदी नाम की कोई भाषा नहीं, म्युनिसपैलिटी के कारनामे, आत्मनिवेदन, प्रभात, अद्भुत आलाप, सुतापराये जनकस्य दण्ड)
आत्मकथा मेरी जीवन रेखा
आलोचना हिंदी भाषा की उत्पत्ति, कालिदास की निरंकुशता, कालिदास और उनकी कविता, सुकवि संकीर्तन, साहित्य संदर्भ, आलोचनांजलि, साहित्य सीकर, समालोचना समुच्च(1930), विक्रमांक देव चरित चर्चा, नैषधा चर्चा सम्पत्तिशास्त्र (1908), महिला मोद, आध्यात्मिकी
संपादन सरस्वती (1903 से 1920) मासिक पत्रिका थी तथा चिंतामणि घोष द्वारा इसकी स्थापना हुई।
महावीर प्रसाद द्विवेदी विशेष-

  1. हिंदी कालिदास की आलोचना है।
  2.  ज्ञानराशि के संचित कोश का नाम साहित्य है
  3.  रामचंद्र शुक्ल ने इनके निबंधो को बातों का संग्रह कहा।
  4.  रामचंद्र शुक्ल ने इनके विषय में कहा – ‘‘गद्य की भाषा पर द्विवेदी जी के इस शुभ प्रभाव का स्मरण जब तक भाषा के लिए शुद्धता आवश्यक समझी जाएगी, तब तक बना रहेगा। – हिंदी साहित्य का इतिहास
  5. रामचंद्र शुक्ल ने इनके विषय में कहा – ‘‘व्याकरण की शुद्धता और भाषा की सफाई के प्रवर्तक द्विवेदीजी ही थे —- यदि द्विवेदीजी न उठ खड़े होते, तो जैसी अव्यवस्थित, व्याकरण विरुद्ध और ऊॅंट-पटांग भाषा चारों ओर दिखाई देती थी, उसकी परंपरा जल्दी न रुकती।
  6. कवि कर्त्तव्य लेख में कहा – ‘‘चींटी से लेकर हाथीपर्यन्त पशु, भिक्षुक से लेकर राजापर्यन्त मनुष्य, बिन्दु से लेकर समुद्रपर्यंत जल, अनन्त आकाश, अनन्त पृथ्वी – सभी पर कविता हो सकती है।’’
  7. ‘‘छंद रचना मुख्य नहीं है, मुख्य है कविता और कविता सरस होनी चाहिए।’’
  8. “कविता का उद्देश्य मनोरंजन के साथ ही उपदेशजनक होना चाहिए।”
  9. सादगी असलियत और जोश के आधार पर आलोचना करने वाले आलोचक।
  10. हिंदी महाभारत, बेकन विचार, रत्नावली (अनुवाद)
  11. महावीर प्रसाद द्विवेदी के पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी है।
श्रीधर पाठक
(1856-1928)
काव्य बाल भूगोल (1885), एकांतवासी योगी (1886,गोल्डस्मिथ के हरमिट पर, खड़ी बोली, लावणी के 59 छंद), जगत सच्चाई सार (1887),  ऊजड़ग्राम (1889 गोल्डस्मिथ के डेजर्टेड विपेज पर, ब्रज, 544 पंक्तियों में ), मनोविनोद (1892, अब तक की रचनाओं का संग्रह), श्रांत पथिक (1902 गोल्डस्मिथ के दि ट्रेवलर, खड़ी बोली), कश्मीर सुषमा (1904), आराध्य शोकांजलि (1906), जार्ज वंदना(1911), भक्ति विभा(1913), देहरादून(1915), श्री गोखले प्रशस्ति(1915, संस्मरणकृत के नौ श्लोक), श्रीगोपिका गीत(1916, श्रीमदभगवत क दशम स्कन्ध के 31 वें अध्याय का श्लोकानुवाद),  भारतगीत (1928), सांध्य अटन, गुनवंत हेमंत, स्वर्गीय वीणा
उपन्यास तिलस्माती मुंदरी (1916, नौ अध्यायों का)
आत्मकथा आराध्याशोकांजलि (संक्षिप्त जीवन परिचय)
श्रीधर पाठक विशेष

  1. जगत है सच्चा तनिक न कच्चा, समझो बच्चा इसका भेद।
  2. लिखो, न करो लेखनी बंद। श्रीधर सम सब कवि स्वच्छन्द।
  3. प्रकृति यहाँ एकांत बैठि निज रूप संवारति।
  4. विजन वन प्रांत था, प्रकृति मुख शांत था, अटन का समय था, रजनि का उदय था।
