हिन्दी साहित्य का इतिहास » भक्तिकाल

कृष्णकाव्य

कुछ तथ्य-

  1. डॉ. भण्डारकर तथा लोकमान्य तिलक वैदिक ऋषि आंगीरस कृष्ण तथा गीता के उपदेष्टा महाभारत कालीन कृष्ण को पृथक-पृथक मानते हैं।
  2. ऋग्वेद के प्रथम, अष्ट्म तथा दशम मंडल में भी कृष्ण का उल्लेख है।
  3. ग्रियर्सन, कैनेडी, वेबर आदि पाश्चात्य विद्वान कृष्ण की बाललीलाओें को क्राइस्ट के चरित का अनुकरण मानते हैं कृष्ण की लीलाओं के भक्त के लिए प्रसाद की प्राप्ति परमध्येय है। इसे उन्होंने लवफीस्ट कहा है।
  4. श्रीकृष्ण विषयक प्रमुख पुराण भागवत (इसकी रचना दक्षिण भारत में हुई थी) में राधा को वह महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त नहीं है, जो हरिवंश, ब्रह्मवैवर्त आदि पुराणों में ।
  5.  रास पंचाध्यायी में तो रासलीली का मोहक वर्णन होते हुए भी राधा का स्पष्ट नामोल्लेख तक नहीं है।
  6. रामभक्ति के लिए प्रसिद्ध दक्षिण के आलवार भक्तों में से कई कृष्ण के भी उपासक थे।
  7. माधुर्य कृष्ण का वर्णन पुराणों से आरंभ होता है। इसके पूर्व महाभारत में षडैश्वर्यशाली कृष्ण (ज्ञात, शक्ति, बल, ऐश्वर्य, वीर्य तथा तेज) का ही वर्णन है।
  8. सहजिया संप्रदाय में कृष्ण और राधा को रस और रति नाम से पुकारते हैं।

 

संस्कृत/प्राकत/अपभ्रंश साहित्य में कृष्णकथा
कवि रचना भाषा काव्यरूप
अश्वघोष ‘ब्रह्मचरित संस्कृत
हालकवि

गाहा सतसई संस्कृत
वेणिसंहार संस्कृत नाटक
नाट्यदर्पण संस्कृत
अलंकार कौसतुभ संस्कृत
कंदर्प मंजरी संस्कृत
कृष्ण कथामृत संस्कृत
श्रीकृष्ण लीलामृत संस्कृत
जयदेव गीत गोविंद  
बोपदेव हरिलीला  
वेदान्त देशिक

यादवाभ्युदय  
हरिचरित काव्य  
गोपलीला  
कंसनिधन   महाकाव्य
ब्रजबिहारी    
गोपालचरित    
मुरारीविजय   नाटक
हरविलास    
रूपगोस्वामी

उज्जवलनीलमणि    
हरिभक्तिरसामृत    
सनातन गोस्वामी षटसंदर्भ  
जीवगोस्वामी भगवत्संर्भ  
  गोपाल चंपू  

हिंदी कृष्णकाव्य के संप्रदाय प्रवर्तक प्रमुख आचार्य

1- वल्लभाचार्य (1479 – 1530)
2- आचार्य निम्बार्क (12 वी से 13 वी सदी)
3- आचार्य हितहरिवंश
4- स्वामी हरिदास
5- कृष्ण चैतन्य

कृष्णकथा के हिंदी कवि

अष्टछाप के कवि

सूरदास (1478 – 1583)

  1. ये गऊघाट निवासी थे।
  2. प्रसिद्ध पंक्तियॉं – मानौ भाई धन-धन अंतर दामिनि।
  3. रामचंद्र शुक्ल ने लिखा – ‘‘सूर की रचना इतनी प्रगल्भ और काव्यांगपूर्ण है कि आगे होने वाली कवियों की उक्तियाँ सूर की जूठी मालूम पड़ती हैं।’’
  4. गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इनकी मृत्यु पर कहा – पुष्टिमारग को जहाज जात है, जो जाको कुछ लेना होय सो लेहु।
सूरसागर – मुक्तक, ब्रज
भागवत का द्वादश स्कंध

सूरसारावली – वृहद होली गीत

साहित्यलहरी – दृष्टिकूट पदों का संग्रह

 

कुंभनदास

अकबर के समक्ष गाया गया इनका यह पद बहुत प्रसिद्ध है – संतन को कहा सीकरी सो काम।

रागकल्पद्रुम

रागरत्नाकर

 

परमानंद दास
परमानंद सागर

दानलीला

ध्रुवचरित

 

