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झाँसी की रानी
सुभद्रा कुमारी चौहान
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन् सत्तावन में
वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- भृकुटी – भौंहें। गुमी – खोई। फ़िरंगी – विदेशी, अंग्रेज, भारत में यह शब्द अंग्रेजों के लिए प्रयुक्त। बुंदेले हरबोलों – बुंदेलखंड की एक जाति विशेष, जो राजा-महाराजाओं के यश गाती थीं।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि किस तरह उन्होंने गुलाम भारत को आज़ाद करवाने के लिए हर भारतीय के मन में चिंगारी लगा दी थी। जब लक्ष्मीबाई झाँसी की रानी बनी तो उन्होंने भारतीय जनता में आजादी का मन्त्र फूंक दिया। अंग्रेजों के द्वारा गुलाम बनाये गये राजाओं ने भी अंग्रेजों से युद्ध करने का संकल्प लिया। क्रोध में उनकी भौहें तन उठी और देश में उथल-पुथल मच गई। भारत जो आजादी की आशा ही छोड़ चुका था उसमें एक नई आशा जागी। उन्होने आजादी के महत्व को पहचाना। सबने अंग्रेजों को भारत से बाहर करने निश्चय कर लिया। इस प्रकार सन् 1857 में फिर से अतीत के गौरव की वह तलवार युद्ध में चमक उठी। इस कहानी को बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं कि झाँसी की रानी ने अंग्रेजों के साथ पुरुषों की भांति जमकर युद्ध किया था।
कानपूर के नाना की मुँहबोली बहन ‘छबीली’ थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी,
वीर शिवाजी की गाथाएँ
उसको याद जबानी थीं।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध, व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसके प्रिय खिलवार,
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी
भी आराध्य भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- व्यूह रचना – समूह, युद्ध में सुदृढ़ रक्षा-पंक्ति बनाने के उद्देश्य से सैनिकों का किसी विशेष क्रम में खड़ा होना।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का वर्णन किया है। लक्ष्मीबाई स्वयं वीरता की अवतार स्वरूप दुर्गा लगती थी। मराठे उसकी तलवार के वार को देखकर खुश होते थे। लक्ष्मीबाई व्यूह-रचना, तलवारबाज़ी, लड़ाई का अभ्यास तथा दुर्ग तोड़ना इन सब खेलों में माहिर थीं। मराठाओं की कुलदेवी भवानी उनकी भी पूजनीय थीं। वह वीर होने के साथ-साथ धार्मिक भी थीं। ऐसी वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाईं झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में,
चित्र ने अर्जुन को पाया,
शिव से मिली भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- सुभट – रणकुशल, योद्धा। विरुदावली – विस्तृत कीर्ति गाथा, बड़ाई।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का वर्णन किया है। लक्ष्मीबाई वीरता की साकार मूर्ति थी। उनकी सगाई झाँसी के राजा के साथ हो गई और वे विवाह करके झाँसी की रानी बन गई। राजभवन में बधाइयाँ बजीं, खूब खुशियाँ मनाई गई। रणकुशल योद्धा की विस्तृत कीर्ति गाथा के रूप वह झाँसी में आई। जैसे चित्रा ने अर्जुन को और पार्वती ने शंकर जी को प्राप्त किया था वैसे ही उन्होंने झाँसी के राजा को उसी प्रकार प्राप्त किया था। ऐसी वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं,
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई,
निःसन्तान मरे राजा जी
रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- मुदित – मोदयुक्त, आनंदित। विधि – विधाता।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के विधवा होने की घटना का उल्लेख किया है। रानी जब झाँसी आई तो ऐसा लग रहा था मानो झाँसी का सौभाग्य उदय हो गया है। महल में प्रसन्नता का वातावरण था। किन्तु काल की गति के कारण दु:ख के बादल छा गए। विधाता को भी रानी के तीर चलाने वाले हाथों में चूड़ियाँ नहीं सुहाई। राजा की असमय मृत्यु से रानी विधवा हो गई। राजा निसंतान ही वीरगति को प्राप्त हो गई और रानी शोक में डूब गई। ऐसी वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया,
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा
