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सगुण भक्ति काव्य

सगुण भक्ति काव्य की धार्मिक पृष्ठभूमि

मध्यकाल में प्रेम को भक्ति माना गया है। हिंदू धर्म के अंतर्गत शैव, शाक्त, सौर समार्त और गणपत्य की गणना की जाती थी।

शैव धर्म – शैव धर्म के अंतर्गत पाशुपत, वीरशैव, लिंगायत, कश्मीरी संप्रदाय विख्यात थे।वैष्णव धर्म के अंतर्गत भागवत संप्रदाय से सगुण भक्तिकाव्य का सूत्रपात हुआ।

वैष्णव धर्म – वैष्णव धर्म के उप-संप्रदायों में रावत, शास्तापूजक, धर्मठाकुर, सहजिया, सत्यपीर ।भागवत धर्म के प्रतिपादक तीन प्रमुख संप्रदाय हैं – नारायणी, सात्वत तथा पांचरात भागवत धम अत्यंत प्राचीन है। इसने विष्णु तथा वासुदेव में एक्य स्थापित किया। इसके पश्चात् सात्वत धर्म का स्थान आता है जिसके प्रवर्तक वासुदेव ही माने जाते हैं।‘वासुदेव’ तथा ‘सात्वत’ शब्द पर्याय रूप में भी उपलब्ध हैं।

‘पांचरात्र’ धर्म – उपर्युक्त दोनो के बाद ‘पांचरात्र’ धर्म का स्थान आता है। जो अधिक व्यापक शास्त्रीय आधार रखता है। पांचरात्र धर्म में रात्र का अर्थ है – ज्ञान । पंचविधि ज्ञान-वचन (परमत्व, मुक्ति, भुक्ति, योग, विषय या संसार) को पांचरात्र माना जाता है। तथा उनके समवेत ग्रहण को पांचरात्र धर्म कहते हैं।

भागवत धर्म – भागवत धर्म में नवधा भक्ति मान्य हैं –

‘श्रवणं, कीर्तनं, विष्णो, स्मरणां, पादसेवनम्।
अर्चनं, वदनं, दास्यम्, सख्यम्, आत्मनिवेदनम्।।’’

 

रामकाव्य
संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं अपभ्रंश में रामकाव्य

1- बाल्मीकि रामायण (ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी) को रामकथा का आदिकाव्य माना जाता है। इसके तीन पाई दक्षिणात्य, गौडीय तथा पश्चिमोत्तरीय प्राप्त होते हैं।

2- इसके पश्चात् उपनिषदों एवं पुराणों में रामकथा का वर्णन है।

3- बौद्ध जातक कथाओं में राम ‘दशरथजातक’, ‘अनामर्तजातक’ तथा चीनी त्रिपिटक के अंतर्गत दशरथ कथानक में प्राप्त हैं।

4- जैन ग्रंथों में अपेक्षाकृत विस्तारपूर्वक रामकथा वर्णित है-

पउमचरिउ विममसूरि
सियाचरियम भुवनतुंगसूरि
राम चरियम् भुवनतुंगसूरि
पद्मचरित रविषेण
अत्तरपुराण गुण भद्र
कथाकोष हरिकोष
पदमचरिउ अपभ्रंश  स्वयंभू
महापुराण अपभ्रंश  पुष्पदंत
वासुदेव हिंडी
(कृष्णकथा तथा रामकथा दोनों हैं)
प्राकृत संघदास गणिवाचय

6- संस्कृत नाटकों में रामकथा –

  • प्रतिभा – यह सात अंकों का नाटक है। इसमें सीता को लक्ष्मी का अवतार माना गया है।
  • अभिषेक – इसमें राम के विष्णुत्व की सांकेतिक अभिव्यक्ति हुई है।
  • कालिदास प्रणीत ‘रघुवंशम्’ में दसवें से पंद्रहवें सर्ग तक रामकथा वर्णित है।
  • प्रवरसेन रचित ‘रावण-वध’ महाकाव्य में रामरावण युद्ध है। इसकी भाषा प्राकृत है।
  • भवभूति – उत्तररामचरित , महावीरचरित (सात अंकों में)
  • अनंग हर्ष – ‘उत्तरराघव’ नाटक (8 वी सदी)यह छह अंकों का है इसमें राम के वन से आने तक की कथा है
  • कुमारदास – जानकी हरण (महाकाव्य)
  • क्षेमेन्द्र – रामायणमंजरी (महाकाव्य), दशावतार चरितम् (महाकाव्य)
  • साक्यमज – उदारराघव (महाकाव्य)
  • अद्वैत – राघवोल्लास (महाकाव्य)
  • दिगंनाग – कुंदमाला (नाटक)
  • जयदेव – प्रसन्नराघव (नाटक)
  • सोमेश्वर -उल्लास राघव (नाटक)

