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नीलकंठ (पाठ का सार)
महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबंध ‘नीलकंठ’ पक्षियों के हृदय में मानवीय भावों की उपस्थिति को दर्शाता है। लेखिका न चाहते हुए भी पक्षियों का सौदा करने वाले बड़े मियां की दुकान के सामने रुक जाती है। बड़े मियां बातों के धनी होने के कारण हर बार लेखिका को कोई न कोई जीव बेच देने में कामयाब हो जाते हैं। इस बार बड़े मियां ने लेखिका को दो शिशु मोर पक्षी पेंतीस रुपये में बेच दिए। लेखिका पहले उन्हें अपने कमरे में रखती है। घर के वातावरण से परिचित हो जाने के बाद उन्हें जाली के घर में पहुँचाया जाता है। जहाँ उनकी मुलाक़ात कबूतर, बड़े खरगोश, छोटे खरगोश और तोते से होती है। नए पक्षियों के आने से सब में कोतूहल जागता है। लक्का कबूतर नाचना छोड़कर दौड़ पड़े और उनके चारों ओर घूम-घूमकर गुटरगूँ-गुटरगूँ की रागिनी अलापने लगे। बड़े खरगोश सभ्य सभासदों के समान क्रम से बैठकर गंभीर भाव से उनका निरीक्षण करने लगे। ऊन की गेंद जैसे छोटे खरगोश उनके चारों ओर उछलकूद मचाने लगे। तोते मानो भलीभाँति देखने के लिए एक आँख बंद करके उनका परीक्षण करने लगे। उस दिन चिड़ियाघर में मानो भूचाल आ गया। धीरे-धीरे दोनों मोर के बच्चे बढ़ने लगे। लेखिका ने मोर का नामकरण ‘नीलकंठ’ और मोरनी का नामकरण ‘राधा’ के रूप में किया। कुछ ही दिनों में वे दोनों जाली घर के अन्य सदस्यों के साथ घुल-मिल गए। सभी उनके साथ खेलते और वे भी बड़ों की भांति अन्य सदस्यों का ख्याल रखते। एक दिन छोटे खरगोश को एक साँप ने मुँह में दबा लिया। नीलकंठ ने देखा तो साँप को अपनी चोंच से घायल कर उसे छुड़ाया। एक दिन लेखिका एक अन्य मोरनी को घर ले आई, जिसका नाम लेखिका ने ‘कुब्जा’ रखा। कुब्जा के आते ही जाली घर का माहौल बादल गया। कुब्जा नीलकंठ के साथ रहने की कोशिश करती लेकिन नीलकंठ उसे अपने पास नहीं आने देता। इसी क्रम में कुब्जा ने राधा के दो अंडे भी तोड़ दिये। एक दिन अचानक नीलकंठ मृत पाया गया। लेखिका समझ गई ऐसा क्यों हुआ, लेकिन वह अब क्या कर सकती थी। कुब्जा भी एक अल्सेशियन कुत्ती कजली से संघर्ष करती अपने प्राण त्याग देती है। राधा नीलकंठ का इंतजार करती बैठी रहती और बादलों के छा जाने पर अपने केका को तेज करके नीलकंठ को बुलाती रहती।
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नीलकंठ (प्रश्न-उत्तर)
निबंध से
प्रश्न :- मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?
उत्तर :- मोर की गरदन नीली थी, इसलिए उसका नाम नीलकंठ रखा गया। मोरनी हमेशा मोर के साथ-साथ रहती थी अतः उसका नाम राधा रखा गया।
प्रश्न :- जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?
उत्तर :- जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का स्वागत नव वधू के समान हुआ। लक्का कबूतर उनके चारों ओर घूम-घूमकर गुटरगूं-गुटरगूं करने लगा, बड़े खरगोश गंभीर भाव से कतार में बैठकर उन्हें देखने लगे। छोटे खरगोश उनके आसपास उछल-कूद मचाने लगे। तोते एक आँख बंद करके उन्हें देखने लगते हैं।
प्रश्न :- लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?
उत्तर :- लेखिका को नीलकंठ की निम्नलिखती चेष्टाएँ बहुत भाती थीं –
- गर्दन को ऊँची करके इधर-उधर देखना।
- विशेष भंगिमा के साथ गर्दन नीची कर दाना चुगना और पानी पीना।
- गर्दन को टेढ़ी करके शब्द सुनना।
- मेघों की गर्जन ताल पर उसका इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर तन्मय नृत्य करना।
- लेखिका के हाथों से हौले-हौले चने उठाकर खाना।
प्रश्न :- ‘इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’- वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर :- इस आनंदोत्सव में की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा, यह वाक्य उस घटना की ओर संकेत कर रहा है जब लेखिका ने बड़े मियाँ से एक अधमरी मोरनी खरीद लाई। लेखिका ने उसका नाम कुब्जा रखा। वह नीलकंठ के साथ रहना चाहती थी जबकि नीलकंठ उससे दूर भागता था। कुब्जा ने राधा के अंडे तोडकर बिखेर दिए। इससे नीलकंठ की प्रसन्नता का अंत हो गया क्योंकि राधा से दूरी बढ़ गई थी। कुब्जा ने नीलकंठ के शांतिपूर्ण जीवन में ऐसा कोलाहल मचाया कि बेचारे नीलकंठ ने अपने प्राण त्याग दिए।
प्रश्न :- वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?