कृष्णदास

 

  1. ये श्रीनाथ के मंदिर को संभालते थे।
  2. कहते हैं कि श्रीनाथ मंदिर की वेश्या नर्तकी तथा कृष्णदास दोनों ने इस पद के गाने के साथ अपने प्राण त्यागे –               मो मन गिरिधर छवि पर अटक्यो।
जुगलमान चरित्र

 

नंददास (1533)
रासपंचाध्यायीसाहित्यिक ब्रजरोला छंद. भागवत के दसवें स्कंध के 29 से 33 अध्याय को रास पंचाध्यायी कहते हैं। इसे भागवत पुराण का प्राण कहा जाता है।

भंवरगीतनंद की गोपियॉं तर्क करती हैं।

  1. इनकी अन्य रचनाएँ हैं- गोवर्धनलीला (75 पद), अनेकार्थमंजरी, मानमंजरी, रसमंजरी, रूपमंजरी, विरहमंजरी, सुदामाचरित, रूक्मिणीमंगल, सिद्धांत पंचाध्यायी, दशस्कंध भाषा, नंददास पदावली, प्रेमबारहखड़ी, श्यामसगाई, छानशीलता, मानलीला, अनेकार्थ मंजरी (कोश ग्रंथ), अनेकार्थ नाममाला (कोश ग्रंथ)
  2. नाभादास ने इन पर एक छप्पय लिखा – ‘चंद्रहस अग्रज सहद परमप्रेम पथ में पगे।’
  3. इनके संबंध में प्रसिद्ध कहावत है- और कवि गढ़िया, नंददास जडिया।
  4.  विद्वानों ने रासपंचाध्यायी को हिंदी का गीतगोविंद कहा।
  5. नन्ददास को ब्रज भाषा का जड़िया कहा गया।
  6. प्रसिद्ध पंक्तियॉं -‘ताही छन उडुराज उदित रस-रास-सहायक। कुंकुम-मंडित-बदल प्रिया जनु नागरि नायक।।’’

 

गोविंद स्वामी

किंवदन्ती है कि अकबरी दरबार के प्रसिद्ध गायक ‘तानसेन’ ने इनसे पद गायन की शिक्षा ली।

गोविंद स्वामी के पद

 

छीत स्वामी

 

चतुर्भुज दास

ये कुंभनदास के सात पुत्रें में सबसे छोटे पुत्र थे।

कीर्तनावली

दाललीला

निम्बार्क संप्रदाय के कवि

श्रीभट्ट
युगलशतक – ब्रज (अन्य नाम है – आदिबानी)

  1. युगलोपासना में श्री राधा जी का प्राधान्य दृष्टिगोचर होता है।
  2. इस ग्रंथ का भाव ‘गोपीभाव’ या ‘सखिभाव’ है।
  3. श्रीभट्ट को संप्रदाय में ‘हितू सखि’ का अवतार माना जाता है।
  4. यह पद गाते हुए इन्हें राधाकृष्ण की झलक दिखी थी – भींजत कब देखौं इन नैना।
  5. युगलशतक के रचनाकाल संबंधी एक दोहा उसी में है –
    नयन बान पुनि राग ससि, गनां अंक गति बात।
    युगलशतक पूरन भयौ, संवत अति अभिराम।।’’

 

हरिव्यास देव

भक्तमाल में इन्हें श्रीभट्ट का शिष्य बताया गया है।

सिद्धांत रत्नाउज्जलि – संस्कृत

निम्बार्काष्टोत्तरशतनाम्

तत्वार्थचंक

पंचसंस्कार निरूपण

महावाणी – ब्रज

 

परशुराम देव 

  1. ये हरिव्यास देव के शिष्य थे।
  2. यह ही संप्रदाय की गद्दी को ब्रज से सलेमाबाद ले गए।
परशुराम सागर

राधावल्लभ संप्रदाय के कवि

हितहरिवंश

  1. राधावल्लभ संप्रदायकी स्थापना की।
  2. ये वंशी के अवतार माने जाते हैं।
  3. इनका गुरू श्रीराधा जी को स्वीकार किया जाता है।
  4. इनकी मृत्यु पर श्री हरिराम व्यास ने लिखा – हुतो रस रसकिन को आधार।
हितचौरासी – राधावल्लभ संप्रदाय का मूल आधार

राधा सुधानिधि – संस्कृत 

यमुनाष्टक – संस्कृत

 

दामोदर व्यास (सेवक जी)

  1. व्यास जी विशाखा सखि के अवतार माने जाते हैं।
व्यासवाणी

रागमाला

 

