रीतिकाव्य आचार्य
जसवंत सिंह | |
(1) भाषाभूषण (अ-नि- व ना-नि) (2) प्रबोधचंद्रोदय नाटक (ब्रजभाषा गद्य) |
चिंतामणि | |
(1) कवि कुलकल्पतरू (स-नि-, ब्रजभाषा गद्य) (2) पिगल (3) रामायण (प्रबंध) (4) कृष्णचरित (प्रबंध) , शंृगार मंजरी (ब्रजभाषा गद्य) |
भिखारी दास | |
(1) रस सारांश (र-नि) (2) छंदार्णव पिंगल (छ-नि) (3) काव्य निर्णय (स-नि) (4) शंृगार निर्णय (ना-नि) |
प्रताप सिंह | |
(1) व्यंग्यार्थ कौमुदी (ना- वि- तथा ध्वनि सं- प्र- संबंधी, ब्रजभाषा गद्य) (2) अलंकार चिंतामणि (3) जयसिंह प्रकाश (4) काव्य विनोद (5) शृंगारशिरोमणि (6) काव्य विलास (काव्यशास्त्रीय ग्रंथ, ब्रजभाषा गद्य) |
ग्वाल | |
(1) अलंकार भ्रम भंजन (अ-नि-, ब्रजभाषा गद्य) (2) रसरंग (र- नि-), (3) कवि हृद्यविनोद, (4) रसिकानंद, (5) नेहनिबा, (6) हम्मीरहठ, (प्रबंधकाव्य, वीरकाव्य), (7) कुब्जानाटक, (8) इश्कलहरदरियाव, (9) नखशिख, (10) दूषणदर्पण, (11) राधामाधव मिलन, (12) विजयविनोद (प्रबंधकाव्य), (13) गोपीपच्चीसी (प्रबंधकाव्य) |
कुलपति
हिंदी रीतिशास्त्र में ध्वनि के पहले आचार्य |
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(1) रसरहस्य (1670, सं- नि-, ब्रजभाषा गद्य) |
सुखदेव | |
(1) रसार्णव (र-नि-) (2) वृत विचार (छ- नि) (3) छंद विचार |
कालिदास | |
(1) कालिदास हजारा (2) वारबधूविनोद (ना-नि) (3) राधामाधवबुधमिलनविनोद (ना-नि-) |
तोष | |
(1) सुधानिधि (र-नि-) (2) नखशिख (3) विनयशतक |
सोमनाथ | |
(1) रसपीयूषनिधि (स-नि-, ब्रजभाषा गद्य) (2) शंृगार विलास (3) माधवविनोद (नाटक) (4) पंचाध्यायी (5) सुजानविलास (प्रबंधकाव्य) |
दूलह | |
(1) कविकुलकण्ठाभरण (अ-नि-) |
रसिक सुमति | |
(1) अलंकार चंद्रोय (अ-नि-) |
कुमारमणि | |
(1) रसिक रंजन (शंृगार नि-), (2) रसिक रसाल |
देव (वास्तविक नाम देवदत्त)
1673 से 1778 पंक्तियॉं – ‘अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणा हीन। ‘बानी को सार बखान्यो सिंगार, सिंगार को सार किसोर किसोरी।’ ‘भरि रही भनक-भनक तार ताननि की तनक-तनक तामें झनक चुरीन की।’ ‘सांसन ही में समीर गयो अरू आंसून ही बन नीर गयो हरि।’ ‘बडे-बडे नैनन सों आंसू भरि-भरि ढरि।’ गारो-गारो मुख आज ओरो सो बिलानो जात। ‘डारि द्रुम पलना, बिछौना नवपल्लव के, सुमन झॅंगूला साहै तब छबि के भारी दै। |
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(1) शब्द रसायन या काव्यरसायन (स-नि-), (2) भावविलास (3) अष्टयाम (4) जातिविलास (5) सुजान विनोद, (6) सुखसागर तरंग, (7) देवमायाप्रपंच (नाटक), (8)प्रेमचंद्रिका |
रसिक गोविंद | |
(1) रसिकगोविंदाघन (ब्रजभाषा गद्य), (2) युगलरसमाधुरी, (3) रामायण सूचनिका (प्रबंधकाव्य) |
अमीरदास | |
(1) सभा मंडन (स-नि-), (2) दूषण उल्लास, (3)व्रतचंद्रोदय |
रसलीन | |
(1) रस प्रबोध (र-नि), (2) अंगदर्पण (नखशिख) |
पद्माकर (1753 से 1833, बंदेलखण्ड) | |
(1) जगद्विनोद ( 731 छंदों का 6 प्रकरणों) (र-नि), (2) पद्माभरण (अ-नि-) (3) हिम्मतबहादुर विरूदावली (प्रबंधकाव्य, वीरकाव्य), (4) गंगालहरी (5) प्रतापसिंह विरूदावली (6) कलिपच्चीसी (7) प्रबोधपचासा (8) रामरसायन (प्रबंधकाव्य) |
