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पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया
प्रश्न – लोकतन्त्र में अखबार कैसा कार्य करते हैं?
उत्तर – लोकतन्त्र में अखबार एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माण का कार्य करते हैं।
प्रश्न – पत्रकारिता के विकास में कौन-सा मूलभाव सक्रिय रहता है?
उत्तर – जिज्ञासा।
प्रश्न – पत्रकारीय लेखन क्या है?
उत्तर – अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
प्रश्न – पत्रकार कितनी तरह के होते है?
उत्तर – पत्रकार तीन तरह के होते हैं-
- पूर्णकालिक,
- अंशकालिक
- फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र।
प्रश्न- पूर्णकालिक पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर – पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करनेवाला नियमित वेतनभोगी पत्रकार होता है।
प्रश्न – अंशकालिक पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर – अंशकालिक पत्रकार (स्ट्रिंगर) किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करनेवाला पत्रकार है।
प्रश्न- फ्रीलांसर पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर- फ़्रीलांसर पत्रकार का संबंध किसी खास अखबार से नहीं होता है बल्कि वह भुगतान के आधार पर अलग-अलग अखबारों के लिए लिखता है।
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प्रश्न – पत्रकारीय लेखन और सृजनात्मक लेखन में क्या अंतर है?
उत्तर-
पत्रकारीय लेखन | सृजनात्मक लेखन |
पत्रकारीय लेखन का संबंध और दायरा समसामयिक और वास्तविक घटनाओं, समस्याओं और मुद्दों से है। | सृजनात्मक लेखन का सबंध और दायरा अत्यधिक विस्तृत है। इसमें इतिहास, संस्कृति और परंपरा की झलक होती है। |
इस लेखन का रिश्ता तथ्यों से है न कि कल्पना से। | इस लेखन में कल्पना को भी स्थान दिया जाता है। |
यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है। | साहित्यिक रचनात्मक लेखन में लेखक को काफ़ी छूट होती है। |
प्रश्न – पत्रकारीय लेखन की शैली कैसी होनी चाहिए?
उत्तर – अखबार और पत्रिका के लिए लिखने वाले लेखक और पत्रकार को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि वह विशाल समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें एक विश्वविद्यालय के कुलपति सरीखे विद्वान से लेकर कम पढ़ा-लिखा मजदूर और किसान सभी शामिल हैं। इसलिए
- उसकी लेखन शैली, भाषा और गूढ़ से गूढ़ विषय की प्रस्तुति ऐसी सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए कि वह आसानी से सबकी समझ में आ जाए।
- पत्रकारीय लेखन में अलंकारिक-संस्कृतनिष्ठ भाषा-शैली के बजाय आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जाता है।
- पाठकों को ध्यान में रखकर ही अखबारों में सीधी, सरल, साफ़-सुथरी लेकिन प्रभावी भाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है।
- शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।
- वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए।
- जटिल और लंबे वाक्यों से बचना चाहिए।
- भाषा को प्रभावी बनाने के लिए गैरजरूरी विशेषणों, जार्गन्स (ऐसी शब्दावली जिससे बहुत कम पाठक परिचित होते हैं) और क्लीशे (पिष्टोक्ति या दोहराव) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इनके प्रयोग से भाषा बोझिल हो जाती है।
प्रश्न- संवाददाता या रिपोर्टर किसे कहते हैं?
उत्तर- आमतौर पर अखबारों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं।
प्रश्न – पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना पहचाना रूप किसे माना जाता है?
उत्तर – पत्रकारीय लेखन के सबसे जाना पहचाना रूप समाचार लेखन को माना जाता है।
प्रश्न – अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार किस खास शैली में लिखे जाते हैं?
उत्तर – उल्टा पिरामिड शैली।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली के कितने भाग होते हैं?
उत्तर – उल्टा पिरामिड शैली के तीन भाग होते हैं – इंट्रो या मुखड़ा, बॉडी, समापन।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली में इंट्रो या मुखड़ा किसे कहा जाता है?
उत्तर – समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ़ में लिखा गया है। इसे ही इंट्रो या मुखड़ा कहा जाता है।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली में बॉडी किसे कहा जाता है?
उत्तर – उल्टा पिरामिड शैली में इंट्रो या मुखड़ा के बाद घटते क्रम में ख़बर का विस्तृत ब्यौरा दिया जाता है। इसे ही उल्टा पिरामिड शैली का बॉडी भाग कहा जाता है।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली में समापन भाग के विषय में बताइए?
