रीति सिद्धान्त
रीति-सिद्धान्त के प्रवर्तक वामन के अनुसार रीति का लक्षण है- विशिष्टा पदरचना रीतिः। वामन ने रीति का काव्य की आत्मा माना है – रीतिरात्मा काव्यस्य। रीति का स्वरूप इस प्रकार है-
1- पदों की सघटना का नाम रीति है।
2- ये तीन हैं, जो कि क्रमशः माधुर्य, ओज और प्रसाद गुणों के व्यंजक नियत वर्णों से रचित होती हैं। क्रमशः समास की रहितता, अधिकता और न्यूनता इनका बाह्य रूप है।
3- गुण पर आश्रित रहकर ये रीतियाँ रस की अभिव्यक्ति में साधक है।
रीति के प्रकार
(क) वैदर्भी रीति – माधुर्य गुण के व्यंजक वर्णों से युक्त रचना वैदर्भी रीति कहलाती है और शृंगार, करुण आदि कोमल रसों का उपकार करती है। इसे मम्मट ने उपरागरिका वृत्ति भी कहा है।
(ख) गौड़ी रीति – ओज गुण के व्यंजक वर्णों से युक्त रचना गौड़ी रीति कहलाती है, और रौद्र, वीर आदि कठोर रसों का उपकार करती है। इसे मम्मट ने परुषा वृत्ति भी कहा है।
(ग) पांचाली रीति – प्रसाद गुण वर्णों से युक्त रचना पांचाली रीति कहलाती है। यह रीति शृंगार रस का पोषण करती है। इसे मम्मट ने कोमला वृत्ति कहा है।