अपठित पद्यांश 2
ज्यों निकल कर बादलों की गोद से
थी अभी एक बूँद कुछ आगे बढ़ी
सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,
आह! क्यों घर छोड़कर मैं यों कढ़ी?
देव!! मेरे भाग्य में क्या है बदा,
मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में?
या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी,
चू पडूँगी या कमल के फूल में?
बह गयी उस काल एक ऐसी हवा
वह समुन्दर ओर आई अनमनी
एक सुन्दर सीप का मुँह था खुला
वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।
लोग यों ही हैं झिझकते, सोचते
जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर
किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें
बूँद लौं कुछ और ही देता है कर।
प्रश्न – बादलों की गोद से निकलकर बूँद क्या सोचने लगी?
उत्तर –
- मैंने घर क्यों छोड़ा?
- मैं बचूँगी या धूल में मिलूँगी?
- मैं किसी अंगारे पर गिर कर जलूँगी?
प्रश्न – ‘वह समुन्दर ओर आई अनमनी’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर -बूँद समुद्र की ओर बिना इच्छा से आ गई।
प्रश्न – समुद्र की ओर आने से बूँद का क्या हुआ?
उत्तर -बूँद सीप के मुँह में गिरकर मोती बन गई।
प्रश्न – कवि के अनुसार घर का छोड़ना अक्सर क्या कर देता है?
उत्तर -व्यक्ति का विकास कर देता है।
प्रश्न – चू पडूँगी या कमल के फूल में? –
रेखांकित शब्द का पर्यायवाची निम्न में से कौन-सा नहीं है?
जलज।राजीव।नीरज।सुमन।
उत्तर – सुमन।