  5. शुक्ल ने इन्हें स्वच्छन्दतावादी हिंदी कविता का प्रवर्तक माना।
रामनरेश त्रिपाठी
4 मार्च 1889 –16 जनवरी 1962
काव्य मिलन, पथिक (1920, हिंदी का प्रथम व सर्वाेत्कृष्ट राष्ट्रकृत काव्य), स्वप्न (1939), मानसी (फुटकल कविताओं का संग्रह)
नाटक काती चाचा (1927, सामाजिक समस्या)
आलोचना तुलसीदास और उनकी कविता
संस्मरण तीस दिनः मालवीय जी के साथ (1942)
रामदत्त त्रिपाठी विशेष

  1. कविता कौमिदी (संकलनः इसके एक भाग मे ग्रामगीत हैं जो हिंदी का पहला प्रयास है)
  2. ‘‘प्रतिक्षण नूतन वेष बनाकर रंग-बिरंग निराला। रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद माला।’’
मैथिलीशरण गुप्त
3 अगस्त 1886 – 12 दिसंबर 1964)
काव्य रंग में भंग (खंडकाव्य-1909),  जयद्रथ वध (1910), भारत भारती (1912), पंचवटी, वैतालिक, पत्रवली, आर्य स्वेदश संगीत, हिंदू, शक्ति, गुरूकुल, किसान (1917), झंकार (1929 प्रगीत संग्रह), विकट भट्ट, जयिनी (मार्क्स की पत्नी पर), शकुंतला, त्रिपथगा, संगार, स्वदेशगीत, साकेत (1932), यशोधारा (1932), उच्छ्वास , सिद्धराज, द्वापर, मंगलघट, नहुष (1940), कुणालगीत, अर्जन विसर्जन, विश्व वेदना, काबा और कर्बला, अजित, प्रदक्षिणा, पृथ्वी पुत्र, हिडिंबा, अजंलि और अर्घ्य, जयभारत (1952, महाभारत का हिंदी रूपांतरण है), भूमि भाग, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया(1957 महाकाव्य, चैतन्य की पत्नी विष्णुप्रिया की कथा), रत्नावली(1960 अंतिम रचना), प्लासी का युद्ध (अनूदित, नवीनचंद्र सेन) विरहिणी ब्रजांगना (माइकेल मधुसूदन दत्त से अनूदित), वीरांगना (माइकेल मधुसूदन दत्त से अनूदित), मेघनाथ वध (माइकेल मधुसूदन दत्त से अनूदित), वृत संहार (अनूदित , संस्मरणकृत से), स्वप्न वासवदत्ता (भास के नाटक से अनूदित), गीतामृत (व्यास रचित गीता का अध्याय-2)
कविताएँ हेमन्त (गुप्त जी की पहली कविता है, जो 1905 के सरस्वती में छपी।), नक्षत्र निपात (1914), अनुरोध (1915) पुष्पांजलि (1917)
नाटक तिलोत्तमा (1916), चंद्रहास (काव्य नाटक), अनघ (गीति नाटय), लीला (काव्य नाटक)
मैथिलीशरण गुप्त विशेष

  1. अपने देश में आंतरिक सुख शांति के लिए हमको (हिंदू मुसलमान) हिलमिल कर रहना होगा—काबा और कर्बला
  2.  महात्मा गांधी ने इन्हें राष्ट्रकवि के नाम से विभूषित किया। “वे राष्ट्र के कवि हैं, उसी प्रकार, जिस प्रकार राष्ट्र के बनाने से मैं महात्मा बन गया।’’ — महात्मा गांधी ने कहा
  3.  इनकी आरंभिक रचनाएॅं वैश्योपकारक, कलकता से छपती थी
  4.  1952 से 1964 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।
  5.  नारी निकले तो असती है, नर यती कहाकर चले निकले। -विष्णुप्रिया से
  6.  सहने के लिए बनी है, सह तू दुखिया नारी। -विष्णुप्रिया से
  7.  अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी,– -साकेत से
  8.  राम तुम मानव हो, ईश्वर नहीं हो क्या? -साकेत से
  9.  संदेश नहीं में यहाँ स्वर्ग का लाया, -साकेत से