झाँसी हुई बिरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- बुझा दीप – झाँसी के राजा की मृत्यु। हरषाया – खुश हुआ। दुर्ग – किला। अश्रुपूर्ण – आँसू बहते हुए।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी के राजा की मृत्यु के बाद का वर्णन करते हुए कहा है कि जब राजा की मृत्यु हो गई तो अंग्रेज गवर्नर डलहौजी अत्यंत खुश हुआ। उसको लगा कि अब झाँसी हड़पने का अच्छा मौका है। उसने अपनी फौजें झाँसी की ओर भेज दी और किले पर अपना झण्डा फहरा दिया। वह लावारिस झाँसी का मालिक बन बैठा। आँखों में आँसू भर कर लक्ष्मीबाई ने देखा कि झाँसी परायी हुई जा रही है। ऐसी वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
अनुनय विनय नहीं सुनता है, विकट फ़िरंगी की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया,
रानी दासी बनी, बनी यह
दासी अब महरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- अनुनय विनय – विनती। विकत – भयंकर। पैर पसारे – सभी राज्यों पर अधिकार जमाना।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने अंग्रेजों की कपटी चाल का वर्णन करते हुए कहा है कि अंग्रेज़ पहले भारत में व्यापारी बनकर आए थे और फिर धीरे-धीरे यहाँ के सभी बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं और रानियों से दया और सहायता की भीख मांगकर, उनका ही राज्य हड़प लिया था। उन राज्यों की रानियाँ अंग्रेज़ो की दासी बनी, किन्तु लक्ष्मीबाई अन्य राजा-रानियों से अलग थी और उसने महारानी की तरह झांसी को संभाला। ऐसी वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजोर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात,
जब कि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात,
बंगाले, मद्रास आदि की
भी तो यही कहानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- घात – हमला। बिसात – हिम्मत।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने अंग्रेजों द्वारा भारतीय राज्यों को हड़पने का वर्णन करते हुए कहा है कि अंग्रेजों ने दिल्ली, लखनऊ को बड़ी आसानी से अपने कब्जे में कर लिया, पेशवा को बिठूर में कैद कर लिया। नागपुर, उदयपुर, तंजौर, सतारा, कर्नाटक आदि का तो कहना ही क्या उन्होंने सिंध, पंजाब, ब्रह्मपुत्र, बंगाल, मद्रास आदि नगरों समेत पूरे भारत को अपने अधीन कर लिया। ऐसी कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
रानी रोईं रनिवासों में, बेगम गम से थीं बेजार,
उनके गहने-कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाजार,
सरे-आम नीलाम छापते थे अंग्रेजों के अखबार,
‘नागपुर के जेवर ले लो’ ‘लखनऊ के लो नौलख हार’,
यों परदे की इज्जत पर-
देशी के हाथ बिकानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- रनिवासों – रानियों के रहने का स्थान। बेगम – स्त्रियाँ। गम – दुख। बेजार – बुरे हाल।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने क्रूर अंग्रेज़ों की निर्लज्जता का वर्णन है कि वे राजाओं तथा नवाबों की हत्या के बाद उनके राज्य तो हड़पते ही, साथ ही उनकी रानियों और बेगमों की इज़्ज़त से भी खिलवाड़ करते थे। चाहे वह लखनऊ की बेगम हों, या कलकत्ता और नागपुर की रानियां। उनके कपड़े और ज़ेवर तक छीन कर नीलाम कर दिए जाते थे। इस प्रकार भारतीय पर्दे की इज्जत विदेशी के हाथों बिक रही थी। ऐसी कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
कुटियों में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आह्नान,
हुआ यज्ञ प्रारंभ उन्हें तो
सोई ज्योति जगानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- कुटियों – झोपड़ियों। आहत – दुखी। पुरखों – पूर्वजों। अभिमान – गर्व।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि इस पद में बताया गया है कि चाहे झोपड़ी में रहने वाला गरीब हो या महलों में रहने वाला राजा, उनके मन में अपने वीर पूर्वजों का अभिमान जाग गया था। सभी के मन में अंग्रेज़ों के लिए विद्रोह की चिंगारी धधक रही थी। सभी नाना साहब, पेशवा जी के नेतृत्व में युद्ध करने को तैयार थे। साथ में उनकी मुँहबोली बहन लक्ष्मीबाई ने भी हार ना मानकर, उनके साथ अंग्रेज़ों से लड़ने का निर्णय कर लिया था। अब चारों ओर अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह की चिंगारी जलायी जा रही थी। ऐसी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थीं,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी
कुछ हलचल उकसानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- अंतरतम – मन से। उकसानी – बढ़ावा देना।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि विद्रोह की चिंगारी हर क्षेत्र में सुलग रही थी, चाहे वो झांसी हो या लखनऊ। दिल्ली, मेरठ, कानपुर तथा पटना राज्यों के राजाओं ने भी इसमें अपना पूरा साथ दिया। साथ ही साथ जबलपुर और कोल्हापुर जैसे बड़े शासकों ने भी क्रांति में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। ऐसी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
इस स्वतंत्रता-महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,
अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास-गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम,
लेकिन आज जुर्म कहलाती,
उनकी जो कुरबानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- जुर्म – गलती।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने और शहीद होने वाले कई बड़े वीरों का उल्लेख किया गया है। नाना धुंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम, अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंह, तथा सैनिक अभिराम आदि ऐसे ही वीर और साहसी क्रांतिकारी थे, जिन्होंने युद्ध में दुश्मनों से संघर्ष करते हुए प्राण त्याग दिए। अंग्रेज़ उनके क्रांतिकारी कदम को जुर्म मानते थे, वो वास्तव में उनकी देश के प्रति कुर्बानी थी। ऐसी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
इनकी गाथा छोड़ चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्रि़ टनेन्ट वॉकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में,
जख्मी होकर वॉकर भागा,
उसे अजब हैरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- गाथा – कहानी। द्वंद्व – युद्ध। जख्मी – घायल।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि रानी लक्ष्मीबाई की वीरता और उनके अद्भुत युद्ध कौशल की कहानियाँ झाँसी के मैदानों में बिखरी पड़ी हैं। रानी पुरुषों की तरह अंग्रेजों से लड़ती थी। अंग्रेजों की सेना का लेफ्टिनेंट वॉकर रानी से युद्ध करने के लिए आगे आया। रानी ने अपनी चमचमाती तलवार खींच ली और इसके साथ ही दो बिना बराबरी के योद्धाओं (एक पुरुष व एक महिला) में युद्ध प्रारम्भ हो गया किन्तु वह शीघ्र ही घायल होकर मैदान से भाग गया और एक महिला के प्रदर्शन को देखकर हैरान हुआ। ऐसी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना-तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार,
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया
ने छोड़ी रजधानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- कालपी – जगह का नाम। तत्काल – तुरंत।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि झाँसी पर अपना कब्ज़ा वापिस लेने के लिए वह अपनी एक छोटी-सी टुकड़ी लेकर लगभग सौ मील का लम्बा सफर तय करके कालपी आ पहुँची। अत्यधिक थकान के कारण रानी का प्रिय घोड़ा बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा और अगले ही पल उसकी मृत्यु हो चुकी थी। घोड़े की मृत्यु से रानी को झटका लगा किन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी। यमुना के किनारे रानी ने अग्रेजों को हराकर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया और अंग्रेजों का मित्र सिंधिया ग्वालियर छोडकर भाग गया। ऐसी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की कहानी हमने सुनी है जो बुन्देलखण्ड के हरबोले (गवैये) गाते हैं।
विजय मिली, पर अंग्रेजों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थीं,