चतुर्भुज दास
द्वादशयश

भक्तिप्रताप

हितजू को मंगल

षट्ऋतु की वार्ता

 

ध्रुवदास
हितशृंगारलीला, सिंगारसत
दानलीला, मानलीला, भजनसत
भक्तनामावली, नेहमंजरी

नेहीनागरीदास

  1. नेहीनागरीदास जी की हितवाणी और नित्यविहार में अनन्यनिष्ठा थी
  2. इनका एक प्रसिद्ध पद है, जिसका संप्रदाय में बहुत मान है। यह पद राधाष्टक नाम से जाना जाता है, जिसमें राधा और हरिवंश को छोड़कर और किसको कुछ भी स्वीकार नहीं किया गया है।

सखी-संप्रदाय के कवि

स्वामी हरिदास

  1. सखी संप्रदाय की स्थापना की।
  2. इसको टट्टी संप्रदाय भी कहते हैं।
  3. हरिदास अपने समय के महान संगीतज्ञ व ध्रुपद के गायक थे।
  4. तानसेन इनके शिष्य थे।

सिद्धांत के पद

केलिमाल

बीठल बिपुल

नाभादास जी ने इन्हें ‘रससागर की उपाधि दी।

बिहारिन दास (बिहारीदास)

  1. ये बीठल बिपुल के शिष्य थे।
  2. इस संप्रदाय के श्रेष्ठ कवि और सिद्धांत व्याख्याता हुए हैं।
  3. इस संप्रदाय में ये गुरूदेव नाम से प्रसिद्ध हैं।
  4. यह हरिदासी उपासना के लिए प्रणाम कोटि में ग्रहीत हैं।
  5. इन्होंने अपने मत को वैदिक सिद्ध करते हुए लिखा –
    वेदन कह्यो सो हम कियौ, औरन के मत छोरि।
    कहत बिहारिन दास यह , अनन्य सभा में डोरि।।’’
बिहारिनदास की वाणी

 

जगन्नाथ गोस्वामी

स्वामी हरिदास के भाई थे।

अनन्य सेवानिधि

 

नागरीदास
ये बिहारिनदास के शिष्य थे।
 ध्रुवदास ने इनके मृदुल स्वभाव की प्रशंसा की है

 

सरसदास
  1. नागरीदास के छोटे भाई थे।
  2. इनके 66 पद अष्टाचायों की वाणी में सग्रंहीत हैं।

गौड़ीय संप्रदाय के कवि

रामराय

 ब्रज में इन्होंने श्रीनित्यानंद से शिक्षा ली।
 इससे पहले ये विट्ठलनाथ के शिष्य थे।

आदिवाणी – ब्रज
वृतिगौर भाष्य – ब्रज
गौरविनोदिनी – संस्कृत
वृतिगौरभाष्य – संस्कृत
स्तवपंचकम् – संस्कृत
गोविंद तत्व दीपिका – संस्कृत

 

सूरदास ‘मदन मोहन
  1. बाबा कृष्णदास की सहृद्वाणी में इनके 105 पद हैं।
  2. यह अकबर के दीवान और संडीले में नियुक्त थे।
  3. खजाने के विवरण में लिख भेजा –
    तेरह लाख संडीले उपजे, सब साधुन मिलि गटके।
    सूरदास मदनमोहन, वृंदावन को सटके।।

 

दाधर भट्ट

ये ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि तथा भागवत के श्रेष्ठ वक्ता थे।

 

चंद्रगोपाल
श्रीराधामाधवाष्टक – संस्कृत
श्रीराधामाधवभाष्य – संस्कृत
गायत्रीभाज्य – संस्कृत
चंद्रचौरासी, ऋतुविहार – ब्रज
अष्टायाम सेवासुधा – ब्रज
राधाविरह, गौरांग अष्टाया – ब्रज

 

माधवदास माधुरी
केलिमाधुरी, वंशीवट माधुरी, वृंदावन माधुरी, उत्कण्ठा माधुरी, दान माधुरी, मान माधुरी, होरी माधुरी, प्रियाजी की बधाई।

 

भगवतमुदित

ये भक्तवर माधव मुदित के पुत्र थे।

वंृदावशत

सिक अनन्यमाल

 

भगवान दास
इनके पद रामराय जी के पदो में बड़ी संख्या में घुलमिल गये हैं

संप्रदाय निरपेक्ष कवि

मीराबाई (1498 से 1573)
नरसीजी का माहेरो (मायरा)

नरसी मेहता की हुंडी

चरीत

रूक्मिणी मंगल,

Pages: 1 2 3 4 5 6 7

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *