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भक्तिकालीन संप्रदाय

 

शंकराचार्य
संप्रदाय : दार्शनिक आधार – अद्वैतवाद
इस दर्शन के अनुसार ब्रह्म और आत्मा सत्य है, जगत मिथ्या है। इस मिथ्या का कारण माया अथवा अविद्या है। ब्रह्म विशेषण रहित है, इसलिए अनिर्वचनीय है उसको कोई नाम नहीं दे सकते। उसकी सत्ता को सूचित करने वाले शब्द निषेधात्मक हैं जैसे- अव्यय, अनादि, अनिर्वच आदि।

 

आचार्य रंगनाथमुनि
(824 ई. से 924 ई.)

संप्रदाय : श्री सम्प्रदाय दार्शनिक आधार -विशिष्टाद्वैत 
नाथमुनि श्री सम्प्रदाय के प्रथम आचार्य माने जाते हैं।  ये तमिलनाडु के रहने वाले थे। ये शंकराचार्य के सिद्धांत का विरोध करने वाले पहले वैष्णव आचार्य थे। इन्होंने वैष्णव सिद्धांतों की दार्शनिक व्याख्या की। इन्होंने आलवर भक्तों के भक्ति-भावपूर्ण पदों को ‘द्विव्यप्रबंधम्’ शीर्षक से चार भागों में संकलित किया। इनकी प्रसिद्ध पुस्तक है- न्यायतत्व

 

यामुनाचार्य
संप्रदाय : श्री सम्प्रदाय दार्शनिक आधार – विशिष्टाद्वैत
यामुनाचार्य श्री सम्प्रदाय के चतुर्थ आचार्य थे। इन्होंने अपने पहले के सिद्धांतों विशेषकर ‘शरणागति’ का विशद् विवेचन किया। इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें है- सिद्धित्रय, आगम प्रमाणय, गीतार्थ संग्रह।

 

आचार्य रामानुज
(1017 से 1137 ई.)
संप्रदाय : श्री सम्प्रदाय दार्शनिक आधार – विशिष्टाद्वैत
(रंगनाथ मुनि →राममिश्र →पुण्डरीकाक्ष→ यमुनाचार्य)
विशिष्टाद्वैत के अनुसार – ब्रह्म की अद्वैत सत्ता को स्वीकार करते हुए भी (ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है) जीव को और ब्रह्म को अभिन्न माना जाता है। विशिष्टता का अर्थ है – विशिष्ट का विशिष्ट रूप से अद्वैत। अद्वितीय ब्रह्म विशिष्ट है। श्री सम्प्रदाय में विष्णु के अर्थावतार राम उपास्य देव हैं। भक्ति-जीव की मुक्ति का एकमात्र साधन है। तत्वमसि का अर्थ है- ‘उनका तू सेवक है।’ रामानुज के गुरू का नाम कांचीपूर्ण है, जो शूद्र थे। इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- वेदांत सार, वेदार्थ संग्रह, वेदांत दीप, गीता आष्टा।

 

मध्वाचार्य (आनन्दतीर्थ)
संप्रदाय : ब्रह्म संप्रदाय दार्शनिक आधार – द्वैतवाद
द्वैतवाद के अनुसार – ‘भगवान और भक्त के बीच पार्थक्य पहली शर्त है। श्री हरि अनन्त गुणों से परिपूर्ण हैं। वेद के समस्त तात्पर्य भगवान विष्णु आठ गुणों से युक्त सर्वोच्च तत्व हैं। अल्पज्ञ जीव की मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन अमला (दोषरहित) भक्ति है।’
आचार्य निम्बार्क (निम्बकाचार्य)
संप्रदाय :हंस या सनक संप्रदाय या निम्बार्क संप्रदाय दार्शनिक आधार – द्वैताद्वैतवाद या भेदाभेदवाद

