अभिव्यक्ति और माध्यम » विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

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(क) मुद्रित/प्रिंट माध्यम

मुद्रित माध्यम (मुख्य तथ्य)

  • यह जनसंचार का सबसे प्राचीन माध्यम है। इसके अंतर्गत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें, पोस्टर, पैम्फलेट, इंटरनेट के द्वारा सूचना का मुद्रित रूप आदि शामिल हैं।
  • मुद्रण की शुरुआत चीन में हुई।
  • दुनिया में अखबारी पत्रकारिता को अस्तित्व में आए 400 साल हो गए हैं।
  • जर्मनी के गुटेनबर्ग ने छापाखाना की खोज की।
  • यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेनेसाँ’ की शुरुआत में छापेखाने की अहम भूमिका थी।
  • ईसाई मिशनरियों द्वारा धार्मिक पुस्तकें छापने के लिए 1556 ई0 में भारत में पहला छापाखाना गोवा में खोला गया।
  • भारत में छपने वाला पहला समाचार पत्र बंगाल गज़ट था। यह कलकत्ता से 1780 ई0 में छपना शुरू हुआ था। इसके संपादक जेम्स आगुस्त हिकी थे।
  • हिन्दी का पहला समाचार पत्र उदन्त मार्तंड था। यह कलकत्ता से 1826 ई0 में छपना शुरू हुआ था। इसके संपादक पंडित जुगल किशोर थे।
  • गांधी जी को हम समकालीन भारत का सबसे बड़ा पत्रकार कह सकते हैं, क्योंकि आजादी दिलाने में उनके पत्रें ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • आजादी से पहले पत्रकारिता का लक्ष्य स्वाधीनता की प्राप्ति था।
  • आजादी के बाद शुरुआती दो दशकों तक पत्रकारिता राष्ट्र-निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध दिखती थी। लेकिन उसके बाद उसका चरित्र व्यावसायिक और प्रोफ़ेशनल होने लगा।
  • वर्तमान में अधिकतर मुद्रण का कार्य कम्प्यूटर की सहायता से होता है।

मुद्रित माध्यम (विशेषताएँ)

  • लिखा हुआ स्थायी होता है।
  • लिखित सामग्री जैसे पुस्तक, पत्र आदि को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • एक बार समझ न आने पर पुनः पढ़ा जा सकता है।
  • कठिन शब्दों के अर्थ समझने के लिए शब्दकोश का प्रयोग कर सकते हैं।
  • ख़बर या सूचना को अपनी मर्जी से पहले या बाद में पढ़ा जा सकता है।

मुद्रित माध्यम (कमियाँ)

  • तुरंत घटी घटनाओं की जानकारी देर से मिलती है, क्योंकि मुद्रित माध्यम दैनिक, साप्ताहिक या मासिक रूप से छपते हैं।
  • निरक्षर लोगों के लिए अनुपयोगी है।
  • किसी ख़बर के प्रकाशन के लिए निश्चित समय सीमा (डेडलाइन) होती है।
  • ख़बर के प्रकाशन के लिए स्थान की भी सीमा होती है।
  • किसी भी गलती को सुधारने के लिए अगले अंक की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

मुद्रित माध्यम (ध्यान रखने वाली बातें)

  • सरल, सहज और मानक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
  • व्याकरण का ध्यान रखना चाहिए।
  • वर्तनी (Spellings) का ध्यान रखना चाहिए।
  • खबर या सूचना के अनुसार शैली अपनानी चाहिए।
  • समय सीमा और आवंटित स्थान का ध्यान रखना चाहिए।
  • अशुद्धियों को ठीक करना चाहिए।
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(ख) रेडियो

रेडियो(मुख्य तथ्य)

