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"जहाँ कोई वापसी नहीं"
(पाठ का सार)
अमझर का अर्थ है – आम के पेड़ों से घिरा गाँव – जहा! आम झरते हैं। कितु पिछले दो-तीन वर्षों से पेड़ों पर सूनापन है, न कोई फल पकता है, न कुछ नीचे झरता है। कारण पूछने पर पता चला कि जब से सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएँगे, तब से न जाने कैसे, आम के पेड़ सूखने लगे। आदमी उजड़ेगा, तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे?
जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावात ने अपनी घर-जमीन से उखाड़कर हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया है। ये लोग आधुनिक भारत के नए ‘शरणार्थी’ हैं। ये लोग फिर अपने गाँव अपनी जमीन पर लौट नहीं पाते।
बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घरबार छोड़कर कुछ अरसे के लिए जरूर बाहर चले जाते हैं, कितु आफत टलते ही वे दोबारा अपने जाने-पहचाने परिवेश में लौट भी आते हैं। कितु विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को उन्मूलित करता है, तो वे फिर कभी अपने घर वापस नहीं लौट सकते। आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिप़्ाफ़र् मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश और आवास स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।
यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखने का है। भारत में यही प्रश्न मनुष्य और उसकी संस्कृति के बीच पारंपरिक संबंध बनाए रखने का हो जाता है।
स्वातं=योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यह रही है कि पश्चिम की देखादेखी और नकल में योजनाएँ बनाते रहे। उन योजनाओं को लागू करते समय इस प्रश्न की ओर हमारे पश्चिम-शिक्षित सत्ताधारियों का ध्यान कभी नहीं गया कि प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है? उन्होेंने कभी यह नहीं सोचा कि हम बिना पश्चिम को मॉडल बनाए, अपनी शर्तों और मर्यादाओं के आधार पर, औद्योगिक विकास का भारतीय स्वरूप निर्धारित कर सकते हैं।
औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है। पेड़ों और वनस्पतियों का अंधाधुध कटाव मनुष्य के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। बड़े पैमाने पर गाँवों को उजाड़ दिया जाता है। उपजाऊ भूमि पर बड़े-बड़े कल-कारखाने और बिल्डिंगे बना दी जाती है। इन कारखानों से निकलने वाला जहरीला पानी नदियों के प्राकृतिक जल को दूषित करता है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ वायु का प्रदूषित कर रहा है। इससे प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा जाता है।
औद्योगीकरण या गाँवों में रोज़गार न होने के कारण जब लोगों का गाँवों से विस्थापन होता है तो वे रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं। इस पलायन के कारण शहरों में अनेक जगह मज़दूरों की झुग्गियाँ बस जाती हैं। ऐसी बस्तियों में घनी आबादी और संकरी गलियाँ पाई जाती हैं। इन गलियों में गंदगी होने पर सफाई करना मुश्किल होता है। इसके विपरीत गाँवों में अधिक क्षेत्र में कम आबादी होती हैं। हरित ंक्षेत्र अधिक होने के कारण वहाँ की वायु अधिक स्वच्छ होती है। इसलिए स्वच्छता अभियान की जरूरत गाँव से अधिक शहरों में है।
नहीं, भागतीं नहीं, सिप़्ाफ़र् विस्मय से मुसकुराती हैं और फिर सिर झुकाकर अपने काम में डूब जाती हैं।
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“जहाँ कोई वापसी नहीं”
(प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – अमझर से आप क्या समझते हैं? अमझर गाँव में सूनापन क्यों है?
उत्तर – अमझर का अर्थ है – आम के पेड़ों से घिरा गाँव – जहाँ आम झरते हैं। कितु पिछले दो-तीन वर्षों से पेड़ों पर सूनापन है, न कोई फल पकता है, न कुछ नीचे झरता है। कारण पूछने पर पता चला कि जब से सरकारी घोषणा हुई है कि अमरौली प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव उजाड़ दिए जाएँगे, तब से न जाने कैसे, आम के पेड़ सूखने लगे। आदमी उजड़ेगा, तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे?
प्रश्न – आधुनिक भारत के ‘नए शरणार्थी’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर – जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावात ने अपनी घर-जमीन से उखाड़कर हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया है। ये लोग आधुनिक भारत के नए ‘शरणार्थी’ हैं। ये लोग फिर अपने गाँव अपनी जमीन पर लौट नहीं पाते।
प्रश्न – प्रकृति के कारण विस्थापन और औद्योगीकरण के कारण विस्थापन में क्या अंतर है?