उत्तर- यह समाचार का सबसे कम महत्वपूर्ण भाग होता है। इसे सबसे अंत में बताया जाता है। इसके अंतर्गत तथ्य या स्रोत का विवरण दिया जाता है। अधिक महत्वपूर्ण न होने पर अथवा स्पेस न होने पर इसे काटकर छोटा भी किया जा सकता है।
प्रश्न – समाचार लेखन की किस शैली को सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली माना जाता है?
उत्तर – उल्टा पिरामिड शैली।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली को किस शैली के उलट माना जाता है?
उत्तर – उल्टा पिरामिड शैली कहानी या कथा लेखन की शैली के ठीक उलटी है, जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली को इस नाम से क्यों जाना जाता है?
उत्तर – इसे उल्टा पिरामिड इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य या सूचना ‘यानी क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में नहीं होती बल्कि इस शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है।
प्रश्न – उल्टा पिरामिड शैली का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर – इस शैली का प्रयोग 19वीं सदी के मध्य से ही शुरू हो गया था लेकिन इसका
विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के दौरान हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपनी खबरें टेलीग्राफ़ संदेशों के जरिये भेजनी पड़ती थीं जिसकी सेवाएँ महँगी, अनियमित और दुर्लभ थीं। कई बार तकनीकी कारणों से सेवा ठप्प हो जाती थी। इसलिए संवाददाताओं को किसी घटना की खबर कहानी की तरह विस्तार से लिखने के बजाय संक्षेप में देनी होती थी। इस तरह उल्टा पिरामिड-शैली का विकास हुआ और धीरे-धीरे लेखन और संपादन की सुविधा के कारण यह शैली समाचार लेखन की मानक (स्टैंडर्ड) शैली बन गई।
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प्रश्न – किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित खबर लिखते हुए किन छह ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है?
उत्तर – किसी समाचार को लिखते हुए मुख्यतः छह सवालों का जवाब देने की कोशिश की जाती है क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ? इसको छह ककारों -क्या, किसके (या कौन), कहाँ, कब, क्यों और कैसे के रूप में भी जाना जाता है।
प्रश्न – समाचार के मुखड़े में किन ककारों पर आधारित खबर लिखी जाती है?
उत्तर – समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी जाती है। ये चार ककार हैं – क्या, कौन, कब और कहाँ?
प्रश्न – समाचार के बॉडी भाग में किन ककारों पर आधारित खबर लिखी जाती है?
उत्तर – समाचार की बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे और क्यों-का जवाब दिया जाता है।
प्रश्न – कौन-से सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं?
उत्तर – क्या, कौन, कब और कहाँ।
प्रश्न – किन ककारों के द्वारा खबर के विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है?
उत्तर – कैसे और क्यों के द्वारा खबर के विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
प्रश्न – फीचर क्या है?
उत्तर – फ़ीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जिसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना होता है।
प्रश्न – समाचार और फीचर में अंतर बताइए?
उत्तर –
समाचार | फीचर |
समाचार का कार्य पाठकों को सूचना देना होता है। | फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है। |
इसका उद्देश्य पाठकों को ताज़ी घटना से अवगत करना होता है। | इसका उद्देश्य पाठकों को सूचना देना, शिक्षित करना और मनोरंजन करना होता है। |
इसमें शब्द-सीमा होती है। | इसमें शब्द-सीमा नहीं होती। अच्छे फीचर में 250 से लेकर 2000 तक शब्द हो सकते हैं। |
इसमें लेखक के विचारों और कल्पना के लिए कोई स्थान नहीं होता। | इसमें लेखक की कल्पना और विचारों को स्थान मिलता है। |
इसमें फोटो का होना अनिवार्य नहीं है। | अच्छे फीचर के साथ फोटो या ग्राफिक्स होना अनिवार्य है। |