  • रेडियो जनसंचार का श्रव्य (ध्वनि) माध्यम है। रेडियो जनसंचार का रेखीय माध्यम है। अर्थात इसमें अधिकतर एकतरफा संचार होता है।
  • सन् 1895 में जब इटली के इलैक्ट्रिकल इंजीनियर जी0 मार्कोनी ने वायरलेस के जरिये ध्वनियों और संकेतों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में कामयाबी हासिल की, तब रेडियो जैसा माध्यम अस्तित्व में आया।
  • भारत में सन 1936 ई0 में विधिवत रूप से आल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई।
  • भारत में सन 1993 ई0 एफ0एम0 (फ्रिक्वेंसी मॉड्युलेशन) की शुरुआत हुई।
  • 1997 में आकाशवाणी और दूरदर्शन को केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण से निकालकर प्रसार भारती नाम के स्वायत्तशासी निकाय को सौंप दिया गया।

रेडियो की विशेषताएँ

  • यह जनसंचार का सस्ता माध्यम है।
  • यह सर्वसुलभ है। जहाँ मनोरंजन के अन्य साधन नहीं हैं, वहाँ भी रेडियो आसानी से उपलब्ध हो जाता है। जैसे दूर दराज के गाँव, पहाड़ी क्षेत्र आदि।
  • निरक्षर और साक्षर दोनों ही रेडियो सुन सकते हैं।
  • रेडियो से ज्ञानवर्धन के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है।

रेडियो की कमियाँ

  • खबर और कार्यक्रमों का निश्चित समय होता है, इसलिए उनकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
  • ख़बर या कार्यक्रम पुनः सुनने के लिए पीछे नहीं जा सकते।
  • रेडियो पर लंबे कार्यक्रम उबाऊ हो जाते हैं। जिससे श्रोताओं को बाँधकर रखना मुश्किल हो जाता है।
  • समाचार सुनते हुए यदि कोई कठिन शब्द आ जाए तो समझने में कठिनाई हो सकती है।

रेडियो (ध्यान रखने वाली बातें)

  • रेडियो के माध्यम से संचार करते हुए ध्वनि, शब्द और स्वर की प्रमुखता रहती है।
  • सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
  • वाक्य छोटे और तारतम्यता से युक्त हों।
  • जटिल शब्दों और मुहावरों के प्रयोग से बचना चाहिए।
रेडियो के लिए समाचार लेखन

समाचार लेखन की शैली (उल्टा पिरामिड शैली)

  1. इंट्रो – यह समाचार का मुख्य भाग होता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को सर्वप्रथम दिखाया जाता है। इसमें क्या, कौन, कब, कहाँ के अनुसार खबर के बारे में बताया जाता है।
  2. बॉडी – इंट्रो के बाद घटते क्रम में ख़बर का विस्तृत विवरण दिया जाता है। इसमें कैसे और क्यों के रूप में घटना को विस्तार से बताया जाता है।
  3. समापन – इसमें घटना की जानकारी किस स्रोत से मिली है इसके बारे में बताया जाता है। इसे अधिक महत्वपूर्ण न होने पर या समय की कमी होने पर काट कर छोटा भी किया जा सकता है।

समाचार लेखन में ध्यान रखने वाली बातें-

  • साफ सुथरी टाइप कॉपी होनी चाहिए।
  • ट्रिपल स्पेस में टाइप करते हुए दोनों और हाशिया छोड़ना चाहिए।
  • एक पंक्ति में 12-13 शब्दों ही प्रयोग होना चाहिए।
  • पंक्ति के अंत में विभाजित शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • जटिल शब्दों और संक्षिप्त अक्षरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • लंबे अंकों और दिनांक को शब्दों में लिखना चाहिए।
  • वर्तनी (Spellings) पर ध्यान देना चाहिए।
  • निम्नलिखित, क्रमांक, अधोहस्ताक्षरित, किन्तु, परंतु, लेकिन, उपर्युक्त, पूर्वोक्त जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
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(ग) टेलीविज़न

टेलीविज़न (मुख्य तथ्य)