युद्ध क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी,
पर, पीछे ह्यू रोज आ गया,
हाय ! घिरी अब रानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- मुँह की खाई – हार जाना।
तो भी रानी मार-काटकर चलती बनी सैन्य के पार,
किंतु सामने नाला आया, था यह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गए सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार,
घायल होकर गिरी सिंहनी
उसे वीर-गति पानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- विषम – विपरीत। बहुतेरे – बहुत सारे।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि शत्रुओं से घिरकर भी रानी वीरता से उन्हें मारकर अपने लिये रास्ता निकाल लेती थी किन्तु एक नाले के पास नया घोड़ा आगे न जा पाने से शत्रुओं ने उसे घेर कर बुरी तरह घायल कर दिया। इस प्रकार वह बहादुर सिंहनी लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई। बुन्देले हरबोले आज भी उसकी गौरव गाथा गाकर बताते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई ने बड़ी बहादुरी से युद्ध किया था।
रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई
हमको जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- सिधार – प्राण त्याना, मर जाना। मिला तेज से तेज – आत्मा का परमात्मा से मिलन। मनुज – मनुष्य। पथ – रास्ता।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई स्वर्ग सिधार गई। अब उसकी अलौकिक सवारी स्वर्ग का विमान था। उसकी आत्मा का तेज परमात्मा के तेज से मिल गया। वह इसकी सच्ची अधिकारिणी भी थीं। तेईस साल की उम्र में उसकी वीरता को देखकर ऐसा लगता था कि वह कोई मनुष्य नहीं थी बल्कि अवतार लेकर आई थी। वह स्वतन्त्रता की देवी हमें एक नया जीवन देने आई थीं। वह हमें स्वतन्त्रता का रास्ता दिखा गई और अपने देश को आजाद कराने का पाठ पढ़ा गई। बुन्देलखण्ड के हरबोले इस कहानी को गाते हैं कि वह मर्दो जैसे युद्ध करने वाली रानी जो बड़ी वीरता से लड़ी थी, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ही थी।
जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारत वासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फ़ाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी,
तेरा स्मारक तू ही होगी,
तू खुद अमिट निशानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।।
शब्दार्थ :- कृतज्ञ – आभारी। मदमाती – गर्व से भरी। स्मारक – याद रखने के बनाया गया स्थान।
भावार्थ :- सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा लिखित ‘झाँसी की रानी’ कविता की इन पंक्तियों में लेखिका ने झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साहस और बलिदान का वर्णन करते हुए कहा है कि रानी का यह बलिदान सभी देशवासी हमेशा याद रखेंगे। चाहे दुश्मन अपनी वीरता का परचम लहरा रहा हो या फिर वो अपनी तोप के गोलों से झांसी को ही मिटा दे, लेकिन झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हमारे मन में हमेशा बसी रहेंगी। चाहे उनका कोई स्मारक ना बने, लेकिन वो वीरता तथा साहस का एक उदाहरण बनकर हमारे इतिहास में हमेशा-हमेशा के लिए अमर रहेंगी।
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प्रश्न-अभ्यास
कविता से
प्रश्न:-‘किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई’
(क) इस पंक्ति में किस घटना की ओर संकेत है?
उत्तर:- इस पंक्ति में रानी लक्ष्मीबाई के पति के वीरगति प्राप्त होने की घटना की ओर संकेत है।
(ख) काली घटा घिरने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर:- जब आसमान में काली घटा घिरती है तो सब ओर अंधेरा छा जाता है, इसी तरह जब जीवन में काली घटा घिरती है तो जीवन में अचानक विपत्ति से सामना होता है। रानी लक्ष्मीबाई के पति का प्राण त्यागना रानी के जीवन में काली घटा घिरने के समान ही था, इसलिए काली घटा घिरने की बात कही गई है।
प्रश्न :- कविता की दूसरी पंक्ति में भारत को ‘बूढ़ा’ कहकर और उसमें ‘नई जवानी’ आने की बात कहकर सुभद्रा कुमारी चौहान क्या बताना चाहती हैं?
