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वाक्य

कामता प्रसाद गुरु के अनुसार ” एक विचार पूर्णता से प्रकट करने वाले शब्द समूह को वाक्य कहते हैं।”

महर्षि जैमिनी के अनुसार “एकार्थक पदों के समूह को वाक्य कहते हैं।”

पंतजलि के अनुसार “जिसमें एक क्रिया हो उसे वाक्य कहते हैं।”

डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार “वह अर्थवान ध्वनि समुदाय जो पूरी बात या भाव की तुलना में अपूर्ण होते हुए भी अपने आप में पूर्ण हो तथा जिसमे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से क्रिया का भाव हो वाक्य कहलाता है”

वाक्य के लिए पांच बातें आवश्यक है

(1) सार्थकता – वाक्य के शब्द सार्थक होने चाहिए।

(2) योग्यता – वाक्य में बात तार्किक धरातल पर सही हो।

(3) आकांक्षा – वाक्य पूर्ण अर्थ देने में सक्षम हो।

(4) सन्ननिधि – वाक्य के शब्द संबद्धता की दृष्टि से एक दूसरे के निकट हो।

(5) अन्विति – वाक्य अवयवों में व्याकरणिक एकरूपता होनी चाहिए।

वाक्य के प्रकार

(क) रचना के आधार पर वाक्य

(1) सरल वाक्य:- सरल वाक्य में कर्ता, कर्म, पूरक, क्रिया और क्रिया विशेषण घटकों अथवा इनमें से कुछ घटकों का योग होता है। स्वतंत्र रूप में प्रयुक्त होने वाला उपवाक्य ही सरल वाक्य है। सरल वाक्य में क्रिया यह निश्चित करती है कि वाक्य में कितने घटक होंगे। अकर्मक क्रिया वाले वाक्य में केवल कर्ता होता है। सकर्मक क्रिया वाले वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों होते हैं। इनमें एक ही समापिका क्रिया होती है। जैसे –

  1. मोहन हँसता है।
  2. राजेश बीमार है।
  3. पुलिस ने चोर को पीटा।
  4. माता जी ने शीला को एक साड़ी दी।
  5. शीला आपको अपना बड़ा भाई मानती है।

(ख) संयुक्त वाक्य:- संयुक्त वाक्य में दो या अधिक मुख्य अथवा स्वतंत्र उपवाक्य होते हैं। मुख्य उपवाक्य अपने पूर्व अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए किसी दूसरे उपवाक्य पर आश्रित नहीं रहते। उपवाक्य होते हुए भी उनमें पूर्ण अर्थ का बोध होता है। इनके बीच समानाधिकरण संबंध होता है और इसके उपवाक्य और, तथा, या, फिर, अथवा, अन्यथा, किन्तु, परन्तु, लेकिन, इसलिए आदि समानाधिकरण योजक अव्ययों से जुड़े होते हैं। जैसे –

  1. सने कहा तो था, किन्तु आया नहीं
  2. खूब परिश्रम करो, अन्यथा अनुत्तीर्ण हो जाओगे।
  3. जल्दी चलिए अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।
  4. तुमने बुलाया था इसलिए आया हॅूं।

संयुक्त वाक्य के दो उपवाक्यों में से एक उपवाक्य के कुछ अंश कभी-कभी लुप्त हो जाते है। यह स्थिति तब आती है जब एक ही वाक्य के दो उपवाक्यों में समान शब्द आता है, जैसे-

  1. छात्रों ने बसते उठाए और (छात्र) अपने घर चले गए।
  2. मोहन कल मुम्बई जाएगा और राजेश कोलकता (जाएगा)।

(ग) मिश्र वाक्य – मिश्र वाक्य में एक मुख्य या स्वतंत्र उपवाक्य और एक या अधिक गौण या आश्रित उपवाक्य होते हैं। गौण उपवाक्य अपने पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए मुख्य उपवाक्य पर आश्रित रहता है। मिश्र वाक्य के उपवाक्य ‘कि’, ‘जैसा-वैसा’, ‘जो-वह’, ‘जब-तब’, ‘क्योंकि’, ‘यदि-तो’ आदि व्यधिकरण योजकों से जुडे़ होते हैं। जैसे-

  1. महात्मा गांधी ने कहा था कि अहिंसा परम धर्म है।
  2. जो सबसे अच्छा खेला, वह मेरा मित्र है।
  3. जब वह आया तब वर्षा हो रही थी।
  4. यदि वह पढ़ता तो अवश्य पास होता।

उपर्युक्त वाक्यों में वाक्य (क) में ‘अध्यापक ने बताया’ मुख्य उपवाक्य है और ‘कल स्कूल में छुट्टी रहेगी’ आश्रित उपवाक्य है जिसे ‘कि’ योजन से जोड़ा गया है। वाक्य ‘ख’ में ‘मेरा भाई है’ मुख्य उपवाक्य है और ‘लड़का कमरे में बैठा है’ आश्रित उपवाक्य है।