सनक संप्रदाय का सर्वाधिक प्रचार बंगाल में हुआ। इस सिद्धांत के अनुसार – जीव जगत तथा ईश्वर की पृथक सत्ता है। जीव जगत का व्यापार व अस्तित्व ईश्वर की कृपा पर निर्भर है। जीवात्मा अवस्था भेद से ब्रह्म के साथ भिन्न भी है और अभिन्न भी। ईश्वर की कृपा से ही जीव को अपनी प्रकृति का ज्ञान होता है। हंस संप्रदाय में –  लक्ष्मी तथा विष्णु के बजाय राधा-कृष्ण की युगलोपासना का विधान है। राधा का स्वकीया रूप स्वीकृत है।  उज्जवल भक्ति (दाम्पत्य भक्ति) को श्रेष्ठ माना है।

आचार्य निंबार्क की प्रसिद्ध पुस्तकें – वेदांत परिजात सौरभ, दशश्लोकी, श्रीकृष्णस्तवराज, मंत्ररहस्य षोडशी,  प्रपन्नकल्पवल्ली वेदान्तकौस्तुभ

 

विष्णुस्वामी
संप्रदाय : रूद्र संप्रदाय दार्शनिक आधार – अद्वैतवाद
इनके अनुसार – ब्रह्म मायारहित शुद्ध सच्चिदानन्द स्वरूप है। माया ब्रह्म के अधीन है। ईश्वर का प्रधान अवतार नृसिंह है। इनकी प्रसिद्ध पुस्तके हैं- सर्वज्ञसूक्त
महाप्रभु चैतन्य (1485 से )
संप्रदाय : गौडीय संप्रदाय दार्शनिक आधार – अचिंत्य भेदाभेदवाद
इस दर्शन के अनुसार ब्रह्म और आत्मा सत्य है, जगत मिथ्या है। इस मिथ्या का कारण माया अथवा अविद्या है। ब्रह्म विशेषण रहित है, इसलिए अनिर्वचनीय है उसको कोई नाम नहीं दे सकते। उसकी सत्ता को सूचित करने वाले शब्द निषेधात्मक हैं जैसे- अव्यय, अनादि, अनिर्वच आदि।

इसके अनुसार – भगवान में स्वरूपा आदि शक्तियों के अभिन्न होने के कारण विचार करना शक्य न होने से भेद प्रतीत होता है और भिन्न होने के कारण विचार करना शक्य होने से अभेद प्रतीत होता है। इसलिए भेदाभेद स्वीकार है। वे दोनों अचिन्त्य है, इसलिए इस मत को ‘अचिंत्य भेदाभेद’ नाम दिया गया है।

  1. बलदेव विद्याभूषण – चैतन्य संप्रदाय के व्याख्याकार हैं। इनकी पुस्तक है – गोविंदभाष्य
  2. रूप गोस्वामी चैतन्य संप्रदाय के व्याख्याकार हैं। भक्ति के पॉंच भेद बताए। उज्जवल रस की स्थापना की। इनकी पुस्तक है उज्ज्वलनीलमणि, हरिभक्तिरसामृति सिंधु
  3. जीव गोस्वामी – चैतन्य संप्रदाय के व्याख्याकार हैं। इनकी पुस्तक है – भगवत्संदर्भ
  4. सनातन गोस्वामी – चैतन्य संप्रदाय के व्याख्याकार हैं। इनकी पुस्तक है – षट्संदर्भ

 

आचार्य वल्लभ
(1479 से 1530 ई)
संप्रदाय : वल्लभ संप्रदाय दार्शनिक आधार – शुद्धाद्वैतवाद
इस संप्रदाय का संबंध विष्णुस्वामी संप्रदाय से स्थिर किया गया है।

शुद्धाद्वैतवाद – साधना और व्यवहार के क्षेत्र में शुद्धाद्वैत के साथ पुष्टिमार्गी भक्ति को स्थान प्राप्त है।