इसमें उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग किया जाता है। | इसमें उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता। |
इसकी भाषा में सपाट बयानी होती है। | फ़ीचर लेखन की भाषा समाचारों के विपरीत सरल, रूपात्मक, आकर्षक और मन को छूनेवाली होती है। |
प्रश्न – फीचर के प्रकार बताइए।
उत्तर – फीचर कई प्रकार के होते हैं जिसमें मुख्य निम्न हैं –
- समाचार बैकग्राउंड फीचर
- रूपात्मक फीचर
- यात्रा फीचर
- खोजपरक फीचर
- जीवनशैली फीचर
- विशेषकार्य फीचर
- व्यक्तिचित्र फीचर
- साक्षात्कार फीचर
प्रश्न – फीचर की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
- फ़ीचर लेखन की शैली काफ़ी हद तक कथात्मक शैली की तरह है।
- फ़ीचर लेखन की भाषा सरल, रूपात्मक, आकर्षक और मन को छूनेवाली होती है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि फ़ीचर की भाषा और शैली को अलंकारिक और दुरूह बना दिया जाए।
- फ़ीचर आमतौर पर समाचार रिपोर्ट से बड़े होते हैं। अखबारों और पत्रिकाओं में 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फ़ीचर छपते हैं।
- एक अच्छे और रोचक फ़ीचर के साथ फ़ोटो, रेखांकन, ग्राफ़िक्स आदि का होना जरूरी है।
- फ़ीचर का विषय कुछ भी हो सकता है। हलके-फुलके विषयों से लेकर गंभीर विषयों और मुद्दों पर भी फ़ीचर लिखा जा सकता है। जैसे आप अपने स्कूल पर एक परिचयात्मक फ़ीचर लिखने से लेकर उसके सालाना समारोह या अपनी शैक्षणिक यात्रा (स्टडी टूर) पर केंद्रित फ़ीचर लिख सकते हैं।
- फ़ीचर एक तरह का ट्रीटमेंट है जो आमतौर पर विषय और मुद्दे की जरूरत के मुताबिक उसे प्रस्तुत करते हुए दिया जाता है।
- फ़ीचर कोई नीरस शोध रिपोर्ट भी नहीं है। वह बड़ी घटनाओं, कार्यक्रमों और आयोजनों की सूखी और बेजान रिपोर्ट भी नहीं है। फ़ीचर आमतौर पर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है।
- फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फ़ॉर्मूला नहीं होता है। इसलिए आप फ़ीचर कहीं से भी शुरू कर सकते हैं।
प्रश्न – फीचर लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर – फीचर लिखते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
- फ़ीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों यानी पात्रों की मौजूदगी जरूरी है।
- कहानी को उनके जरिये कहने की कोशिश कीजिए यानी पात्रों के माध्यम से उस विषय के विभिन्न पहलुओं को सामने ले आइए।
- कहानी को बताने का अंदाज ऐसा हो कि आपके पाठक यह महसूस करें कि वे खुद देख और सुन रहे हैं।
- फ़ीचर को मनोरंजक होने के साथ-साथ सूचनात्मक होना चाहिए। तात्पर्य यह है कि फ़ीचर को किसी बैठक या सभा के कार्यवाही विवरण की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए।
- फ़ीचर की कोई न कोई थीम होनी चाहिए। उस थीम के इर्द-गिर्द सभी प्रासंगिक सूचनाएँ, तथ्य और विचार गुँथे होने चाहिए।
- हर फ़ीचर का एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। प्रारंभ आकर्षक और उत्सुकता पैदा करनेवाला होना चाहिए। हालाँकि प्रारंभ, मध्य और अंत को अलग-अलग देखने के बजाय पूरे फ़ीचर को समग्रता में देखना चाहिए लेकिन अगर फ़ीचर का प्रारंभ आकर्षक, रोचक और प्रभावी हो तो बाकी पूरा फ़ीचर भी पठनीय और रोचक बन सकता है।
- हर पैराग्राफ़ अपने पहले के पैराग्राफ़ से सहज तरीके से जुड़ा हो और शुरू से आखिर तक प्रवाह और गति बनी रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए पैराग्राफ़ छोटे रखिए और एक पैराग्राफ़ में एक पहलू पर ही फ़ोकस कीजिए।
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प्रश्न – विशेष रिपोर्ट किसे कहते हैं?
उत्तर – अखबारों और पत्रिकाओं में सामान्य समाचारों के अलावा गहरी छानबीन, विश्लेषण और व्याख्या के आधार पर रिपोर्टें भी प्रकाशित होती हैं।
प्रश्न – विशेष रिपोर्ट कैसे तैयार की जाती है?
