कृष्णकाव्य
कुछ तथ्य-
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संस्कृत/प्राकत/अपभ्रंश साहित्य में कृष्णकथा | |||
कवि | रचना | भाषा | काव्यरूप |
अश्वघोष | ‘ब्रह्मचरित | संस्कृत | |
हालकवि |
गाहा सतसई | संस्कृत | |
वेणिसंहार | संस्कृत | नाटक | |
नाट्यदर्पण | संस्कृत | ||
अलंकार कौसतुभ | संस्कृत | ||
कंदर्प मंजरी | संस्कृत | ||
कृष्ण कथामृत | संस्कृत | ||
श्रीकृष्ण लीलामृत | संस्कृत | ||
जयदेव | गीत गोविंद | ||
बोपदेव | हरिलीला | ||
वेदान्त देशिक | यादवाभ्युदय | ||
हरिचरित काव्य | |||
गोपलीला | |||
कंसनिधन | महाकाव्य | ||
ब्रजबिहारी | |||
गोपालचरित | |||
मुरारीविजय | नाटक | ||
हरविलास | |||
रूपगोस्वामी |
उज्जवलनीलमणि | ||
हरिभक्तिरसामृत | |||
सनातन गोस्वामी | षटसंदर्भ | ||
जीवगोस्वामी | भगवत्संर्भ | ||
गोपाल चंपू |
हिंदी कृष्णकाव्य के संप्रदाय प्रवर्तक प्रमुख आचार्य
1- वल्लभाचार्य (1479 – 1530)
2- आचार्य निम्बार्क (12 वी से 13 वी सदी)
3- आचार्य हितहरिवंश
4- स्वामी हरिदास
5- कृष्ण चैतन्य
कृष्णकथा के हिंदी कवि
अष्टछाप के कवि
सूरदास (1478 – 1583)
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सूरसागर – मुक्तक, ब्रज भागवत का द्वादश स्कंध सूरसारावली – वृहद होली गीत साहित्यलहरी – दृष्टिकूट पदों का संग्रह |
कुंभनदास अकबर के समक्ष गाया गया इनका यह पद बहुत प्रसिद्ध है – संतन को कहा सीकरी सो काम। |
रागकल्पद्रुम
रागरत्नाकर |
परमानंद दास |
परमानंद सागर
दानलीला ध्रुवचरित |
कृष्णदास
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जुगलमान चरित्र |
नंददास (1533) |
रासपंचाध्यायीसाहित्यिक ब्रजरोला छंद. भागवत के दसवें स्कंध के 29 से 33 अध्याय को रास पंचाध्यायी कहते हैं। इसे भागवत पुराण का प्राण कहा जाता है।
भंवरगीतनंद की गोपियॉं तर्क करती हैं।
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गोविंद स्वामी
किंवदन्ती है कि अकबरी दरबार के प्रसिद्ध गायक ‘तानसेन’ ने इनसे पद गायन की शिक्षा ली। |
गोविंद स्वामी के पद |
छीत स्वामी |
चतुर्भुज दास ये कुंभनदास के सात पुत्रें में सबसे छोटे पुत्र थे। |
कीर्तनावली
दाललीला |
निम्बार्क संप्रदाय के कवि
श्रीभट्ट |
युगलशतक – ब्रज (अन्य नाम है – आदिबानी)
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हरिव्यास देव
भक्तमाल में इन्हें श्रीभट्ट का शिष्य बताया गया है। |
सिद्धांत रत्नाउज्जलि – संस्कृत
निम्बार्काष्टोत्तरशतनाम् तत्वार्थचंक पंचसंस्कार निरूपण महावाणी – ब्रज |
परशुराम देव
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परशुराम सागर |
राधावल्लभ संप्रदाय के कवि
हितहरिवंश
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हितचौरासी – राधावल्लभ संप्रदाय का मूल आधार
राधा सुधानिधि – संस्कृत यमुनाष्टक – संस्कृत |
दामोदर व्यास (सेवक जी)
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व्यासवाणी
रागमाला |
चतुर्भुज दास |
द्वादशयश
भक्तिप्रताप हितजू को मंगल षट्ऋतु की वार्ता |
ध्रुवदास |
हितशृंगारलीला, सिंगारसत दानलीला, मानलीला, भजनसत भक्तनामावली, नेहमंजरी |
नेहीनागरीदास
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सखी-संप्रदाय के कवि
स्वामी हरिदास
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सिद्धांत के पद केलिमाल |
बीठल बिपुल नाभादास जी ने इन्हें ‘रससागर की उपाधि दी। |
बिहारिन दास (बिहारीदास)
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बिहारिनदास की वाणी |
जगन्नाथ गोस्वामी स्वामी हरिदास के भाई थे। |
अनन्य सेवानिधि |
नागरीदास |
ये बिहारिनदास के शिष्य थे। ध्रुवदास ने इनके मृदुल स्वभाव की प्रशंसा की है |
सरसदास |
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गौड़ीय संप्रदाय के कवि
रामराय ब्रज में इन्होंने श्रीनित्यानंद से शिक्षा ली। |
आदिवाणी – ब्रज वृतिगौर भाष्य – ब्रज गौरविनोदिनी – संस्कृत वृतिगौरभाष्य – संस्कृत स्तवपंचकम् – संस्कृत गोविंद तत्व दीपिका – संस्कृत |
सूरदास ‘मदन मोहन |
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गदाधर भट्ट ये ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि तथा भागवत के श्रेष्ठ वक्ता थे। |
चंद्रगोपाल |
श्रीराधामाधवाष्टक – संस्कृत श्रीराधामाधवभाष्य – संस्कृत गायत्रीभाज्य – संस्कृत चंद्रचौरासी, ऋतुविहार – ब्रज अष्टायाम सेवासुधा – ब्रज राधाविरह, गौरांग अष्टाया – ब्रज |
माधवदास माधुरी |
केलिमाधुरी, वंशीवट माधुरी, वृंदावन माधुरी, उत्कण्ठा माधुरी, दान माधुरी, मान माधुरी, होरी माधुरी, प्रियाजी की बधाई। |
भगवतमुदित ये भक्तवर माधव मुदित के पुत्र थे। |
वंृदावशत
सिक अनन्यमाल |
भगवान दास |
इनके पद रामराय जी के पदो में बड़ी संख्या में घुलमिल गये हैं |
संप्रदाय निरपेक्ष कवि
मीराबाई (1498 से 1573) |
नरसीजी का माहेरो (मायरा)
नरसी मेहता की हुंडी चरीत रूक्मिणी मंगल, |