इसके अनुसार –  श्रीकृष्ण ही पूर्णानन्दस्वरूप हैं। उनकी लीलाओं का कोई प्रयोजन नहीं है। स्वयं लीला ही उनका प्रयोजन है।आचार्य वल्लभ के पिता का नाम – लक्ष्मणभट्ट (तेलगू प्रदेश निवासी, विष्णुस्वामी मतावलंबी)

वल्लभाचार्य की पुस्तकें हैं
1. अणुभाष्य (उत्तरमीमांसा)
2. सुबोधिनी टीका,
3. तत्तनिबंध,
4. जैमिनीय पूर्वमीमांसा-सूत्रभाष्य

पुष्टिमार्ग पुष्टि शब्द भागवत पुराण के ‘पोषण तदनुग्रह’ से लिया गया है। भगवत अनुग्रह या कृपा को ‘पुष्ट’ कहा जाता है।इस प्रकार पुष्टिमार्ग भगवान की अहैतु की कृपा का मार्ग है। ‘‘पुष्टिं किं? में पोषणाम् किं? तदनुग्रहः। भगवत्कृपा।’’ पुष्टिमार्गी भक्ति रागानुरागी भक्ति है। इसमें ईश्वर को पाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं किया जाता। भक्त भगवतदुग्रह पर भरोसा करके सारे प्रयत्नों का विसर्जन कर देता है और नित्यलीला में प्रवेश पाता है।  पुष्टिमार्गी दीक्षा के समय गुरूमंत्र दिया जाता है- ‘‘श्रीकृष्णः शरणं मम।’’ अष्टछाप के कवियों ने पुष्टिमार्ग का पल्लवन किया।

 

अष्टछाप के कवि

अष्टछाप का निर्माण वल्लभ के पुत्र विट्ठलनाथ ने किया, जिसमें प्रथम चार शिष्य बल्लभाचार्य के थे तथा चार शिष्य विट्ठलनाथ के थे-
1- सूरदास
2- कुंभनदास
3- परमानन्ददास
4- कृष्णदास
5- नंददास
6- गोविन्दस्वामी
7- छीतस्वामी
8- चतुर्भुजदास

 

राघवानंद
संप्रदाय : दार्शनिक आधार – 
राघवानंद की प्रसिद्ध पुस्तक है- सिद्धांत पंचमात्र

 

आचार्य रामानंद
संप्रदाय : दार्शनिक आधार – 
भक्तमाल के अनुसार यह आचार्य रामानुज की शिष्य परंपरा में चतुर्थ शिष्य थे। इनके दीक्षा गुरू स्वामी राघवानन्द हैं। भक्तमाल में रामानन्द जी के बारह शिष्य गिनाए गए हैं-

‘‘अनंतानंद, कबीर, सुखा, सुरसुरा, पदमावति, नरहरि।
पीपा, भवानन्द, रैदास, धना, सेन, सुरसर का धरहरि।।’’

रामानन्द जी ने रामावत संप्रदाय का प्रवर्तन किया, जो आगे चलकर श्री संप्रदाय में मिलकर एक जैसा हो गया। वस्तुतः दोनों में अंतर है – श्री संप्रदाय के आराध्य नारायण (विष्णु) हैं। जबकि रामावत संप्रदाय के राम। रामावत संप्रदाय का मूलनाम ‘राम’ या ‘सीताराम’ है। इन्होंने रामतारक मंत्र देकर मुस्लमानों को हिंदू बनाया। स्वामी जी ने काशी में वैरागी दल का भी गठन किया। जो आज भी वैरागी नाम से ही प्रसिद्ध है। इसी वैरागी परंपरा में एक शाखा में योगसाधना का समावेश हुआ जो ‘तपसी शाखा’ कहलायी। ‘कील्हदास’ तथा उनके शिष्य ‘द्वारकादास’ इसी शाखा के साधक हैं। रामानन्द जी के संस्कृत ग्रंथ हैं-

(1) वैष्णव मतादभास्कर
(2) श्री रामार्चन पद्धति
(3) राम रक्षा स्रोत

 