उपरोक्त समस्त साहित्य आठवीं सदी तक का है। इसमें मूलतः कवि की दृष्टि से रामचरित को प्रस्तुत किया गया है, भक्त की दृष्टि से नहीं। राम को अवतार मानकर उनकी उपासना का सूत्रपात कब से हुआ यह बताना कठिन है, परंतु जहॉं तक रामभक्ति के सांप्रदायिक स्वरूप का प्रश्न है यह आठवीं शताब्दी के पश्चात् आरंभ हुआ। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में भागवत धर्म का ह्रास होने लगा। वैष्णव साधना का गढ़ उत्तर भारत से दक्षिण चला गया। जहॉं आलवारों ने रामभक्ति को अक्षुण्ण बनाए रखा। आलवारों का समय 800 ई- – 1100 ई- के आसपास तक है। रंगनाथ मुनि ने इनके पद प्रबंधम् शीर्षक से संग्रह किए हैं। 1100-1400 ई- में रंगनाथ मुनि (श्री संप्रदाय) के परवर्ती आचार्यों पुण्डरीकाक्ष, रामानुज तथा राघवानंद आदि का युग आता है। चौदहवी सदी के आरंभ में रामानंद ने भक्ति का पुनः उत्तर में प्रचार किया। इस संदर्भ में कबीर का कथन है – ‘भक्ति द्राविडी उपजी लाए रामानंद।’ 

रामानन्द ⇒ अनंतानंद ⇒ कृष्णदास परिहारी ⇒ अग्रदास ⇒ नाभादास

अन्य भारतीय भाषाओं में प्रमुख रामकाव्य
भाषा रचना समय कवि
बंगला कृतिवासी    कृतिवास
तमिल कम्ब रामायण   कम्ब
मराठी भावार्थ रामायण   संत एकनाथ
मराठी ओवीबद्ध   समर्थ रामदास
मराठी रामायण   वेणाबाई देशपांडे
मलयालम रामचरित   राजाश्रीराम
कन्नड रामायण   नामचंद्र
  रंग रामायण    
 तेलगू भास्कर रामायण    

हिंदी राम काव्य परंपरा

हिंदी रामकाव्य परंपरा में कुछ जैन कवियों की रचनाएँ प्रारंभ में आती हैं। जैसे –

रचना कवि
रावण-मंदोदरी संवाद  मुनी लावण्य
रामचरित या रामरास
ब्रह्मजिनदास
हनुमंतरास ब्रह्मजिनदास
हनुमंतगामी कथा ग्रह्मराममल्ल
हनुमान चरित सुंदरदास

⇒ विश्वनाथ मध्ययुगीन रामकाव्य परंपरा के अंतिम रामभक्त हैं।

 

रामकथा के हिंदी कवि

ईश्वरदास
भारत विलाप (16 वी- शताब्दी), अंगदपैज, स्वर्गरोहिणी कथा,  रामजन्म, सत्यवती कहा (1501, प्रेमाख्यान)

 

अग्रदास
कुंडलिया, अष्टयाम, ध्यानमंजरी, रामभजनमंजरी, उपासना बवनी

अग्रदास की भाषा ब्रज थी । अग्रदास के गुरु कृष्णदास पयहारी ने जयपुर में गलता नामक स्थान पर अपनी गद्दी स्थापित की। रामभक्ति परंपरा में रसिक भावना का समावेश अग्रदास ने किया। अग्रदास ने रसिक संप्रदाय का प्रवर्तन किया। अग्रदास स्वयं को जानकी जी की सखी मानकर ‘अग्रअली’ लिखते थे। अग्रदास तुलसीदास के समकालीन थे।

 

रामचरण दास
रामस्नेही पंथ की स्थापना की।
स्वसुखी शाखा (पति-पत्नी भाव) का प्रवर्तन किया।

 