  10.  अपने देश में आंतरिक सुख शांति के लिए हमको (हिंदू-मुसलमान) हिलमिल कर रहना होगा। – काबा और कर्बला से
  11.  ‘‘उनकी रचनाओं में सत्याग्रह, अहिंसा, देशप्रेम, विश्वप्रेम, किसानों व श्रमजीवियों के प्रति प्रेम और सम्मान की झलक पते हैं।—- शुक्ल
  12.  हरिगीतिका इनका प्रिय छंद है।
  13. साकेत पर 1932 मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ
  14.  1954 में इनको  पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
बालमुकुंद गुप्त
(1865  – 1907)
काव्य मडेल भगिनी (1892, बंगला उपन्यास का अनुवाद), रत्नावली (हर्ष की नाटिका का अनुवाद)
नाटक रत्नावली (अनूदित)
निबंध शिवशंभु के चिट्ठे(1905), चिट्ठे और खत
संपादन उर्दू के अखबारे चुनार, कोहेनूर, हिंदी के हिंदोस्थान(1889 से 1891), हिंदी बंगवासी, भारत मित्र(1899 से1907)
श्याम सुंदर दास
1875- 1945
काव्य काव्यग्रंथ
आत्मकथा मेरी आत्मकहनी (1941 पहली पूर्ण गद्य आत्मकथा)
जीवनी हिंदी कोविद रत्नमाला: पहला भाग 1909 में तथा दूसरा भाग 1914 में।
आलोचना साहित्या लोचन (1922), रूपक रहस्य, भाषा विज्ञान, हिंदी भाषा और साहित्य
संपादन सरस्वती (1900 से 1902), हिंदी शब्द सागर (1929), रामचरित मानस, पृथ्वीराज रासो, कबीर ग्रंथावली, द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ (1933), हस्तलिखित ग्रंथो के खोज विवरण
नाथूराम शर्मा शंकर
(1859 – 1935)
काव्य अनुराग रत्न, शंकर सरोज, गर्भ रण्डा रहस्य, शंकर सर्वस्व
रामचरित उपाध्याय
काव्य रामचरित चिंतामणि (महाकाव्य), राष्ट्रभारती, देवभाषा, देवदूत, विचित्र विवाह
गया प्रसादशुक्ल स्नेही
काव्य कृषक-क्रंदन, प्रेम पचीसी, कुसुमांजलि, करूणा कादम्बिनी, राष्ट्रीय मंत्र, राष्ट्रीय वीणा, त्रिशूल तरंग
संपादन सुकवि
ये त्रिशूल नाम से कविता करते थे
मुकुटधार पाण्डेय
1895 – 1988
काव्य पूजा-फूल, शैलबाला, लच्छमा, हृदयदान, परिश्रम, कानन कुसुम
  1. शुक्ल जी ने इन्हें नयी काव्य धारा (छायावाद) का प्रवर्तक माना।
  2. द्विवेदी युग के सर्वश्रेष्ठ प्रगीतकार माने जाते हैं।
रामचंद्र शुक्ल
(1884 से 1941 तक)
काव्य हृद्य का मधुरभार, बुद्धचरित द्धलाइट ऑफ एशिया का ब्रजभाषा में अनुवाद,1922), कल्पना का आनंद (एडिसन के ऐसे आन इमेजिनेशन का अनुवाद), मधुस्रोत (संकलन,1971)
कहानियॉं ग्यारह वर्ष का समय (1903, सरस्वती में छपी)
निबंध-संग्रह चिंतामणि 1 (1931), मनोविकार संबंधी निबंध (इस पुस्तक में मेरी अंतर्यात्र में पड़ने वाले प्रदेश हैं),  चिंतामणि 2 (1945), समालोचना संबंधी निबंध,  चिंतामणि 3 अन्य निबंध,  साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद, रसात्मक बोध के विविधरूप, विश्व प्रपंच (अनुवाद – रिडल ऑफ दि यूनीवर्स 1920), शशांक (अनुवाद – राखलदास बंदोपाध्याय का 1922)
निबंध साहित्य (1904, यह इनका प्रथम निबंध था जो सरस्वती में प्रकाशित), कविता क्या है (1909, सरस्वती में प्रकाशित),  उत्साह, भाव या मनोविकार,  श्रद्धा और भक्ति, करूणा, लज्जा और ग्लानि, लोभ और प्रीति, ईर्ष्या, भय और क्रौध, मानस की धर्मभूमि, काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