  • टेलीविज़न जनसंचार का दृश्य-श्रव्य तथा रेखीय माध्यम है।
  • इसमें ध्वनि तथा शब्दों की अपेक्षा दृश्यों/तस्वीरों को अधिक महत्व दिया जाता है।
  • इसमें कम-से-कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा ख़बर दिखाने की शैली का प्रयोग किया जाता है। 
  • 15 अगस्त 1965 ई0 से भारत में विधिवत टेलिविजन सेवा का आरंभ हुआ।
  • टेलिविजन सेवा पहले आकाशवाणी का ही हिस्सा थी। 1 अप्रैल 1976 ई0 से इसे आकाशवाणी से अलग कर दिया गया और दूरदर्शन नाम दिया गया। 1984 में इसकी रजत जयंती मनाई गई।

टेलीविज़न की विशेषताएँ

  • यह ज्ञानवर्धन के साथ-साथ मनोरंजन का भी साधन है।
  • कहीं की भी घटना को घर बैठे लाइव देखा जा सकता है।
  • यह साक्षर और निरक्षर दोनों के लिए उपयोगी है।
  • इसमें सुनने के साथ देखने का भी आनंद लिया जा सकता है।

टेलीविज़न की कमियाँ

  • खबर और कार्यक्रमों का निश्चित समय होता है, इसलिए उनकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
  • ख़बर या कार्यक्रम पुनः सुनने के लिए पीछे नहीं जा सकते।
  • कई बार इसके द्वारा सैक्स और हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है। जिसका बच्चों पर गलत असर पड़ता है।

टेलीविज़न (ध्यान रखने वाली बातें)

  • टेलीविज़न के माध्यम से संचार करते हुए तस्वीर, शब्द और स्वर की प्रमुखता रहती है। इनमें तारतम्यता होनी चाहिए।
  • सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
  • वाक्य छोटे और तारतम्यता से युक्त हों।
  • जटिल शब्दों और मुहावरों के प्रयोग से बचना चाहिए।
  • हिंसा और सैक्स का प्रचार करने वाले कार्यक्रमों और खबरों से बचना चाहिए।
टीवी पर ख़बर दिखाने के प्रमुख चरण
  1. फ्लैश (ब्रेकिंग न्यूज़) – किसी खबर को तत्काल और कम शब्दों में दिखाना ब्रेकिंग न्यूज़ कहलाता है।
  2. ड्राई एंकर – घटना स्थल पर मौजूद संवाददाता से संपर्क न होने तक स्टुडियो में उपस्थित एंकर जब घटना के बारे में बताता है तो उसे ड्राई एंकर कहते हैं।
  3. फोन इन – घटना स्थल पर मौजूद संवाददाता से संपर्क होने पर संवाददाता घटना के बारे में फोन पर बताता है, इस प्रक्रिया को फोने इन कहते है।
  4. एंकर विजुअल – घटना स्थल की तस्वीर के साथ घटना के बारे में दर्शको को बताना एंकर विजुअल कहलाता है।
  5. एंकर बाइट – घटना स्थल पर मौजूद संवाददाता घटना के विषय में जब प्रत्यक्षदर्शी से बातचीत करता है तो उसे एंकर बाइट कहते हैं।
  6. लाइव – घटना स्थल का सीधा प्रसारण दिखाना ही लाइव कहलाता है।
  7. एंकर पैकेज – इसमें ग्राफिक्स के माध्यम से संबन्धित घटना के बारे में बताया जाता है।

प्रश्न :- नेट या नेट साउंड किसे कहते है?

उत्तर :- टी-वी- में ऐसी ध्वनियों को नेट या नेट साउंड यानी प्राकृतिक आवाजें कहते हैं जो  शूट करते हुए खुद-ब-खुद चली आती हैं। जैसे रिपोर्टर किसी आंदोलन की खबर ला रहा हो जिसमें खूब नारे लगे हों।