आश्रित उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं –

(क) संज्ञा उपवाक्य – जो उपवाक्य वाक्य में संज्ञा का काम करते है, संज्ञा उपवाक्य कहलाते हैं। इस उपवाक्य से पहले ‘कि’ का प्रयोग होता है और कभी-कभी ’कि’ का लोप भी हो जाता हैै जैसे –

  1. मुझे विश्वास है कि आप दीपावली पर घर जरूर जाएँगे।
  2. मैं जानता हूँ वह चोर है।

(ख) विशेषण उपवाक्य – विशेषण उपवाक्य मुख्य उपवाक्य में प्रयुक्त किसी संज्ञा की विशेषता बताता है। हिन्दी में जो , जिस, जिसे, आदि वाले उपवाक्य प्रायः विशेषण उपवाक्य होते हैं। जैसे-

  1. वह पुस्तक कहाँ है, जो पिताजी लाये थे।
  2. जो आत्वविश्वासी होता है, वही आगे बढ़ता है।
  3. जिसे आप ढूँढ़ रहे हैं, वह मैं नहीं हूँ।

अधिकतर विशेषण उपवाक्य वाक्य के प्रारंभ या अंत में प्रयुक्त होते है, जैसे –

  1. जो पैसे मुझे मिले थे, वे खर्च हो गए। (प्रारंभ मेें)
  2. वे पैसे खर्च हो गए, जो मुझे मिले थे। (अंत में)

(ग) क्रियाविशेषण उपवाक्य – यह उपवाक्य सामान्यतः मुख्य उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बताता है। ये क्रियाविशेषण उपवाक्य किसी काल, स्थान, रीति, प्रिमाण, कार्य-कारण आदि का द्योतन करते है। इसमें जब, जहॉं, जैसा, ज्यों-ज्यों आदि समुच्चयबोधक अव्यय प्रयुक्त होते हैं, जैसे –

  1. जब वह लौटा, तब मैं घर में था।                                    (कालवाची)
  2. जहाँ तुम जा रहे हो वहीं मैं भी जा रहा हूँ।                       (स्थानवाची)
  3. जैसा आप ने बताया था, वैसा मैंने किया।                      (रीतिवाची)
  4. यदि मोहन ने पढ़ा होता तो वह अवश्व उत्तीर्ण होता।     (कार्य-कारण)
  5. उतना खाओ जितना पचा सको।                                    (परिमाणवाची)

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(ख) अर्थ के आधार पर वाक्य

वाक्य का प्रयोग किसी-न-किसी उद्देश्य अथवा प्रयोजन से होता है। कभी हम आज्ञा दे कर कोई काम करवाते हैं, कभी प्रार्थना करते है, कभी अपने मन की भावनाओं या इच्छाओं को प्रकट करते है, कभी आश्चर्य व्यक्त करते हैं और कभी प्रश्न करते हैं। इन आधारों पर वाक्य के छः भेद हैं

(1) विधानवाचक वाक्य: कथनात्मक वाक्यों से किसी स्थिति या वस्तु के बारे में सामान्य बात कही जाती है, जैसे-

  1. मोहन विद्यालय जाता है।
  2. सुरेश को कल बुखार था।

(2) निषेधात्मक वाक्य: इसमें किसी कार्य के निषेध का बोध होता है। जैसे –

  1. मोहन विद्यालय नहीं जाता।
  2. वह घर पर नहीं है।

(3) आज्ञार्थक वाक्य: इस वाक्य द्वारा किसी व्यक्ति को आदेश, आज्ञा या निर्देश देकर काम करवाया जाता है। जैसे-

  1. चुपचाप बैठ जाओ।
  2. यहाँ शोर मत करो।

(4) विस्मयादिबोधक या मनोवेगात्मक वाक्य: इस प्रकार के वाक्यों में वक्ता के विस्मय, शोक, घृणा आदि मनोभावों का बोध होता है, जैसे-

  1. अहा! कितना सुंदर दृश्य है।
  2. उफ! कितनी ठंड है।

(5) प्रश्नवाचक वाक्य: इस वाक्य में प्रश्न पूछने की सूचना मिलती है। जैसे –

  1. आप क्या पढ़ रहे हैं?
  2. आपका नाम क्या है?

(6) संकेतवाचक वाक्य: इसमें एक बात या कार्य का होना या न होना किसी दूसरी बात या कार्य के होने या न होने पर निर्भर होता है, जैसे –

  1. यदि वर्षा होती तो फसल अच्छी होती।
  2. अगर तुम परिश्रम करते तो उत्तीर्ण हो जाते।

(7) इच्छावाचक वाक्य : इच्छा, आशीर्वाद व्यक्त करने वाला वाक्य। जैसे –

  1. तुम्हारी यात्र मंगलमय हो।
  2. आओ घूमने चलें।

(8) संदेहवाचक वाक्य : जिस वाकय से संदेह व संभावना का बोध हो, संदेहवाचक वाक्य कहलाता है। जैसे-

  1. शायद आज वर्षा होगी।
  2. अब तो गाड़ी जा चुकी होगी।

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