आलोचना गोस्वामी तुलसीदास(1923), जायसी ग्रंथावली की भूमिका(1924), भ्रमरगीत सार(1925), रस मीमांसा(1949)
इतिहास ग्रंथ हिंदी साहित्य का इतिहासद्धमूलरूप से हिंदी शब्द सागर की प्रस्तावना के रूप में 1939, संस्मरणोधिात रूप(1940)
संपादन हिंदी शब्द सागर(1929)
  1. भारतेंदु जी साहित्य के नए युग प्रवर्तक तथा नवजागरण के अग्रदूत हैं।
  2. तुलसी – लोकमंगल या लोकधर्म
  3. सूरदास – जीवनोत्सव (भ्रमरगीत की भूमिका)
  4. जायसी – प्रेेम की पीर
  5. घनानन्द – साक्षात् रसमूर्ति, जबाँदानी का दावा रखने वाला अन्यतम् कवि
  6. केशव – कठिन काव्य का प्रेत
  7. जयशंकर प्रसाद – मधुचर्या, कल्पना की मधुमती भूमिका
  8. मानस में चित्रकूट की सभा के लिए ‘आध्यात्मिक घटना’ का प्रयोग
  9. संश्लिष्ट चित्रण, विरुद्धों का सामंजस्य
  10. कर्म-सौन्दर्य, कल्प-प्रबंध
  11. प्रसंग-गर्भत्व, शीलदशा
  12. वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।
  13. नाद सौंदर्य से कविता की आयु बढ़ती है।
  14. लोक हृद्य में लीन होने की दशा का नाम ही रस दशा है।
  15. हिंदी गद्य की भाषा को परिमार्जित करके उसे बहुत ही चलता मधुर और स्वच्छ रूप दिया, भाषा का निखरा हुआ शिष्ट रूप भारतेन्दु की कला के साथ ही प्रकट हुआ।
  16. सुखदुःखात्मको रसः।
  17. रासो शब्द की उत्पत्ति रसायण से मानी।
लाला भगवान दीन
कविताएँ वीर क्षत्रणी, वीर बालक, वीर पंचरत्न, नवीन बीन
आलोचना अलंकार मंजूषा, बिहारी और देव
लोचनप्रसाद पांडेय
कविताएँ प्रवासी, मेवाड़गाथा, महानदी, पद्यपुष्पांजलि, मृगी दुखमोचन
कामता प्रसाद गुरू
काव्य भौमासुर वध (ब्रज), विनय पचासा (ब्रज), पद्य पुष्पावली (खड़ीबोली)
अध्यापक पूर्णसिंह
निबंध सच्ची वीरता, कन्यादान, नयनों की गंगा, पवित्रता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम, अमरीका का महंत योगी वाल्ट ह्विटमैन
चंद्रधार शर्मा गुलेरी
(1883 – 1920)
कहानियाँ सुखमय जीवन (1911), उसने कहा था (1915 हिंदी की पहली कलात्मक कहानी फलैश बैक पद्धति पर), बुद्धू का कांटा
निबंध पुरानी हिंदी, काशी, जय यमुना मैया जी, कछुआ धरम, मारेसि मोंहि कुठांव, विक्रमादित्य की मूल कथा, अमंगल के स्थान में मंगल शब्द
संपादन सुदर्शन पत्रिका (1900 मासिक, काशी से), समालोचक (1903 से 1906), मर्यादा (1911 से 1912), प्रतिभा (1918 से 1920), नागरी प्रचारिणी प्रत्रिका (1980 से 1922)
माखनलाल चतुर्वेदी
(4 अप्रैल 1889  से 30 जनवरी 1968)
काव्य हिमकिरीटनी, हिमतंगिनी, वेणु लो गूंजे धारा, माता, समर्पण, युगचरण, मरण ज्वार, बिजुली काजल आज रही
कविताएॅं पुष्प की अभिलाषा, कैदी और कोकिला, अमर राष्ट्र
नाटक कृष्णार्जुन युद्ध (1918)
निबंध-संग्रह अमीर इरादे गरीब इरादे, साहित्य देवता, समय के पॉंव
संपादन प्रभा (कानपुर से ये पहले तथा परवर्ती बालकृष्ण शर्मा नवीन), कर्मवीर, प्रताप
  1. देव पुरस्कार 1943 में हिमकिरीटनी पर,