उत्तर :- अंग्रेजों की गुलामी के कारण भारत लंबे समय तक हर तरह से कमज़ोर हो रहा था। भारत की दशा बहुत शिथिल और जर्जर हो चुकी थी। इसलिए कवयित्री ‘सुभद्रा कुमारी चौहान ने भारत को ‘बूढ़ा कहा।
‘नई जवानी’ आने की बात कहकर कवयित्री बताना चाहती थी कि अपनी खोई हुई आज़ादी को प्राप्त करने के लिए देश में नया उत्साह उत्पन्न हो गया था।
प्रश्न:- झाँसी की रानी के जीवन की कहानी अपने शब्दों में लिखो और यह भी बताओ कि उनका बचपन तुम्हारे बचपन से कैसे अलग था?
उत्तर:- रानी लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम छबीली था। वह इकलौती संतान थी। कानपुर के नाना की वह मुँहबोली बहन थी। लक्ष्मीबाई को मनु के नाम से भी जाना जाता था। उनको बचपन से ही हथियार चलाने, नकली युद्ध करना, व्यूह की रचना करना, किले तोड़ना और शिकार खेलना का शौक था। यही लक्ष्मीबाई के प्रिय खेल थे। भवानी उनके कुल की देवी थी। झाँसी के राजा के साथ लक्ष्मीबाई का विवाह हुआ। विवाह के थोड़े दिन बाद रानी लक्ष्मीबाई के पति की मृत्यु हो गई। इसके बाद अंग्रेजी शासकों ने झाँसी पर अपना अधिकार करने का प्रयास किया। घमासान युद्ध हुआ। लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के साथ लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई। उनका नाम इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया।
उनका बचपन हमारे बचपन से इस तरह अलग था कि वह बचपन में बरछी, ढाल, कृपाण जैसे हथियार ही उनकी सहेली थे और हम वीडियो गेम्स, कंप्यूटर, बिजली वाले खिलौने से खेलते हैं। उनको शिवाजी की वीरता की कहानी याद थी। हमें हमारे देश के राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत याद हैं।
प्रश्न:- वीर महिला की इस कहानी में कौन-कौन से पुरुषों के नाम आए हैं? इतिहास की कुछ अन्य वीर स्त्रियों की कहानियाँ खोजो।
उत्तर:- इस कहानी में कई पुरुषों के नाम आए हैं – जैसे नाना साहब, डलहौज़ी, पेशवा वाजीराव, तात्याँ टोपे, अजीमुल्ला, अहमद शाह मौलवी, ठाकुर कुँवर सिंह, लेफ्टिनेंट वॉकर, शिवाजी, ग्वालियर के महराज सिंधिया, जनरल स्मिथ, यूरोज।
छात्र अन्य वीर स्त्रियों की कहानियाँ खोजें।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न :- कविता में किस दौर की बात है? कविता से उस समय के माहौल के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर- कविता में वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौर की बात कही गई है। उस समय देश गुलाम था और रानी के रण में कूदने के बाद लोग आजादी पाने के लिए लालायित थे।
प्रश्न :- झाँसी की रानी के जीवन से हम क्या प्रेरणा ले सकते हैं?
उत्तर :- झाँसी की रानी के जीवन से हम प्रेरणा ले सकते हैं कि हमें जीवन में आने वाली विपत्तियों से घबराना नहीं चाहिए, उनका डटकर सामना करना चाहिए। देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न :- सुभद्रा कुमारी चौहान, लक्ष्मीबाई को ‘मर्दानी’ क्यों कहती हैं?