आलवार और नायनार संत
  1. कबीर ने कहा है – ‘भक्ति द्राविड उपजी।’
  2. भक्ति का प्रथम प्रस्फुटन तमिल (दक्षिण) के आलवार भक्तों की वाणी से हुआ।
  3. आलवार एवं नायनार संतों के माध्यम से सर्वप्रथम तमिल जाति बनी।
  4. आलवार संख्या में बारह थे।
  5. आलवारों की पहली रचना है – तिरूवायमोलि।
  6. अन्य प्रसिद्ध रचना है – तिरूविरूतम्, विरूवर्गशरियेम, परियतिरूवन्दादि
  7. आलवारों में प्रसिद्ध हैं –
    1- काण्कोप,
    2- नाम्मालवार या शष्कोप
    3- सातवें केरल के राजा कुलशेखर – कुलशेखर की रचना है – प्रेरूमाल तिरूभोवि।
  8. एकमात्र महिला आलवार भक्त हैं – आंडाल
  9. इन्हीं आलवारों के पदों को ‘श्री संप्रदाय’ के प्रथम आचार्य श्रीरंगनाथ मुनि ने ‘प्रबंधम्’ शीर्षक से संकलित किया।

 

भारत के अन्य राज्यों में हुए संत

राज्य (भाषा) संत संप्रदाय विशेष
कर्नाटक
(कन्नड़)
संत बसवेश्वर वीरशैव और लिंगायत संत बासव ने कन्नड़ भाषा के पद्य के स्थान पर गद्य का प्रचलन किया।

संत बासव ने साहित्य और शिक्षा माध्यम को कन्नड़ में बदलकर देशभाषा के रूप में स्थापित किया।

कर्नाटक
(कन्नड़)
पंप   पंप की प्रसिद्ध रचना है – ‘आदिपुराण’ और ‘रत्न’ व भारत
बंगाल
(बांग्ला)
चंडीदास गौडीस संप्रदाय
  1. बंगाल में जयदेव के (गीतगोविंद) में ही इस आंदोलन की नींव पड़ चुकी थी।
  2. जयदेव का काल 12 वी सदी माना जाता है।
  3. बंगाल में अन्य संप्रदाय है  – धर्मठाकुर, सत्यवीर, कर्ताभाजा, बादल, सहजिया

 

गुजरात
(गुजराती)
नरसी मेहता  
  1. नरसी मेहता का समय (1414 से 1480 ) माना जाता है।
  2. गुजरात में नरसी मेहता ने कृष्णभक्ति आंदोलन की शुरूआत की।
  3. गुजरात में आखा नामक एक निर्गुण भक्त भी हुए।
असम शंकरदेव    
कश्मीरी लल्लदेव    
केरल
(मलयालम)
नुंचत रामानुज शास्त्रपूजक
तमिलनाडू
(तेलगू)
1- अन्नया
2- तिकन्ना
3- यर्रेन्न

4- आस्कर पोतन्न
5- पोतराज
6- नाचर सोम्या
   
महाराष्ट्र
(मराठी)
1. मुकुन्दराज
2. समर्थ गुरू रामदास
3. संत एकनाथ
4. तुकाराम
   गुरू रामदास की रचनाएॅं हैं-
1- आवीबद्ध (इसमें ओवी छंद में रामकथा वर्णित है)
2- उस्मानी सुल्तानी
3- परचक्रनिरूपण
4- दासबोध,
5- मनाचेश्लोक।
 संत तुकाराम के अभंग प्रसिद्ध हैं।
 संत तुकाराम के बारे में बहिणाबाई ने कहा है –
तुकोबा के पद अद्वैत प्रसिद्ध
उनका अनुवाद चिंतमोही।
महाराष्ट्र
(मराठी)
संत चक्रधर महानुभाव संप्रदाय  
महाराष्ट्र
(मराठी)
संत पुण्डरीक वारकरी संप्रदाय  
उड़ीसा   पंचपुराण  
उत्तरप्रदेश   रामावत  

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