प्रेमाख्यानक काव्य / सूफी काव्य
सूफी काव्यधारा के प्रवर्तक – मुल्ला दाउद हैं। इनकी रचना चंदायन से प्रेमाख्यानक काव्यों की शुरूआत होती है।
परिचय – सूफी दर्शन को ‘तसव्वुफ’ कहते हैं। हमारे यहॉं लोक में प्रेमकथाओं के कहने की लंबी परंपरा मिलती है। कालिदास ने भी मेघदूत में ‘उदयनकथाकोविद ग्रामवृद्धों’ का जिक्र किया है। जिस तरह आदिकाल में जैन कवियों ने इन्हें सांप्रदायिक रंग में रंगकर ‘भविस्सयत कहा’ जैसी रचनाएँ की, उसी तरह भक्तिकाल में सूफी कवियों ने लोकप्रिय कथाओं को सूफी ढॉंचों में कसा हो ऐसा नही है। सूफी काव्य के समान्तर लौकिक-प्रेम काव्य भी रचे जाते रहे। इनमें ईश्वर दास की सत्यवती कथा, ढोला मारू रा दूहा, माधवानल – कामकंदला (कुशललाभ और आलम) सारंगा सदावृक्ष पर लिखी गयी प्रेमकाव्य रचनाएँ गिनी जा सकती हैं।
सूफी रचनाएॅं प्रतीकात्मक हैं तथा दोहरा अर्थ (लौकिक के साथ अलौकिक) का संदेश देने वाली हैं। चंदायन पहली सूफी रचना है। सभी भारतीय प्रेमाख्यानों एवं सूफी काव्यों में कथानक रूढ़ियों का प्रयोग किया गया है।
कथानक रूढ़ि – कथानक रूढ़ि से तात्पर्य किसी ऐसी घटना प्रसंगादि से है जो एक बार प्रयोग में आने के बाद परवर्ती प्रेमाख्यानों में बार-बार दोहराई जाती है तथा इस तहर रूढ़िगत हो जाती है। जैसे नायक और नायिका का पहली बार किसी मंदिर या फुलवारी में मिलन।
सूफी शब्द का विकास – सूफी धर्म मेें शरा (सनातनी) ओर बेशरा (मस्तमौला फकीर) दो कोटियॉं हैं। बेशरा साधक मलामती कहलाते हैं। भारतीय सूफी पुष्पतः बेशरा संप्रदाय के कवि हैं। इनके प्रमुख संप्रदाय हैं – चिश्ती, कादिरी, सहरवर्दी, नक्शावंदी और सत्तारी। ‘सूफी’ शब्द की व्युत्पति जिन विभिन्न शब्दों से की गयी है, वे हैं –
सूफ्रफा (चबूतरा)
सफ्रफ (अगली पंक्ति)
सफा (पवित्र जीवन बितने वाला साधू)
सोफिस्त (ज्ञानी)
सूफा (अरबों की जाति विशेष)
सुफ्रफाह (भक्त विशेष)
सूफ (सादा ऊन)
सूफी मत का आदि स्रोत शायी मत में मिलता है। सूफियों का प्रमुख तत्व प्रेम यहीं से आया है। इसके अतिरिक्त सूफी मत के विकास में मान मत तथा प्लेटिनस के चिंतन का भी प्रभाव पड़ा है। सूफी मत का अपनी विश्व तत्व ज्ञान है किंतु कथा प्रबंधन में तत्व ज्ञान का आग्रह घुलमिल गया है। इन्होंने परम-सत्ता के मधुर दाम्पत्य भाव ही जोड़ा है, अन्य कोई भाव नहीं। संसार में उसी की प्रतिछवि है। यह प्रतिछवि में उसका प्रतीक है। सूफह इसी प्रतीक को प्रतीकार्य (परम सत्ता) का साधन मानते हैं। इसलिए उनके यहॉं प्रेम और उसमें भी विरह की प्रधानता है। सूफी ‘प्रेम की पीर’ के कवि कहे जाते हैं। इन्होंने प्रबंधकाव्य ही लिखे हैं। अवधी भाषा में दोहा-चौपाई में कड़वक बद्ध हैं। केवल ‘अनुराग बांसुरी’ में दोहे के स्थान पर बरवे का प्रयोग है। सूफी प्रबंध काव्य मसनवी-शैली में रचित है।
सूफियों के अनुसार, इश्क मजाजी (लौकिक प्रेम) इश्क हकीक (अलौकिक प्रेम) का पहला सोपान है। उन्होंने स्वयं को पुरूष तथा परंपरा को नारी में चित्रित किया है, जिसमें प्रेम की तीव्रता व्यंजित होती है। आत्मा या साधक परमात्मा रूप नारी अलौकिक सौंदर्य पर मुग्ध होकर प्रेम के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ता जाता है।
भारतीय सूफियों ने सूफी मार्ग की चार अवस्थाओं का उल्लेख किया है। साधक क्रम से इन उच्चतर शरीअत को पार करता है। ये हैं –
1) शरीअत (नासूत)
2) तरीकत (मलकूत)
3) मारिफत (जबरूत)
4) हकीकत (लाहूत)
नासूत – यह साधना की सबसे निचली अवस्था है जिसमें साधक शरीअत (कुरान) में प्रतिपादित विधि-निषेधों का पालन करता है।
मलकूत – इसमें साधक भौतिक जगत के ऊपर उठकर पवित्र हो जाता है। इस अवस्था में वह तरीकत (पवित्रता) अपनाने में समर्थ हो जाता है।
जबरूत – इस अवस्था में मार्ग की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं तथा साधक में परमात्मा से मिलने की सामर्थ्य (मारिफत) आ जाती है।
हकीकत – यही परमसत्य है। इसमें साधक लाहूत की अवस्था प्राप्त करता है। वह अनलहक (अहं ब्रह्मास्मि) का अनुभव करने लग जाता है।
सूफियों की अनलहक की घोषणा अद्वैतवाद से मिलती है।
इसके अतिरिक्त हाहूत आदि चार अन्य उच्चतर सोपानों की कल्पना की गई है। इस्लाम में शैतान खुदा का विरोधी है किंतु सूफी उसे खुदा का परम भक्त मानते हैं। सूफियों के अनुसार, खुदा ने शैतान की सृष्टि साधक की परीक्षा लेने के लिए की है, जिससे साधक को केवल गुरू कह बचा सकता है।
मानव शरीर में जड़ तथा आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार का अंश है। नफस (जड़ आत्मा) मनुष्य को पाप की ओर ले जाती है तथा रूह (आत्मा) ईश्वर की ओर। नफस को मारना ही जीवन का परम कर्तव्य है।
सूफी मत का आदि स्रोत शामी मत में मिलता है।
रामचंद्र शुक्ल के अनुसार – ‘‘हिंदी सूफी काव्य, फारसी सूफी मसनबियों से प्रभावित होकर भी अपनी सम्पूर्ण बनावट में भारतीय है। काव्य के प्रारंभ में ईश्वर-स्तुति, शाहे वक्त् की प्रशंसा, गुरु वंदना, आत्म-परिचय, एक ही छन्द का प्रयोग आदि मसनबी की विशेषता है।
डा- बच्चन सिंह के शब्दों में – ‘‘हिंदी सूफी कवियों की जमीन भारतीय है। हिंदी सूफी कवियों ने अपने जनपद की भाषा, रीति-नीति, ऋतुवर्णन, छंद, कथानक रुढ़ियों आदि को इस ढंग से अपनाया है कि उनके काव्य पूर्णतः भारतीय बन गए हैं।’’