उत्तर :- वसंत ऋतु में आम के पेड़ सुनहली मंजरियों से लद जाते थे और अशोक के वृक्ष नए पत्तों में बँक जाते थे तब नीलकंठ जालीघर में अस्थिर हो जाता था। वह वसंत ऋतु में किसी घर में बंदी होकर नहीं रह सकता था उसे पुष्पित और पल्लवित वृक्ष भाते थे। तब उसे बाहर छोड़ देना पड़ता था।
प्रश्न :- जालीघर में रहनेवाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?
उत्तर :- जालीघर में रहनेवाले सभी जीव-जंतु एक-दूसरे के मित्र बन गए, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव नहीं हो पाया, क्योंकि कुब्जा सबसे लड़ती रहती थी, वह केवल नीलकंठ के साथ रहना पसंद करती थी। अगर कोई और नीलकंठ के साथ खेलता तो वह चोंच से मारना शुरू कर देती थी।
प्रश्न :- नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :- उसने साँप को फन के पास पंजों से दबाया और फिर चोंच से इतने प्रहार
किए कि वह अधमरा हो गया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश का बच्चा मुख
से निकल तो आया, परंतु निश्चेष्ट-सा वहीं पड़ा रहा।
इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की निम्न विशेषताएँ उभरती हैं –
- सतर्क
- वीर
- कुशल संरक्षक
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निबंध से आगे
प्रश्न :- यह पाठ एक ‘रेखाचित्र’ है। रेखाचित्र की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं? जानकारी प्राप्त कीजिए और लेखिका के लिखे किसी अन्य रेखाचित्र को पढ़िए।
उत्तर :- रेखाचित्र एक सीधी कहानी नहीं होती, बल्कि संपूर्ण जीवन की छोटी बड़ी घटनाओं का समावेश होता है। रेखाचित्र में भावनात्मकता और संवेदना होती है। रेखाचित्र के भाव अत्यंत स्वाभाविक और सरल होते हैं। इनमें बनावट का कोई स्थान नहीं होता।
प्रश्न :- वर्षा ऋतु में जब आकाश में बादल घिर आते हैं तब मोर पंख फैलाकर धीरे-धीरे मचलने लगता है – यह मोहक दृश्य देखने का प्रयास कीजिए।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न :- पुस्तकालय से ऐसी कहानियों, कविताओं या गीतों को खोजकर पढ़िए जो वर्षा ऋतु और मोर के नाचने से संबंधित हों।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
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अनुमान और कल्पना
प्रश्न :-निबंध में आपने ये पंक्तियाँ पढ़ी हैं-‘मैं अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिबित-प्रतिबिबित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा।’-इन पंक्तियों में एक भावचित्र है। इसके आधार पर कल्पना कीजिए और लिखिए कि मोरपंख की चंद्रिका और गंगा की लहरों में क्या-क्या समानताएँ लेखिका ने देखी होंगी जिसके कारण गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर पंख के समान तरंगित हो उठा।
उत्तर :- जब गंगा के बीच धार में नीलकंठ को प्रवाहित किया गया, तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा। नीलकंठ के पंखों की चंद्रिकाएँ दूर-दूर तक किसी मयूर के नृत्य का दृश्य प्रस्तुत करती फैल गई होंगी। यह दृश्य लेखिका को मयूर पंख के समान तरंगित होता हुआ लगा।
प्रश्न :- नीलकंठ की नृत्य-भंगिमा का शब्दचित्र प्रस्तुत करें।
उत्तर :- मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब वह नाचता था, तब उस नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था। आगे-पीछे, दाहिने-बाएँ क्रम से घूमकर वह किसी अलक्ष्य सम पर ठहर-ठहर जाता था।
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भाषा की बात
प्रश्न :- ‘रूप’ शब्द से कुरूप, स्वरूप, बहुरूप आदि शब्द बनते हैं। इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों से अन्य शब्द बनाओ- गंध, रंग, फल, ज्ञान।
उत्तर :-
गंध – सुगंध, दुर्गंध।
रंग – रंगीला, रंगीन।
फल – सफल, फलाहार।
ज्ञान – अज्ञान, विज्ञान।
प्रश्न :- विस्मयाभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दों के योग से बना है। इसमें विस्मय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण हैं। ये सभी वर्ण-ध्वनियों में व्याप्त हैं। व्यंजन वर्णों में इसके योग को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे – क् + अ = क इत्यादि। अ की मात्र के चिह्न (ा) से आप परिचित हैं। अ की भाँति किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से अकार की मात्र ही लगती है, जैसे-मंडल + आकार=मंडलाकार। मंडल और आकार की संधि करने पर (जोड़ने पर) मंडलाकार शब्द बनता है और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर (तोड़ने पर) मंडल और आकार दोनों अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के संधि-विग्रह कीजिए-
उत्तर :-
संधि
नील + आभ = नीलाभ
नव + आगंतुक = नवागंतुक
विग्रह
सिंहासन = सिंह + आसन
मेघाच्छन्न = मेघ + आच्छन्न
कुछ करने को
प्रश्न :- चयनित व्यक्ति / पशु / पक्षी की खास बातों को ध्यान में रखते हुए एक रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर :- छात्र स्वयं करें।
टेस्ट/क्विज