बेनी प्रवीन | |
(1) नवरसतरंग (र-नि), (2) शंृगार भूषण (शृं- नि-) |
याकूब खां | |
(1) रसभूषण (र-नि- व अ- नि-) |
उजियारे | |
(1) रसचंद्रिका (र-नि), (2) जुगलरस प्रकाश (र- नि-) |
रामसिंह | |
(1) अलंकार दर्पण (अ-नि-), (2) रसनिवास(र-नि-) (3) रस शिरोमणि (शंृ- नि-) (4) जुगलविलास (र-नि- प्रबंधकाव्य) |
चंद्रशेखर वाजपेई | |
(1) रसिक विनोद (र-नि), (2) हम्मीरहठ (प्र-का-) (3) नखशिख |
मतिराम (1604)
ये आचार्य चिंतामणि और कवि भूषण के भाई थेे। पंक्तियॉं – ‘ज्यों-ज्यों निहारिये तेरे ह्वै नैननि त्यों-त्यों खरी निखरै सी निकाई।’ ‘आंखिन ते गिरे आंसू के बूंद सुहास गयो उडि हंस की नाई।’ ‘ह्वै बनमाल हिये लगिये अरू ह्वै मुरली अधरा रस पीजै’ ‘कोऊ कितेक उपायकरो कहुं होत है आपनो पिउ पराये।’ ‘केलि के राम अघाने नहीं दिनहू में लला पुनि घात लगाई।’ |
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(1) रसराज (ना-नि-), (2) ललितललाम (अ-नि) – सौ अलंकारों के लक्षण व उदाहरण (3) अलंकारपंचाशिका (अ-नि-), (4) वृतकौमुदी या छंद सार (छंद निरूपक) , (5) सतसई |
कृष्ण भट्टिदेव ऋषि | |
(1) शंृगाररस माधुरी (ना-नि-), (2) अलंकारकला निधिमाधुरी (अ-नि) |
भूषण (1613 से 1717)
इनका वास्तविका नाम घनश्याम था। इनको भूषण की उपाधि चित्रकूट के राजा रुद्रसाह सोलंकी ने दी – ‘‘कवि भूषण पदवी दई, हृदैराम सुत रुद्र’’ |
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(1) शिवराज भूषण (अ-नि-, मुक्तक)- 105 अलंकारों का विवेचन। उदाहरणों में महाराजा शिवाजी की प्रशस्ति है। (2) शिवाबावनी (मुक्तक) – 52 छंदों में शिवाजी की कीर्ति है। (3) छत्रसालदशक (मुक्तक) – 10 छंदो में छत्रसाल बुन्देला का यशोगान। (4) भूषण हजारा (5) भूषण उल्ला (6) दूषण उल्लास |
गोप | |
(1) रामालंकार (अ-नि-), (2) रामचंद्रभूषण (अ-नि) (3) रामचंद्राभरण (अ-नि) |
रघुनाथ बंदीजन | |
(1) रसिक मोहन (अ-नि-) (2) काव्यकलाधर (3) रसरहस्य (4) सभासार (5) इश्कमहोत्सव |
रसरूप | |
(1) तुलसीभूषण (अ-नि-) |
सेवादास | |
(1) रघुनाथ अलंकार (अ-नि-) (2) रसदर्पण (र-नि-) (3) अलबेले लालजू को नखशिख (4) अलबेले लालजू को छप्पय |
गिरधर दास | |
(1) भारती भूषण (अ-नि-) |
मुरलीधर भूषण | |
(1) छंदोहृदय प्रकाश (छ-नि-) (2) अलंकारप्रकाश (अ-नि-) |
रामसहाय | |
(1) वृततरंगिणी (छ-नि-)(ब्रजभाषा गद्य) (2) वाणी भूषण (3) शंृगार सतसई |
माखन | |
(1) श्रीनाथपिंगल अथवा छंदविलास (छ-नि-) (2) विनोदशतक, (3) सुदामाचरित |
दशरथ | |
(1) वृतविचार (छ-नि-) |
जनराज | |
(1) कविता रसविनोद (स-नि-) |
समनेस | |
(1) रसिकविलास (र-नि-) |
उजियारे | |
(1) रसचंद्रिका (र-नि-) |
नवीन | |
(1) सतरंग (र-नि-) (2) सुधाकर |
दलपतिराय | |
(1) अलंकार रत्नाकर (अ-नि-)(ब्रजभाषा गद्य) |
गोविंद | |
(1) कर्णाभरण (अ-नि-) |
बैरीसाल | |
(1) भाषाभरण (अ-नि-) |
नंद किशोर | |
(1) पिंगलप्रकाश (छ-नि-) |
श्रीपति | |
(1) काव्य सरोज (स-नि-) |