रीतिकाल की रामकाव्य धारा
सेनापति | |
(1) कवितरत्नाकर
पंक्तियॉं – ‘सेवक सियापति को, सेनापति कवि सोई ‘फरि एक बैठि कहॅूं फामै बितकति है।’ ‘नाहीं-नाहीं करै थोरी मॉंगे सब दैन कहैं।’ ‘आने हैं पहार मानौ काजर के ढोइ कै।’ ‘राम कैसो जस अध-ऊरध गगन है।’ |
लालदास | |
अवधविलास |
गुरू गोविन्दसिंह | |
गोविंदरामायण |
जानकीरसिक शरण | |
अवधसागर |
भगवन्तराम खींची | |
हनुमत्पच्चीसी |
महंत जनकराजकिशोरीशरण जी | |
(1) सीताराम सिद्धांत मुक्तावली (2) जानकीकरूणाभरण (3) रघुवरकरूणभरण (4) सीताराम (5) रसतरंगिणी |
नवलसिंह कायस्थ | |
(1) आल्हा रामायण, (2) रामचंद्र विलास (3) अध्यात्मरामायण (4) रूपकरामायण (5) नामरामायण |
महाराज विश्वनाथ सिंह | |
आनन्द रघुनंदन नाटक (यह हिंदी का पहला नाटक माना जाता है) |
महंत रामप्रियाशरणदास जी | |
(1) सीतायन |
रसिकअली | |
षड्ऋतुपदावली, होरीमिथिलाविहार, अष्टयाम |
सरजूराम पण्डित | |
जैमिनीपुराण भाषा |
कृपानिवास
रामायत ‘सखी’ संप्रदाय के प्रवर्तक |
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(1) भावनापच्चीसी (2) माधुरीप्रकाश (3) समयप्रबंध (4) जानकी सहस्रनाम |
मधुसूदन | |
रामाश्वमेघ |
जानकीशरणजी | |
सियाराम रसमंजरी |
गोकुलनाथ | |
सीतारामगुणार्णव |
बालअजीजू | |
नेहप्रकाश |
मनियार सिंह | |
हनुमतछब्बीसी, सौन्दर्यलहरी, सुंदरकांड |
ललकदास | |
सत्योपाख्यान |
बख्शी हंसराज श्रीवास्तव ‘प्रेमसखी’ | |
श्रीराम तथा सीताजी का नखशिख |
रामशरणदास | |
रामस्नेही पंथ की स्थापना, स्वसुखी शाखा का प्रवर्तन |
जीवाराम | |
तत्सुखी शाखा का प्रवर्तन |
युगलानन्दशरण | |
सखी भाव की उपासना का प्रचार किया |