उत्तर –
- विशेष रिपोर्टों को तैयार करने के लिए किसी घटना, समस्या या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है।
- उससे संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों को इकट्ठा किया जाता है।
- तथ्यों के विश्लेषण के जरिये उसके नतीजे, प्रभाव और कारणों को स्पष्ट किया जाता है।
- आमतौर पर विभिन्न प्रकार की विशेष रिपोर्टों को समाचार लेखन की उलटा पिरामिड-शैली में ही लिखा जाता है लेकिन कई बार ऐसी रिपोर्टों को फ़ीचर शैली में भी लिखा जाता है।
- चूँकि ऐसी रिपोर्टें सामान्य समाचारों की तुलना में बड़ी और विस्तृत होती हैं, इसलिए पाठकों की रुचि बनाए रखने के लिए कई बार उलटा पिरामिड और फ़ीचर दोनों ही शैलियों को मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है।
- रिपोर्ट बहुत विस्तृत और बड़ी हो तो उसे शृंखलाबद्ध करके कई दिनों तक किस्तों में छापा जाता है।
- विशेष रिपोर्ट की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की होनी चाहिए।
प्रश्न – विशेष रिपोर्ट कितने प्रकार की होती है?
उत्तर – विशेष रिपोर्ट के कई प्रकार होते हैं जैसे – खोजी रिपोर्ट (इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट), इन-डेप्थ रिपोर्ट, विश्लेषणात्मक रिपोर्ट, विवरणात्मक रिपोर्ट, फीचर रिपोर्ट आदि।
प्रश्न – खोजी रिपोर्ट क्या होती है?
उत्तर – खोजी रिपोर्ट में रिपोर्टर मौलिक शोध और छानबीन के जरिये ऐसी सूचनाएँ या तथ्य सामने लाता है जो सार्वजनिक तौर पर पहले से उपलब्ध नहीं थीं। खोजी रिपोर्ट का इस्तेमाल आमतौर पर भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न – इन-डेप्थ रिपोर्ट क्या होती है?
उत्तर – इन-डेप्थ रिपोर्ट में सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं और आँकड़ों की गहरी छानबीन की जाती है और उसके आधार पर किसी घटना, समस्या या मुद्दे से जुड़े महत्त्वपूर्ण पहलुओं को सामने लाया जाता है।
प्रश्न – विश्लेषणात्मक रिपोर्ट किसे कहते हैं?
उत्तर – विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में जोर किसी घटना या समस्या से जुड़े तथ्यों के विश्लेषण और व्याख्या पर होता है।
प्रश्न – विवरणात्मक रिपोर्ट किसे कहते हैं?
उत्तर – विवरणात्मक रिपोर्ट में किसी घटना या समस्या के विस्तृत और बारीक विवरण को प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है।
प्रश्न – फीचर रिपोर्ट किसे कहते है?
उत्तर – जो रिपोर्ट उलटा पिरामिड शैली में न लिखकर कथात्मक शैली में लिखी जाती है उसे फीचर रिपोर्ट कहते हैं।
प्रश्न – विचारपरक लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर – अखबारों में समाचार और फ़ीचर के अलावा विचारपरक सामग्री का भी प्रकाशन होता है। कई अखबारों की पहचान उनके वैचारिक रुझान से होती है। एक तरह से अखबारों में प्रकाशित होने वाले विचारपूर्ण लेखन से उस अखबार की छवि बनती है।
प्रश्न – विचारपरक लेखन के उदाहरण बताइए।
उत्तर – विचारपरक लेखन के अंतर्गत निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-
- संपादकीय लेखन,
- लेख
- टिप्पणियाँ
- विषयों के विशेषज्ञों या वरिष्ठ पत्रकारों के स्तंभ (कॉलम)
- संपादक के नाम पत्र
- साक्षात्कार
प्रश्न – संपादकीय किसे कहा जाता है?
उत्तर – संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय को उस अखबार की अपनी आवाज माना जाता है। संपादकीय के जरिये अखबार किसी घटना, समस्या या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति विशेष का विचार नहीं होता इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक, संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता है।
प्रश्न – स्तंभ लेखन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – कुछ महत्त्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखन-शैली भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने का जिम्मा दे देते हैं। स्तंभ का विषय चुनने और उसमें अपने विचार व्यक्त करने की स्तंभ लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ में लेखक के विचार अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए जाते हैं। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते हैं। लेकिन नए लेखकों को स्तंभ लेखन का मौका नहीं मिलता है।
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प्रश्न – ‘संपादक के नाम पत्र’ पर अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर – अखबाराें के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है। यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इस स्तंभ के जरिये अखबार के पाठक न सिर्फ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं बल्कि जन समस्याओं को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिबित करता है। जरूरीनहीं कि अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए लेखन की शुरुआत करने और उन्हें हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।
प्रश्न – लेख किसे कहते हैं?