राबिया एक प्रसिद्ध सूफी महिला साधक थी। हिंदी प्रेमाख्यानों की पहली कृति चंदायन मानी जाती है। किंतु कुछ विद्वानों का मत भिन्न है। जैसे –
हंसावली (असाइत) मोतीलाल मेनारिया
चंदायन (मुल्ला दाऊद) रामकुमार वर्मा
सत्यवती कहा (ईश्वर दास) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
मृगावती (कुतुबन) आचार्य रामचंद्र शुक्ल
प्रमुख सूफ़ी कवि और उनकी रचनाएँ
असाइत | |||
हंसावली (1370) – भाषा राजस्थानी हिंदी |
मुल्ला दाउद | |||
चंदायन (1379 ई.) – भाषा अवधी, छंद – दोहा चौपाई
चंदायन से हिंदी में सूफी काव्य प्रेमाख्यानों की शुरूआत होती है। इसका मूलनाम माताप्रसाद गुप्त ने लौर कहा या लोर कथा माना है।नायक लोक (लोरिक) तथा नारिका (चंदा) का प्रणय वर्णन इसका कथ्य विषय है।इनके समकालीन शासक थे – फिरोजशाह तुगलक। चंदायन की प्रसिद्ध पंक्तियॉं हैं – ‘वीर कहा मई थहि खंड गावॅंऊ। ‘बरिस सात सै होइ इक्यासी। |
दामोदर कवि | |||
लखनसेन-पदमावती कथा (1459) – भाषा राजस्थानी हिंदी, दोहा-चौपाई, सोरठा
लखनसेन-पदमावती कथा को वीर कथा भी कहा गया है। वास्तव में यह रोमानी शैली का शुद्ध प्रेमकाव्य है। |
ईश्वरदास | |||
सत्यवती कथा (1501 ई-) – भाषा अवधीदोहा-चौपाई
इसके कथानक का संबंध राजकुमारी सत्यवती और राजकुमार ऋतुपर्ण के प्रथम दर्शनजन्य प्रेम-प्रसंग है। |
कुतुबन | |||
मृगावती (1503 ई-) – भाषा अवधी, दोहा चौपाई
कथा की परिणति अपभ्रंश के जैन काव्यों की परंपरा के अनुसार शांतरस में होती है। प्रसिद्ध पंक्तियॉं हैं – ‘पहले ही ये दुई कथा अही।’ ‘पुनि हम खोलि अरथ सब कहा।’ |
गणपति | |||
माधवानल-कामकंदला (1527) – भाषा राजस्थानी, दोहा
नायक – माधव, नायिका – नृत्यविशारद कामकंदकला |
जायसी (1464 से 1542)
इनका जन्म जायस (रायबरेली) में हुआ। गुरू का नाम – सैयद अशरफ जहॉंगीर पदमावत (1540) |
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पद्मावत – (सूफी काव्यधारा की प्रौढ़तम कृति) 57 खंडो में एक रूपक (एलिगोरी) काव्य है। समासोक्ति काव्य है। आचार्य शुल्क इसे सूफी रचना मानते है। साही ने लिखा है – जायसी यदि सूफी है तो कुजात सूफी हैं। छंद – दोहा-चौपाई (कड़वकबद्ध पद्धति) भाषा – ठेठ अवधी (इनकी भाषा को अवधी का अरधान कहा गया।) पद्मावत के एक अंश का बंगला अनुवाद ‘आगे उजाला’ नामक कवि ने किया। इसमें रत्नसेन – आत्मा का, पद्मावती – परमात्मा का, नागमति – इड़ा का, राघव चेतन व अलाउद्दीन – शैतान, माया का प्रतीक है।
जायसी की प्रसिद्ध पंक्तियॉं हैं – |
मंझन | |||
