हिंदी का विकास शौरसेनी, मगधी, अर्धमगधी और खस अपभ्रंश से माना जाता है। इनसे हिन्दी के पाँच उप-भाषा समूहों का जन्म हुआ-
- पश्चिमी हिंदी उपभाषा समूह
- पहाड़ी हिंदी उपभाषा समूह
- राजस्थानी हिंदी उपभाषा समूह
- बिहारी हिंदी उपभाषा समूह
- पूर्वी हिंदी हिंदी उपभाषा समूह
इन्हीं से विभिन्न बोलियां विकसित हुईं।
पश्चिमी हिंदी उपभाषा से विकसित बोलियाँ और क्षेत्र
बोलियाँ | क्षेत्र व तथ्य |
हरियाणवी
(बांगरू, जाटू, देशवाली) |
करनाल, रोहतक, पानीपत, सोनीपत, कुरुक्षेत्र, जींद, हिसार, गोहाना, बहादुरगढ़, दादरी। ग्रियर्सन हरियाणवी को यमुना के बांगर क्षेत्र की बोली होने के कारण बांगरू कहने के पक्ष में है। गरीबदास हरियाणवी के प्रमुख कवि हैं। |
खड़ी बोली
(कौरवी) |
दिल्ली, ब्रज, रामपुर बिजनौर, मुरादाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, देहरादून का मैदानी भाग। डॉ भोलानाथ तिवारी, राहुल सांकृत्यायन ने इसे ‘कौरवी’ नाम दिया। भाषा के अर्थ में खड़ी बोली का प्रयोग सर्वप्रथम लल्लू लाल (प्रेम सागर) तथा सदल मिश्र (नासिकेतोपाख्यान) ने किया। |
ब्रजभाषा
(अंतर्वेदी, माथुरी या नागभाषा) (पिंगल या मारवा) |
भरतपुर, बुंदेलखंड, बांसवाड़ा, ब्रज, ग्वालियर, आगरा, मथुरा, अलीगढ़, मैनपुर, एटा, बदायूं, बरेली ‘ब्रजभाषा’ शब्द का प्राचीनतम प्रयोग गोपालाकृत ‘रसविलास टीका'(1587 ई.) में मिलता है। ‘ब्रज’ शब्द का प्रयोग ऋग्वेद में चारागाह के अर्थ में हुआ है। इसकी लिपि देवनागरी है। भक्ति काल में ब्रज भाषा का साहित्य में प्रयोग अधिक हुआ। |
कन्नौजी
(कनउजी, कनौजिया) |
कन्नौज, पीलीभीत, इटावा, कानपुर, शाहजहांपुर। डॉ धीरेंद्र वर्मा इसे ब्रजभाषा की हीं एक बोली पूर्वी ब्रज की संज्ञा देते हैं। इसकी लिपि देवनागरी है। कमलूदास आदि ने कुछ रचनाएँ इस बोली में लिखी हैं। |
बुंदेली |
बुंदेलखंड, नरसिंहपुर, जालौन, सिंबनी, दमोह, झांसी, बांदा, हमीरपुर ग्वालियर, ओरछा, सागर, जबलपुर, तथा होशंगाबाद डॉ धीरेंद्र वर्मा इसे स्वतंत्र बोली नहीं मानते। इसको देवनागरी में लिखा जाता है, परंतु कुछ लोग इसे मुड़िया, महाजनी, कैथी लिपि में भी लिखते हैं। इस बोली में साहित्य की रचना नहीं हुई। |
पहाड़ी हिंदी उपभाषा से विकसित बोलियाँ और क्षेत्र
बोलियाँ | क्षेत्र व तथ्य |
मंडियाली |
कुल्लू, मंडी, शिमला, चंबा और लाहुल सिटी इसे नागरी उर्दू और टाकरी लिपि में लिपिबद्ध किया जाता है। |
गढ़वाली |
गढ़वाल, अल्मोड़ा , टीहरी , सहारणपुर , बिजनौर , मुरादाबाद तथा हरिद्वार इसकी उपबोलियां – लोबयाली बधाणी , दसौलया, नगपुरिया, टेहरी और राठी। |
कुमाऊनी |
कुमायूं, नैनीताल , पिथौरागढ़ , चमोली , उत्तरकाशी कुमायूंनी की अनेक उपबोलियां हैं – कुमैयां , गंगोला , दनपुरिया , चोगरखिया , सोरियाली , अस्कोटी आदि । कुमायूंनी लिखने में नागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है । |
राजस्थानी हिंदी उपभाषा से विकसित बोलियाँ और क्षेत्र
बोलियाँ | क्षेत्र व तथ्य |
मेवाड़ी
(मालवी, आवन्ती) |
मेवाड़, चित्तौडगढ़ , उदयपुर , राजसमंद , प्रतापगढ़ , भीलवाड़ा और मध्यप्रदेश के मंदसौर , नीमच, उज्जैन नागरी लिपि। ‘चन्द्रसखी’ इसकी प्रसिद्ध कवयित्री हैं। |
मेवाती | अलवर, भरतपुर, धौलपुर और सवाई माधोपुर की करौली तहसील
नागरी लिपि। |
मारवाड़ी