  2. साहित्य अकादमी पुरस्कार 1955 में हिमतरंगिनी पर
  3. पद्मभूषण 1963
  4. एक भारतीय आत्मा के नाम से प्रसिद्ध
वृंदावन लाल वर्मा (ऐतिहासिक उपन्यासकार)
नाटक सेनापति उदल, फूलों की बोरी, हंस मयूर, पूर्व की ओर, ललित विक्रम, झॉंसी की रानी, बीरबल
उपन्यास लगन, संगम, प्रत्यागत, कुंडली चक्र, गढ़कुंडार 1929 (बुंदेलों और अंगारों पर, पात्रः नागदेव, अग्निदत्त, हेमवती, मानवती), प्रेम की भेंट (1931), विराटा की पद्मिनी 1936 (पात्रः कुमुद, कंजर), लोककथा पर आधाारित-सोना (1950), अमरबेल (1952), झॉंसी की रानी, मृगनयनी (पात्रः राजा मानसिंह, मृगनयनी, अटल, लाखी), माधावजी सिंधिया, टूटे कांटे (पात्रः मस्तानी), कीचड़ और कमल (पात्रः पद्मावती), कचनार, भुवनविक्रम द्धपात्रः रोमक, विक्रम, नील, फणिश, हिमानीऋ, मुसाहिबजू, अचल मेरा कोई, अहिल्याबाई, आहत, उदयकिरण
कहानियॉं राखीबंद भाई (1909, सरस्वती में छपी)
आत्मकथा अपनी कहानी
बदरीनाथ भट्ट
नाटक कुरूवन दहन (1912), चुंगी की उम्मीदवारी (1916,हास्य प्रहसन),  चबडधाेंधो (1926 हास्य प्रहसन ), विवाह का विज्ञापन (1927 हास्य प्रहसन ), मिस अमेरिका (1929 हास्य प्रहसन ), वेन चरित, तुलसीदास, चंद्रगुप्त, दुर्गावती
प्रेमचंद

(1880 लमही उ-प्र- -1936)

नाटक संग्राम (1922), कर्बला (1924), प्रेम की बेदी (1933)
उपन्यास असरारे मआविद उर्फ देवस्थान रहस्य (1903-05 उर्दू), हम खुर्मा व हम सवाब (1906 उर्दू),  किसना (1908 उर्दू), जलवा ए-ईसार (1912 उर्दू), सेवासदन (1918, हिंदी में प्रेमचंद का पहला उपन्यास है किंतु उर्दू में पहले बाजारे हुस्न नाम से लिखा गया। यह वेश्या जीवन की समस्या पर केंद्रित है। सेवासदन के पात्र है – सुमन, दरोगा, कृष्णचंद्र), वरदान (1921 जलवा ए-ईसार का हिंदी रूपांतरण), प्रेमाश्रम (1922, उर्दू में गोश-ए-आफिमत नाम से लिखा गया था। किसान जीवन पर। पात्र: प्रेमशंकर), रंगभूमि(1925, उर्दू में चौगाने हस्ती नाम से लिखा गया था। यह राष्ट्र की बहुआयामी परिस्थितियों तथा चेतना पर लिखा गया एक राष्ट्रीय उपन्यास है। पात्र – सूरदास, विनय, सोफिाया, सुभागी), कायाकल्प (1926 मूल रूप से हिंदी में लिखा गया प्रेमचंद द्वारा प्रथम उपन्यास। यह हिंदू-मुस्लिम दंगा तथा पुनर्जन्म, विलास आदि पर केंद्रित है। पात्र – चक्रधर, मनोरमा, शंखधर, देवप्रिया), निर्मला (1927, दहेज व अनमेल विवाह पर। पात्र – तोताराम, निर्मला, रूक्मिणी, मंशाराम, जियाराम, सियाराम), प्रतिज्ञा (1929, हम खुर्मा हम सवाब के हिंदी रूपंतर ‘प्रेमा अर्थात दो सखियों का विवाह को परिष्कृत कर प्रतिज्ञा नाम से प्रकाशित कराया), गबन (1931, मनोवैज्ञानिक उपन्यास, पात्र: जालपा, रमानाथ), कर्मभूमि (1933, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक चेतना का स्वर। पात्र: अमरकांत, सकीना, सुखदा, डा- शांतिकुमार), गोदान (1936, ग्रामीण जीवन का महाकाव्य, किसान जीवन पर सामान्तर कथा, पात्र: होरी, धनिया, गोबर, सिलिया, रायसाहब, मालती, मेहता), मंगलसूत्र (अपूर्ण, मरणोपरांत प्रकाशन 1948)