कृपाराम
रामायत सखी सप्रदाय की स्थापना की।

 

जीवराम
तत्सुखी शाखा का प्रवर्तन किया।

 

गोस्वामी तुलसीदास (1532 से 1623)

तुलसीदास के जन्म से संबन्धित मत

बेनीमाधवदस  (रचना – मूलगोसाईचरित) – संवत् 1554 सरयूपारीय ब्राह्मण

महात्मा रघुबरदास  (रचना – तुलसीचरित) – संवत् 1554 सरयूपारीय ब्राह्मण

शिवसिंह सेंगर (शिवसिंह सरोज)  – संवत् 1583

जार्ज ग्रियर्सन एवं पंडित रामगुलाम द्विवेदी – संवत् 1589 (अर्थात् – सन् 1532 ई.)

यही मान्य है।

रामविलास शर्मा ने कहा – ‘रामचरित मानस में तुलसी की करूणा समाजोन्मुख है, विनयपत्रिका में वह आत्मोन्मुख है।’

स्मिथ ने कहा – मुगलकाल का सबसे महान व्यक्ति।
ग्रियर्सन ने कहा – बुद्ध देव के बाद सबसे बड़ा लोक नायक।

तुलसी के बारे में जनश्रुतियॉं

1- ‘तुलसी परासर गोत दूबे पतिऔजा के
2- ‘मैं पुनि निज गुरू सुनि, कथा सो सूकरखेत’
3- संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यों शरीर।।
4- ‘कविता कर के तुलसी न लसे, कविता लसी या तुलसी की कला’
-हरिऔध

तुलसी के बारे में अंत साक्ष्य 

1- ‘मातु पिता जग जाई तज्यौ विधिहू न लिख्यौ कुछ भाल-भलाई।’                  -कवितावली
2- ‘गोरख जगायो जोग, भगति भगायो भोग।’                                                  -कवितावली
3- ‘खेती न किसान को भिखारी को भीख।’                                                        -कवितावली
4- ‘झूठो,झूठो,झूठो है सदा जगु संत कहंत जे अंत लहा है।’                                 -कवितावली
5- ‘अंतरजामिनहु ते बड बाहिरजामी है। राम जे नाम लिए ते।                            – कवितावली
6- ‘जनक जननी तज्यौ जन्मी, करम बिनु विविहू सू ज्यों अवडेरे।’                    – विनयपत्रिका
7- ‘जाके प्रिय न राम वैदेही।’                                                                              -विनयपत्रिका
8- ‘केसव कहि न जाई का कहिए।’                                                                     – विनयपत्रिका
9- ‘रामराज भयो सगुन सुभ, राजा राम जगत विजयी है।’                                   -विनयपत्रिका
10- ‘सुनु सीतापति सील सुभाउ।’                                                                        – विनयपत्रिका

11- ‘संवत् सोलह सै इकतीसा। करौं कथा हरिपद धारि सीसा।
नौमी भौमवार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।’                              -रामचरितमानस
12- ‘उपजहिं अनत-अनत छवि लहहीं। –                                                             -रामचरितमानस
13- ‘कीन्हे प्राकृतजन गुन गाना। सिर धुनि गिरा लागे पछताना।’                        – रामचरितमानस
14- ‘नाम रूप दुइ ईस उपाधी।’                                                                             -रामचरितमानस
15- ‘अगुन-सगुन बिच नाम सुखानी। उभय प्रबोधक चतु दुभानी।’                        -रामचरितमानस
16- ‘अगुनहिं सगुनहिं नहीं कुछ भेदा।’                                                                  -रामचरितमानस

17- ‘संवत् सोलह सो असी,   असी   गंग   के    तीर।
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यो शरीर।।’
18- ‘सुरतिय, नरतिय, नागतिय, यह चाहत सब कोय।’
19- ‘का भाषा का संस्कृत, प्रेम चाहिए सांच।
का सु जो आवै कामरी, का लै करअ कुमांच।।’’
20- ‘चारहू फल मानत चारहूं चणक को’

आचार्य शुक्ल के अनुसार तुलसी के बारह ग्रंथ

रामचरितमानस (संवत 1631) – अवधी, प्रबंध (महाकाव्य)यह  7 कांडों में विभक्त है।

कवितावली (संवत 1656) – ब्रज, मुक्तकइसमें 352 छंद व 7 कांड है। यह  काव्य है। तुलसी का आत्मचरित व्यक्त हुआअपने समय के अकाल, महामारी का चित्रण।