(अगरवाला, डिंगल) |
यह शुद्ध रूप से जोधपुर क्षेत्र की बोली है। अजमेर, किसनगढ़, , सिरोही, रानीवाड़ा तक, जैसलमेर, शाहगढ़ तक तथा उत्तर में बीकानेर, गंगानगर, पिलानी।
मारवाड़ी बोली की कई उप-बोलियाँ भी हैं, जिनमें ठटकी, थाली, बीकानेरी, बांगड़ी, शेखावटी, मेवाड़ी, खैराड़ी, सिरोही, गौड़वाडी, नागौरी, देवड़ावाटी आदि प्रमुख हैं। साहित्यिक मारवाड़ी को डिंगल कहते हैं। इस बोली का उल्लेख ‘कुवलयमाला’ में मरुभाषा के नाम से हुआ है। इसकी लिपि महाजनी और नागरी है। मीराबाई की रचनाएँ मारवाड़ी में हैं। |
हाड़ौती
(जयपुरी, ढूंढानी) |
कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड
नागरी लिपि। |
बिहारी हिंदी उपभाषा से विकसित बोलियाँ और क्षेत्र
बोलियाँ | क्षेत्र व तथ्य |
मगही
(मागधी, मगधी) |
गया , पटना , मुंगेर , हजारीबाग , पलामू , राँची और भागलपुर इसकी लिपि मुख्यतः कैथी तथा नागरी है परंतु कहीं – कहीं पूर्वी मगही बंगला तथा उड़िया में भी लिखी जाती है । इसके प्रमुख कवि ‘ गोपीचंद ‘ तथा ‘ लोरिक ‘ मुख्य रूप से प्रसिद्ध हैं । |
मैथिली |
मुजफरपुर , मुंगेर , उत्तरी भागलपुर , पूर्वी चंपारन , पूर्णिया , दरभंगा , नेपाल के सरलारी, रौताहट , मोहतरी , सप्तरी तथा मोरंग मैथिल ब्राह्मण इस बोली को लिखने के लिए मैथिली लिपि का प्रयोग करते हैं , परंतु सामान्यत : इसे नागरी लिपि में ही लिखा जाता है । कुछ लोग कैथी लिपि का प्रयोग भी करते हैं। इस बोली का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ ज्योतिरीश्वर ठाकुर द्वारा रचित ‘वर्ण रत्नाकर’ है। उमापति , विद्यापति , महीपति आदि इस बोली के प्रमुख साहित्यकार हैं। |
भोजपुरी
(पूरबी, भोजपुरिया) |
बिहार के सारन, शाहबाद, राँची, जसपुर, चम्पारन, पलामू का कुछ भाग, मुजफरपुर का कुछ भाग, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, वाराणसी, गोरखपुर
भोजपुरी मुख्यतः नागरी लिपि में लिखी जाती है किंतु कभी – कभी कैथी लिपि का भी प्रयोग किया जाता है । |
पूर्वी हिंदी उपभाषा से विकसित बोलियाँ और क्षेत्र
बोलियाँ | क्षेत्र व तथ्य |
अवधी
(पूर्वी उत्तरखंडी या बैसवाड़ी या कौसली) |
अयोध्या, लखनऊ , उन्नाव , बस्ती , रायबरेली , लखीमपुर , गोंडा , बहराइच , फैजाबाद , सीतापुर , बारबंकी , सीतापुर , हरदोई का कुछ भाग , इलाहाबाद और मिर्जापुर तथा जौनपुर।
इसके मुख्य कवि कुतबन , मंझन , जायसी , उस्मान आदि हैं। तुलसीदास रचित ‘रामचरित मानस’ की रचना अवधी में हुई है । अवधी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है । अवधी के कुछ अन्य प्रमुख कवि हैं- ईश्वरदास, सूरजदास, कासिमशाह, छेमकरण आदि तथा आधुनिक काल में पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र का नाम लिया जा सकता है। |
बघेली | रीवाँ , जबलपुर , दमोह , बालाघाट , बांदा , फतेहपुर और हमीरपुर
बुंदेली , गहोरा , मरारी , कुम्भारी , ओझी , गोंडवानी , तिरहारी आदि बघेली की उपबोलियाँ हैं । |
छत्तीसगढ़ी
(लरिया, खल्हार अथवा खलोटी) |
छत्तीसगढ़, विलास पुर , सम्भलपुर , रायपुर जिलों के पश्चिम भाग , नंद गांव , खैरागढ़ , चुईखदान, काँकेर सुरगुजा , कवर्धा तथा बालाघाट
इसकी प्रमुख बोलियाँ- सदरी , कोरवा , बैगानी , सुरगुजिया , कलंगा , बिझवाली सतनामी , काँकेरी, भुलिया , हबली तथा बिलासपुरिया है । |