उत्तर – सभी अखबार संपादकीय पृष्ठ पर समसामयिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उन विषयों के विशेषज्ञों के लेख प्रकाशित करते हैं। इन लेखों में किसी विषय या मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की जाती है। लेख विशेष रिपोर्ट और फ़ीचर से इस मामले में अलग है कि उसमें लेखक के विचारों को प्रमुखता दी जाती है। लेकिन ये विचार तथ्यों और सूचनाओं पर आधारित होते हैं और लेखक उन तथ्यों और सूचनाओं के विश्लेषण और अपने तर्कों के जरिये अपनी राय प्रस्तुत करता है। लेख लिखने के लिए पर्याप्त तैयारी जरूरी है। इसके लिए उस विषय से जुड़े सभी तथ्यों और सूचनाओं के अलावा पृष्ठभूमि सामग्री भी जुटानी पड़ती है। यह भी देखना चाहिए कि उस विषय पर दूसरे लेखकों और पत्रकारों के क्या विचार हैं?
प्रश्न – लेख की शैली कैसी होती है?
उत्तर –
- लेख की कोई एक निश्चित लेखन शैली नहीं होती और हर लेखक की अपनी शैली होती है। लेकिन अगर आप अखबारों और पत्रिकाओं के लिए लेख लिखना चाहते हैं तो शुरुआत उन विषयों के साथ करनी चाहिए जिस पर आपकी अच्छी पकड़ और जानकारी हो।
- लेख का भी एक प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। लेख की शुरुआत में अगर उस विषय के सबसे ताजा प्रसंग या घटनाक्रम का विवरण दिया जाए और फिर उससे जुड़े अन्य पहलुओं को सामने लाया जाए, तो लेख का प्रारंभ आकर्षक बन सकता है। इसके बाद तथ्यों की मदद से विश्लेषण करते हुए आखिर में आप अपना निष्कर्ष या मत प्रकट कर सकते हैं।
प्रश्न – साक्षात्कार/इंटरव्यू किसे कहते हैं?
उत्तर – समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्त्व है। पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के जरिये ही समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्ठा करते हैं। पत्रकारिय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह प़्ाफ़र्क होता है कि साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है। एक सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिप़्ाफ़र् ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें संवेदनशीलता, कूटनीति, धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए। एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए यह जरूरी है कि आप जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने जा रहे हैं, उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी हो। दूसरे, आप साक्षात्कार से क्या निकालना चाहते हैं, इसके बारे में स्पष्ट रहना बहुत जरूरी है। आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम पाठक के मन में हो सकते हैं। साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है लेकिन अगर ऐसा संभव न होतो साक्षात्कार के दौरान आप नोट्स लेते रहें। साक्षात्कार को लिखते समय आप दो में से कोई भी एक तरीका अपना सकते हैं। एक आप साक्षात्कार को सवाल और फिर जवाब के रूप में लिख सकते हैं या फिर उसे एक आलेख की तरह से भी लिख सकते हैं।
प्रश्न – अच्छे लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य कौन-कौन सी बातें होती हैं?
उत्तर – अच्छे लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें-
- छोटे वाक्य लिखें। जटिल वाक्य की तुलना में सरल वाक्य संरचना को वरीयता दें।
- आम बोलचाल की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करें। गैर-जरूरी शब्दों के इस्तेमाल से बचें। शब्दों को उनके वास्तविक अर्थ समझकर ही प्रयोग करें।
- अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत जरूरी है। जाने-माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़िए।
- लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के साथ-साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं।
- इसके साथ-साथ मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखन में रंग
भरने की कोशिश कीजिए। - अपने लिखे को दोबारा जरूर पढ़िए और अशुद्धियों के साथ-साथ गैर-जरूरी चीजों को हटाने में संकोच मत कीजिए। लेखन में कसावट बहुत जरूरी है।
- लिखते हुए यह ध्यान रखिए कि आपका उद्देश्य अपनी भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है न कि दूसरे को प्रभावित करना।
- एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आसपास घटने वाली घटनाओं, समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए और उन्हें इस तरह से देखना चाहिए कि वे अपने लेखन के लिए उससे विचारबिदु निकाल सकें।
- एक अच्छे लेखक में तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य होना चाहिए।
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