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(घ) इंटरनेट

इंटरनेट के मुख्य तथ्य

  • इंटरनेट जनसंचार का सबसे आधुनिक और वृहत माध्यम है। इसके द्वारा टीवी, रेडियो, पुस्तक, पत्र-पत्रिका, प्रिंट मीडिया आदि तक पहुँच आसान हो गई है।
  • इंटरनेट से माध्यम से पलक झपकते ही बड़े से बड़ा संदेश पूरी दुनिया के लोगों तक भेजा जा सकता है।
  • इंटरनेट की भाषा – एचटीएमएल (HTML – HYPER TEXT MARKUP LANGUAGE)
  • इंटरनेट पत्रकारिता – इंटरनेट के द्वारा खबरों का प्रकाशन ही इंटरनेट पत्रकारिता कहलाता है। इसे ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता भी कहा जाता है।
  • विश्व में इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। पहला दौर था 1982 से 1992 तक जबकि दूसरा दौर चला 1993 से 2001 तक। तीसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता 2002 से अब तक की है।
  • सच्चे अर्थों में इंटरनेट पत्रकारिता की शुरुआत 1983 से 2002 के बीच हुई। इस दौर में तकनीक के स्तर पर भी इंटरनेट का जबरदस्त विकास हुआ। नयी वेब भाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट मार्क्डअप लैंग्वेज) आई, इंटरनेट ईमेल आया, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम के ब्राउजर (वह औजार जिसके जरिये विश्वव्यापी जाल में गोते लगाए जा सकते हैं) आए। इन्होंने इंटरनेट को और भी सुविधासंपन्न और तेज-रफ्ऱ तार बना दिया।
  • भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का प्रथम दौर 1993 ई0 से तथा दूसरा दौर 2003 ई0 से माना जाता है। भारत में इस समय इंटरनेट पत्रकारिता का दूसरा दौर ही चल रहा है।
  • भारत में वेब पत्रकारिता करने वाली साइट – रीडिफ़ डॉटकॉम, इंडिया इन्फोलाइन, सीफी आदि।
  • विशुद्ध वेब पत्रकारिता करने वाली साइट – तहलका डॉटकॉम।
  • हिन्दी में नेट पत्रकारिता की शुरुआत वेब दुनिया से हुई। यह इंदौर से संचालित होती है।
  • कुछ हिन्दी समाचार पत्र जिनके वेब संस्करण भी है।
    • हिंदुस्तान
    • नवभारत टाइम्स
    • अमर उजाला
    • दैनिक जागरण
    • राष्ट्रीय सहारा
    • प्रभात खबर
    • नई दुनिया
  • प्रभासाक्षी ऐसा अखबार है जो प्रिंट रूप में न होकर केवल इंटरनेट पर है।
  • वर्तमान समय में पत्रकारिता की सर्वश्रेष्ठ साइट बी0बी0सी0 है।
  • हिन्दी की वेब पत्रिकाएँ –
    • अनुभूति
    • अभिव्यक्ति
    • हंस
    • वागर्थ
    • कथा क्रम
  • कुल मिलाकर हिदी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शैशव काल में ही है। सबसे बड़ी समस्या हिदी के फ़ौंट की है। अभी भी हमारे पास कोई एक ‘की-बोर्ड’ नहीं है।

इंटरनेट के गुण

  • कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच बना सकते हैं।
  • इंटरनेट के द्वारा प्रिंट, श्रव्य और दृश्य-श्रव्य सभी माध्यमों की पूर्ति हो जाती है।
  • तुरंत घटी घटनाओं की जानकारी मिल जाती है।
  • एक ही स्थान पर बटन दबाते है सूचनाओं का विशाल भंडार मिल जाता है।
  • बहुत-सी सरकारी सेवाएँ लोगों को घर बैठे ही उपलब्ध हो जाती हैं।

इंटरनेट के दोष

  • इंटरनेट पर समय बिताने में लोग इतने व्यस्त होते जा रहे हैं कि उनका परस्पर संवाद कम हो गया है।
  • निरक्षर लोगों के लिए महत्वहीन है।
  • इंटरनेट के द्वारा अश्लीलता का प्रचार होने से समाज पर बुरा असर हो रहा है।
  • कई बार इंटरनेट धोखा देने का औज़ार बन जाता है।
  • अफवाह फैलाने का सबसे आसान माध्यम।
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