उत्तर – बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घरबार छोड़कर कुछ अरसे के लिए जरूर बाहर चले जाते हैं, किन्तु आफत टलते ही वे दोबारा अपने जाने-पहचाने परिवेश में लौट भी आते हैं। विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को उन्मूलित करता है, तो वे फिर कभी अपने घर वापस नहीं लौट सकते। आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिर्फ मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश और आवास स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न – यूरोप और भारत की पर्यावरण संबंधी चिताएँ किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर – यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न मनुष्य और भूगोल के बीच संतुलन बनाए रखने का है। भारत में यही प्रश्न मनुष्य और उसकी संस्कृति के बीच पारंपरिक संबंध बनाए रखने का हो जाता है।
प्रश्न – लेखक के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ‘ट्रैजेडी’ क्या है?
उत्तर – स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी यह रही है कि पश्चिम की देखादेखी और नकल में योजनाएँ बनाते रहे। उन योजनाओं को लागू करते समय इस प्रश्न की ओर हमारे पश्चिम-शिक्षित सत्ताधारियों का ध्यान कभी नहीं गया कि प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच का नाजुक संतुलन किस तरह नष्ट होने से बचाया जा सकता है? उन्होेंने कभी यह नहीं सोचा कि हम बिना पश्चिम को मॉडल बनाए, अपनी शर्तों और मर्यादाओं के आधार पर, औद्योगिक विकास का भारतीय स्वरूप निर्धारित कर सकते हैं।
प्रश्न – औद्योगीकरण ने पर्यावरण का संकट पैदा कर दिया है, क्यों और कैसे?
उत्तर – औद्योगीकरण के कारण पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है। पेड़ों और वनस्पतियों का अंधाधुध कटाव मनुष्य के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। बड़े पैमाने पर गाँवों को उजाड़ दिया जाता है। उपजाऊ भूमि पर बड़े-बड़े कल-कारखाने और बिल्डिंगे बना दी जाती है। इन कारखानों से निकलने वाला जहरीला पानी नदियों के प्राकृतिक जल को दूषित करता है। फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ वायु का प्रदूषित कर रहा है। इससे प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा जाता है।
प्रश्न – क्या स्वच्छता अभियान की जरूरत गाँव से ज्यादा शहरों में है? (विस्थापित लोगों, मज़दूर बस्तियों, स्लमस क्षेत्रें, शहरों में बसी झुग्गी बस्तियों के संदर्भ में लिखिए।)
उत्तर – औद्योगीकरण या गाँवों में रोज़गार न होने के कारण जब लोगों का गाँवों से विस्थापन होता है तो वे रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं। इस पलायन के कारण शहरों में अनेक जगह मज़दूरों की झुग्गियाँ बस जाती हैं। ऐसी बस्तियों में घनी आबादी और संकरी गलियाँ पाई जाती हैं। इन गलियों में गंदगी होने पर सफाई करना मुश्किल होता है। इसके विपरीत गाँवों में अधिक क्षेत्र में कम आबादी होती हैं। हरित ंक्षेत्र अधिक होने के कारण वहाँ की वायु अधिक स्वच्छ होती है। इसलिए स्वच्छता अभियान की जरूरत गाँव से अधिक शहरों में है।
प्रश्न – निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) आदमी उजड़ेंगे तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे?
आशय – इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने मानव व प्रकृति के आपसी संबंध को बताया है। अमझर गाँव में औद्योगीकरण के कारण लोगों का विस्थापन हो रहा है। इससे वहाँ के पेड़-पौधे सूखने लगे हैं।
(ख) प्रकृति और इतिहास के बीच यह गहरा अंतर है?
