रीतिकाल के नाटक
जसवंत सिहं | |
प्रबोधचंद्रोदय नाटक |
राम | |
हनुमन्नाटक |
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शकुंतला नाटक |
सोमनाथ | |
माधवविनोद नाटक |
ब्रजवासीदास | |
प्रबोधचंद्रोदय नाटक पंक्ति- ‘यामें कछुक बुद्धि नहिं मेरी, उक्ति युक्ति सब सूरहिं केरौ।’ |
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