विनयपत्रिका – ब्रज, गीति, 279 छंद भक्ति व विनय के पद

दोहावली – अवधी, मुक्तक, 573 दोहे

गीतावली – ब्रज, गीति

रामाज्ञाप्रश्नावली – अवधी, मुक्तक

रामललानहछू – अवधी, प्रबंध

पार्वतीमंगल – अवधी, प्रबंध

जानकीमंगल – अवधीप्रबंध

बरवै रामायण- अवधी, मुक्तक

वैराग्य संदीपनी – मुक्तक

कृष्णगीतावली – ब्रज, गीति

शिवसिंह सरोज में दस ग्रथ और बताए गए हैं

हनुमानबाहुक, रामसतसई, संकटमोचन, रामशलाका, छंदावली, छप्पय रामायण, कडखा रामायण, रोला रामायण, झूलना रामायण, कुण्डिलिया रामायण.

कलिंधर्माधर्म निरूपण भी तुलसी की रचना बताई जाती है।

 

नाभादास (स्वामी हरिदास नाभा)

(1) ये तुलसी के समकालीन थे
(2) ये अग्रदास के शिष्य थे।
(3) भक्त माल मे लिखा – ‘कबीर कानि राखी नहीं वर्णाश्रम षट्दरशनी।
(4) नाभादास ने तुलसीदास को कलिकाल का बाल्मीकि कहा।

भक्तमाल अष्टयाम

 

केशवदास

ये ओरछानरेश महाराज रामसिंह के भाई इंद्रजीत के दरबार में थे।रामचंद्रिका को छंदों का अजायबघर कहा जाता है।
आचार्य शुक्ल ने रामचंद्रिका के आधार पर केशवदास को ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा है।
केशव की भाषा देशज प्रभावित ब्रज है जिसमें संस्कृत की क्लिष्ट पदावलियॉं गुम्फित हैं।

रामचंद्रिका प्रबंध 39 प्रकाश, 125 छंद
कविप्रिया अलंकार ग्रंथ 16 प्रकाश
रसिकप्रिया रस ग्रंथ 16 प्रकाश
वीरसिंहचरित प्रबंध
विज्ञानगीता प्रबंध
रतनबावनी प्रबंध
जहांगीर जसचंद्रिका प्रबंध 

केशवदास की प्रसिद्ध पंक्तियॉं हैं

1 ‘रामचंद्र की चंद्रिका बरनत हौं बहु छंद।                                       रामचंद्रिका.

2 ‘भाषा बोलि न जानहीं जिनके कुल के दास।
भाषाकवि सो मंदमति हि कुल के केशवदास।।’’                               कविप्रिया

3 ‘जदपि सुजाति, सुलच्छनी, सुबरन सरस सुवृंत।
भूषन बिनु न बिराजई कविता, बनिता मित।’’                                 कविप्रिया

4 ‘केसव केसनि अस करी बैरिहु जस न कराहिं।
चंद्रबदनी मृगलोचनी ‘बाबा’ कहिं कहि जाहिं।।’’                              कविप्रिया

5 ‘टोडरमल तुम मित्र मरे सब ही सुख सोयौ।
मोरे हित बरबीर बिना, टकु दीनन रायौ।’                                         वीरसिंह देवचरित

 

सेनापति

(1) पिता – गंगाधर            (2) दादा – परशुराम           (3) गुरू – हीरामणि दीक्षित              (4) भाषा – ब्रज

काव्यकल्पद्रुम
काव्य ऋतु वर्णन (श्लेष चमत्कार व गर्वोक्तियों के लिए प्रसिद्ध)
कवित रत्नाकर (पॉंच तरंगों में विभक्त)

 

प्राणचंद चौहान
रामायण महानाटक (प्रबंध काव्य)

 

माधवदास
रामरासो, अध्यात्मरामायण

 

हृद्यराम
हनुमन्नाटक

 

नरहरि बारहट
पौरूषेय रामायण

 

लालदास
अवध विलास

 

कपूर चंद्र त्रिखा
रामायण (गुरूमुखी, ब्रज)

 

परशुराम देव
रघुनाथ लीला

 

राममल्ल (रामनल्ल) पांडे
हनुमानचरित्र

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