आशय – लेखक कहता है कि बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घरबार छोड़कर कुछ अरसे के लिए जरूर बाहर चले जाते हैं, कितु आफत टलते ही वे दोबारा अपने जाने-पहचाने परिवेश में लौट भी आते हैं। कितु विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को उन्मूलित करता है, तो वे फिर कभी अपने घर वापस नहीं लौट सकते। आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिप़्ाफ़र् मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश और आवास स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न – निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-
(क) आधुनिक शरणार्थी
टिप्पणी – जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावात ने अपनी घर-जमीन से उखाड़कर हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया है। ये लोग आधुनिक शरणार्थी हैं। ये लोग फिर अपने गाँव अपनी जमीन पर लौट नहीं पाते।
(ख) औद्योगीकरण की अनिवार्यता
टिप्पणी – वर्तमान समय में औद्योगीकरण विकास का एक पैमाना माना जाता है। जिन देशों में औद्योगीकरण होता है वहाँ के लोगों का जीवन स्तर उच्च होता है। रोजगार में वृद्धि करने और क्षेत्र के विकास के लिए औद्योगीकरण आवश्यक है। इसके साथ-साथ मानव को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि औद्योगीकरण की आड़ मेें पर्यावरण को नुकसान न हो।
(ग) प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच आपसी संबंध
टिप्पणी – प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच गहरा संबंध है। प्रकृति तथा मनुष्य मिलकर नई संस्कृति को जन्म देते है। जिस समाज में प्रकृति की रक्षा की जाती है वह समाज सांस्कृतिक रूप से अधिक स्मृद्ध पाया जाता है। साथ ही जो संस्कृति उन्नत होती है वह अपने आसपास के वातावरण और प्राकृतिक धरोहर को संभाल कर रखती है।
प्रश्न – निम्नलिखित पंक्तियों का भाव-सौंदर्य लिखिए-
(क) कभी-कभी किसी इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है।
भाव-सौंदर्य – लेखक ने यह बात सिंगरौली के संदर्भ में कही है। वहाँ की प्राकृतिक संपदा पर दिल्ली में बैठे राजनेताओं और अधिकारियों की आड़ी नज़र थी। जिसके कारण हराभरा इलाका एक बेजान औद्योगीकरण की भेंट चढ़ने जा रहा था। वहाँ कोयले के प्लांट लगाए गए जिससे सिंगरौली की वनसंपदा को भारी नुकसान हुआ।
(ख) अतीत का समूचा मिथक संसार पोथियों में नहीं, इन रिश्तों की अदृश्य लिपि में मौजूद रहता था।
भाव-सौंदर्य – लेखक का कहना है कि मनुष्य की समस्त भावनाओं और विचारों को पुस्तकों में नहीं लिखा जा सकता। कुछ भाव व रिश्ते पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते रहते हैं। जैसे प्रकृति के साथ मानव का रिश्ता किसी पुस्तक के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह रिश्ता मनुष्य और प्रकृति के अदृश्य कृत्यों में मौजूद रहता है।
भाषा-शिल्प
प्रश्न – पाठ के संदर्भ में निम्नलिखित अभिव्यक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए –
मूक सत्याग्रह – बिना कुछ कहे विरोध करना।
पवित्र खुलापन – खुला वातावरण।
स्वच्छ मांसलता – वास्तविक रूप।
औद्योगीकरण का चक्का – उद्योगों का विकास
नाजुक संतुलन – कोमल बंधन
प्रश्न – इन मुहावरों पर ध्यान दीजिए –
मटियामेट होना – औद्योगीकरण के कारण सिंगरौली क्षेत्र का वातावरण मटियामेट हो गया।
आफत टलना – करोना की आफत टालने के लिए वैज्ञानिकों ने कईं परीक्षण किए।
न फटकना – युद्ध में मात खाने के बाद पाकिस्तान फिर भारत की सरहद पर न फटका।
प्रश्न – ‘कितु यह भ्रम है ——– डूब जाती हैं।’ इस गद्यांश को भूतकाल की क्रिया के साथ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – कितु यह भ्रम है— यह बाढ़ नहीं, पानी में डूबे धान के खेत हैं। अगर हम थोड़ी सी हिम्मत बटोरकर गाँव के भीतर चलें, तब वे औरतें दिखाई देंगी जो एक पाँत में झुकी हुई धान के पौधे छप-छप पानी में रोप रही हैं सुंदर, सुडौल, धूप में चमचमाती काली टाँगें और सिरों पर चटाई के किश्तीनुमा हैट, जो प़्ाफ़ोटो या पि़्ाफ़ल्मों में देखे हुए वियतनामी या चीनी औरतों की याद दिलाते हैं। ज़रा-सी आहट पाते ही वे एक साथ सिर उठाकर चाैंकी हुई निगाहों से हमें देखती हैं – बिलकुल उन युवा हिरणियों की तरह, जिन्हें मैंने एक बार कान्हा के वन्यस्थल में देखा था। कितु वे डरतीं नहीं, भागतीं नहीं, सिप़्ाफ़र् विस्मय से मुसकुराती हैं और फिर सिर झुकाकर अपने काम में डूब जाती हैं।
टेस्ट/क्विज
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