उत्तर- सभी मर्दो वाले गुण उनमें विद्यमान थे जैसे वीरता, साहस, हिम्मत, ताकत, युद्ध कौशल, घुड़सवारी तलवारबाज़ी। रानी ने वीर सेनापतियों की तरह अंग्रेजों से युद्ध किया और झाँसी की रक्षा करती रही। इसलिए कवयित्री ने उन्हें ‘मर्दानी’ कहा है।
खोजबीन
प्रश्न :- ‘बरछी’ ‘कपाण’ ‘कटारी’ उस ज़माने के हथियार थे। आजकल के हथियारों के नाम पता करो।
उत्तर – बंदूक, तोप, गोला, मिसाइलें, टैंक, पिस्तौल, एटम-बम, बम आदि।
प्रश्न :- लक्ष्मीबाई के समय में ज्यादा लड़कियाँ ‘वीरांगना’ नहीं हुई क्योंकि लड़ना उनका काम नहीं माना जाता था। भारतीय सेनाओं में अब क्या स्थिति है? पता करो।
उत्तर- वर्तमान समय में सेना में लड़कियों की काफ़ी भागीदारी है, लेकिन पुरुषों के अनुपात में स्त्रियों की संख्या आज भी काफ़ी कम है। इस स्थिति में सुधार होना चाहिए।
भाषा की बात
प्रश्न :- नीचे लिखे वाक्यांशों (वाक्य के हिस्सों) को पढ़ो-
झाँसी की रानी
मिट्टी का घरौंदा
प्रेमचंद की कहानी
पेड़ की छाया
ढाक के तीन पात
नहाने का साबुन
मील का पत्थर
रेशमी के बच्चे
बनारस के आम
का, के और की दो संज्ञाओं का संबंध बताते हैं। ऊपर दिए गए वाक्यांशों में अलग-अलग जगह इन तीनों का प्रयोग हुआ है। ध्यान से पढ़ो और कक्षा में बताओ कि का, के और की का प्रयोग कहाँ और क्यों हो रहा है?
उत्तर-
का, के और की संबंध कारक के चिह्न हैं। इन्हें परसर्ग भी कहते हैं। इनका प्रयोग संबंधी संज्ञा के अनुसार होता है। स्त्रीलिंग संबंधी संज्ञा के पूर्व ‘की पुल्लिंग संबंधी संज्ञा के पूर्व ‘का’ और बहुवचन पुल्लिंग संबंधी संज्ञा के पूर्व ‘के’ का ः प्रयोग होता है।
‘का’ का प्रयोग – एकवचन संज्ञा शब्दों के साथ हुआ है।
- मिट्टी का घरौंदा – घरौंदा एकवचन पुल्लिंग है। घरौंदे का संबंध मिट्टी से बताने के लिए प्रयोग हुआ है।
- मील का पत्थर – पत्थर पुल्लिंग है और एकवचन है, इसलिए उससे पहले ‘का’ प्रयोग हुआ है।
- नहाने का साबुन – साबुन पुल्लिंग और एकवचन है। इसलिए उसके पहले का प्रयोग हुआ है।
‘के’ का प्रयोग – बहुवचन संज्ञा शब्दों के साथ हुआ है।
- रेशमा के बच्चे – बच्चे बहुवचन हैं, अतः बच्चे के पहले ‘के’ का प्रयोग हुआ है।
- बनारस के आम – आम पुल्लिंग एवं बहुवचन शब्द है। अतः उसके पहले ‘के’ प्रयुक्त है।
‘की’ का प्रयोग स्त्रीलिंग सूचक – संज्ञा शब्दों के साथ प्रयोग हुआ है।
- झाँसी की रानी – रानी स्त्रीलिंग है। इसलिए उसके पूर्व ‘की’ लगा है।
- पेड़ की छाया – छाया स्त्रीलिंग है, इसलिए उसके पूर्व ‘की’ लगा है।
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