मधुमालती (1545) – अवधी, दोहा-चौपाई (कड़वकबद्ध पद्धति) इसमें नायक-नायिका के प्रथम दर्शन जन्य प्रेम क साथ-साथ पूर्वजन्म के प्रणय संस्कारों की भी महत्ता दिखाई गयी है। प्रसिद्ध पंक्तियॉं – ’कथा जगत जेती कवि आई। पुरूष मारि ब्रज सती कराई’ |
कुशल लाभ (कल्लोल कवि) | |||
ढोलामारू रा दूहा (1369) पुरानी राजस्थानीदोहाडॉ मोतीलाल मेनारिया ने इसे आदि काल रचना न मानकर भक्तिकाल में रखा है। इसमें नरवर देश के राजकुमार ढोला (दूल्हा) तथा पूगल देश की राजकुमारी मारवणी के विवाहोत्तर प्रेम और विरह की मार्मिक कथा है। माधवानल-कामकंदकला चौपाई राजस्थानी प्रधानतः दोहा-चौपाई, सोरठा और गाथाइसमें नायक-नायिका के अनेक जन्मों की कथा का वर्णन किया गया है। |
नंददास | |||
रूपमंजरी –
विवाहिता रूपमंजरी और कृष्ण प्रेम का चित्रण हुआ है। |
जैन श्रावक जटमल | |||
प्रेमविलास प्रेमलता दोहा-चौपाई
इसमें नायक नायिका का प्रेम प्रत्यक्ष दर्शन से उत्पन्न होता है। दोनों गुप्त रूप से विवाह करके भाग जाते हैं। |
नारायणदास | |||
छिताई वार्ता – राजस्थानी मिश्रत ब्रजदोहा-चौपाई
इसमें इतिहास और कल्पना के मिश्रण से ‘छिताई देवनागरी’ के राजा रामदेव की कन्या तथा ‘ढोला समुद्रगढ़’ के राजकुमार के प्रणय का वर्णन किया गया है। इसका कथानक पद्मावत से प्रभावित है। |
आलम | |||
माधवानल-कामकंदकला (1584 )अवधीकडवक (5 अर्द्धालियों पर एक दोहा या सोरठा)इसमें नायक-नायिका के एक ही जन्म की कथा है।की प्रसिद्ध पंक्तियॉं हैं – ‘कथा संस्कृत सुनि कुछ थोरी। भाषा बांधी चौपाई जोरी। ‘कामी पुरिष रसिक जै सुनही। ते या रैन दिन गुनही।’ ‘कहौ बात सुनै बस लोग। कथा-कथा सिंगार वियोग।’ ‘सकल सिंगार विरह की रीत। माधौ कामकन्दला प्रीत।’ ‘सन् नौ से इक्कानवे आही। करौ कथ औ बोलौं ताही।’ |
उसमान | |||
चित्रवली (1613) – भाषा – अवधी, कडवक (7 अर्द्धालियों पर एक दोहा)
(आरण्यक काव्य) ‘जाकी बुद्धि होय अधिकाई। आन कथाा एक कहै बनाई‘ |
पुहकर कवि | |||
रसरत्न – भाषा अवधी, दोहा-चौपाई
इसमें राजकुमारी रंभा और सोम के प्रेम का वर्णन है। |
जान कवि | |||
इनके सर्वाधिक 29 प्रेमाख्यान हैं।
कथा कनकावती, कथा रत्नावली, कथा कंवलावती, कथा मोहिनी, कथा नल-दमयन्ती, कथा रूपमंजरी, कथा कलन्दर, कथा पिजरवांसाहिजादै वा देवलदे, ग्रंथ लै लै मजनूं। |
नरपति व्यास | |||
नल-दमयंती |
काशीराम | |||
कनक मंजरी |
मुकुन्दसिंह | |||
नलचरित्र |
लालचंद या लक्षोदय | |||
पद्मिनी चरित्र |
रीतिकाल में कवि हैं जिन्होंने भारतीय प्रेमाख्यान परंपरा को निम्न रचनाओं में आगे बढ़ाया
कासिमशाह | |||
हंस जवाहिर |
नूर मुहम्मद | |||
इंदावती
अनुराग बॉंसुरी – ब्रज भाषा |
शेख निसार | |||
युसुफ जुलेखा |