कहानी संग्रह सप्तरोज (1917), मानसरोवर (आठ भाग), सोजेवतन (उर्दू कहानी, जब्द), नवनिधि, गुप्त धन (दो भागों में)
कहानियॉं सौत (1915), बड़े घर की बेटी (1916), सज्जनता का दंड (1916), ईश्वरीय न्याय (1917), दुर्गा का मंदिर (1917), रानी सारंधा, बूढ़ी काकी, इस्तीफा, सतरंज के खिलाड़ी, पूस की रात, तावाज, कफन, ईदगाह, आत्माराम, नशा
निबंध साहित्य का उद्देश्य(1954)
आत्मकथा मेरा जीवन साथी
आलोचना साहित्य का उद्देश्य(1954), कुछ विचार विविध प्रसंग
संपादन माधुरी (लखनऊ 1928 से 1931), हंस (काशी1930प्रथम प्रेमचंद वर्तमान मे राजेंद्र यादव), जागरण (काशी 1932)
  1. पहले नवाबराय नाम से लिखते थे, वास्तविक नाम धनपतराय
  2. आदर्शोन्मुख यथार्थ
  3. आधुनिक कहानी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और जीवन के यथार्थ चित्र को अपना ध्येय समझती है।
  4. इस जनम में तो कोई आशा नहीं है, भाई! हम राज नहीं चाहते, भाग-विलास नहीं चाहते, खाली मोटा-झोटा पहनना, और मोटा-झोटा खाना और मरजाद के साथ रहना चाहते हैं। वह भी नहीं सधता। – प्रेमचंद (गोदान से)
जी-पी- श्रीवास्तव
नाटक नोंक-झोंक, गड़बड़झाला (1912 हास्य प्रहसन), दुमदार आदमी (1917 हास्य प्रहसन ), उलट फेर (1918 हास्य प्रहसन ), मर्दानी औरत (हास्य प्रहसन), न घर का न घाट का (हास्य प्रहसन), भूलचूक (1926 हास्य प्रहसन), साहित्य का सपूत (हास्य प्रहसन)
राय देवी प्रसाद पूर्ण
कविताएॅं बसंत वियोग, स्वदेशी कुंडल, मृत्युंजय
नाटक चंद्रकला, भानुकुमार, धाराधारधावन (मेघदूत का अनुवाद)
संपादन रसिकवाटिका (पत्रिका)
पद्मसिंह शर्मा
आलोचना बिहारी और सादी (1907), बिहारी सतसई
संस्मरण प्रबंधमंजरी
रेखाचित्र पद्मपराग 1924
संपादन बिहारी सतसई की भूमिका
  1. संस्मरणमरण तथा रेखाचित्र के प्रवर्तक
  2. तुलनात्मक समीक्षा द्विवेदी युग की प्रधान प्रवृति रही, जिसका सूत्रपात पद्मसिंह शर्मा ने 1907 में बिहारी और सादी की तुलना द्वारा किया। मिश्रबंधु द्वारा लिखित हिंदी नवरत्न में भी तुलनात्मक समीक्षा का स्थान मिला।
  3. कृष्णविहारी मिश्र ने पद्मसिंह शर्मा की पुस्तक बिहारी सतसई का तुलनात्मक अध्ययन के उत्तर में ‘देव और बिहारी’ लिखी। इसमें देव का श्रेष्ठ ठहराया। इसके जवाब में लाला भगवानदीन ने ‘बिहारी और देव’ लिख डाली।
  4. अनस्थिरता शब्द के प्रयोग को लेकर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी एवं बाबू बालमुकुन्द गुप्त के बीच लम्बी बहस चली थी। गुप्त जी के व्यंग्य का प्रत्युत्तर में द्विवेदी जी ने ‘सरगों नरक ठेकाना नाहिं’ नाम से ‘कल्लू अल्हैत’ का आल्हा छापा था।
  5. ‘‘खड़ी बोली नीरस और कर्णकटु है।’’
श्री वियोगी हरि
1895 -1988
काव्य प्रेमशतक, प्रेमपथिक, प्रेमांजलि, चरखास्रोत, असहयोग वीणा, वीर सतसई , तरंगिनी, अंतर्नाद, भावना, प्रार्थना, श्रद्धाकण, मेवाड़केसरी
नाटक छंदमयोगिनी(1923)
आत्मकथा मेरा जीवन प्रवाह
वीरसतसई पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक

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