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कन्यादान
(कविता की व्याख्या)
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
शब्दार्थ : प्रामाणिक – वास्तविक, दिखावे से रहित।
संदर्भ : प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। ‘कन्यादान’ कविता के रचयिता ‘ऋतुराज’ हैं ।
प्रसंग : यह कविता एक माँ के निजी अनुभवों की पीड़ा की अभिव्यक्ति है। वह अपने जीवन में भोगी गई पीड़ा के संदर्भ में अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत रूप से हटकर सीख दे रही है।
व्याख्या : इस कविता में उस समय का वर्णन है जब माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर रही है। जिस बेटी को कोई भी माता-पिता बड़े जतन से पाल पोसकर बड़ी करते हैं वह ब्याह के बाद पराई हो जाती है और शादी के बाद दूसरे घर की सदस्य हो जाती है। इसलिए लड़की के लिए कन्यादान शब्द का प्रयोग किया जाता है। जाहिर है कि जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया होए उसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द का सामना करना पड़ता है, इसलिए उसे दान करते वक्त लगता है कि वह अपनी आखिरी जमा पूँजी किसी दूसरे को सौंप रही हो।
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
शब्दार्थ : आभास – अहसास। बाँचना – पढ़ना, बताना।
संदर्भ : प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। ‘कन्यादान’ कविता के रचयिता ‘ऋतुराज’ हैं ।
प्रसंग : यह कविता एक माँ के निजी अनुभवों की पीड़ा की अभिव्यक्ति है। वह अपने जीवन में भोगी गई पीड़ा के संदर्भ में अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत रूप से हटकर सीख दे रही है।
व्याख्या : यद्यपि लड़की बड़ी हो गई थी लेकिन उसमें अभी भी दुनियादारी की पूरी समझ नहीं थी। वह इतनी भोली थी कि खुशियाँ मनाना तो जानती थी लेकिन यह नहीं पता था कि दुख का सामना कैसे किया जाए। उसके लिए बाहरी दुनिया किसी धुँधले चित्र की तरह थी या फिर किसी गीत के टुकड़े की तरह थी।
माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।
शब्दार्थ : रीझना – घमंड करना।
संदर्भ : प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित कविता ‘कन्यादान’ से लिया गया है। ‘कन्यादान’ कविता के रचयिता ‘ऋतुराज’ हैं ।
प्रसंग : यह कविता एक माँ के निजी अनुभवों की पीड़ा की अभिव्यक्ति है। वह अपने जीवन में भोगी गई पीड़ा के संदर्भ में अपनी बेटी को स्त्री के परंपरागत रूप से हटकर सीख दे रही है।
व्याख्या : विदाई के समय माँ अपनी बेटी को नसीहतें दे रही है। माँ कहती हैं कि कभी भी अपनी सुंदरता पर इतराना नहीं चाहिए क्योंकि असली सुंदरता तो मन की सुंदरता होती है। वह कहती हैं कि आग का काम तो चूल्हा जलाकर घरों को जोड़ने का है ना कि अपने आप को और अन्य लोगों को दुख में जलाने का। माँ कहती है कि अच्छे वस्त्र और महँगे आभूषण बंधन की तरह होते हैं इसलिए उनके चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। आखिर में माँ कहती है कि लड़की जैसी दिखाई मत देना। इसके कई मतलब हो सकते हैं। एक मतलब हो सकता है कि माँ उसे अब एक जिम्मेदार औरत की भूमिका में देखना चाहती है और चाहती है कि वह अपना लड़कपन छोड़ दे। दूसरा मतलब हो सकता है कि उसे हर संभव यह कोशिश करनी होगी कि लोगों की बुरी नजर से बचे। हमारे समाज में लड़कियों की कमजोर स्थिति के कारण उन पर यौन अत्याचार का खतरा हमेशा बना रहता है।
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"कन्यादान"
(कविता के प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना?
उत्तर – ‘लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना’ के द्वारा माँ अपनी पुत्री को संदेश देना चाहती है कि कोमलता, शालीनता लड़कियों के गुण हैं वो तुझमें होने चाहिए लेकिन तुझे कमजोर नहीं बनाना हैं। समाज के बहुत से लोग कमजोर व्यक्ति का शोषण करते हैं।
प्रश्न – ‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर – इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की शोषित स्थिति की ओर संकेत किया गया है। स्त्री अपने माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर जाती है। वहाँ उनके लिए जिस आग पर खाना बनती है, कुछ अत्याचारी लोग उसे उसी आग में जला देते हैं।
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?
उत्तर – माँ ने बेटी को सचेत करना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि बेटी अभी सयानी नहीं है। वह समाज में फैली बुराइयों से अंजान है। माँ नहीं चाहती कि जो कष्ट उसे सहन करने पड़ें हैं वही उसकी बेटी को सहन करने पड़ें।
प्रश्न – ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’ इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर – बेटी अभी सयानी नहीं हुई है। उसे माँ-बाप ने बड़े प्यार से पाला है और उसे दुखों से बचाकर रखा है। पुत्री को लगता है कि उसका आने वाला समय सदैव ऐसे ही दुखों से रहित होगा। वह आने वाली बाधाओं से अंजान है।
प्रश्न – माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?
उत्तर – माँ अपनी बेटी को पूँजी की तरह पालती है। उसे घर परिवार के संस्कार देती है। माँ का अपनी बेटी से सर्वाधिक लगाव होता है। इसलिए जब वह विदा होती है तो माँ को वह ‘अंतिम पूँजी’ लगती है।
प्रश्न – माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी थी?
उत्तर – माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी थी-
- अपनी संदरता पर गर्व मत करना।
- वस्त्रों और आभूषणों के आकर्षण से स्वयं को दूर रखना।
- खुद को कमजोर मत दिखाना।
- अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाना। कभी आत्महत्या मत करना।
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