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"शेर"
(कहानी का सार)
लोमड़ी शेर के मुहँ में नौकरी के लिए आवेदन करने जा रही थी। उसने सुना था कि शेर के मुँह में रोजगार का दफ्रतर है और वह बेरोजगार थी। उसे रोजगार चाहिए था। इसलिए वह स्वेच्छा से शेर के मुँह में चली जा रही थी।
कहानी में लेखक ने शेर को ऐसी व्यवस्था का प्रतीक बताया है जो उस समय तक खामोश रहती है जब तक उसकी आज्ञा का पालन होता रहता है। अगर कोई उस व्यवस्था का विरोध करता है तो वह शेर की भांति खूंखार हो जाती है।
शेर के मुँह में रोजगार का दफ्रतर नहीं था। वहाँ केवल इस बात का लोभ दिखाया गया था कि वहाँ कोई रोजगार का दफ्रतर है। जब व्यक्ति अंदर जाता है तो उसे पता चलता है कि वह छला गया है वहाँ कोई दफ्रतर नहीं था। रोजगार के दफ्रतर में योग्यतानुसार फार्म भरा जाता है और नौकरी दी जाती है।
किसी भी व्यवस्था का चलाना है तो उस पर विश्वास होना चाहिए। यदि लोगों का व्यवस्था से विश्वास उठ जाए तो वह नहीं चल सकती। कहानी में जब तक शेर के मुँह को रोजगार का दफ्रतर मानकर अंदर जा रहे थे तब तक वह शांत था। लेकिन लेखक को लगता है के उसे छला जा रहा है इसलिए वह व्यवस्था से प्रमाण माँगता है। ऐसा करने पर व्यवस्था उग्र हो उठती है और उस पर प्रहार करती है।
शेर (कहानी के प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – लोमड़ी स्वेच्छा से शेर के मुँह में क्यों चली जा रही थी?
उत्तर – लोमड़ी शेर के मुहँ में नौकरी के लिए आवेदन करने जा रही थी। उसने सुना था कि शेर के मुँह में रोजगार का दफ्रतर है और वह बेरोजगार थी। उसे रोजगार चाहिए था। इसलिए वह स्वेच्छा से शेर के मुँह में चली जा रही थी।
प्रश्न – कहानी में लेखक ने शेर को किस बात का प्रतीक बताया है?
उत्तर – कहानी में लेखक ने शेर को ऐसी व्यवस्था का प्रतीक बताया है जो उस समय तक खामोश रहती है जब तक उसकी आज्ञा का पालन होता रहता है। अगर कोई उस व्यवस्था का विरोध करता है तो वह शेर की भांति खूंखार हो जाती है।
प्रश्न – शेर के मुँह और रोज़गार के दफ्तर के बीच क्या अंतर है?
उत्तर – शेर के मुँह में रोजगार का दफ्तर नहीं था। वहाँ केवल इस बात का लोभ दिखाया गया था कि वहाँ कोई रोजगार का दफ्तर है। जब व्यक्ति अंदर जाता है तो उसे पता चलता है कि वह छला गया है वहाँ कोई दफ्तर नहीं था। रोजगार के दफ्तर में योग्यतानुसार फार्म भरा जाता है और नौकरी दी जाती है।
प्रश्न – ‘प्रमाण से अधिक महत्त्वपूर्ण है विश्वास’ कहानी के आधार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – किसी भी व्यवस्था का चलाना है तो उस पर विश्वास होना चाहिए। यदि लोगों का व्यवस्था से विश्वास उठ जाए तो वह नहीं चल सकती। कहानी में जब तक शेर के मुँह को रोजगार का दफ्रतर मानकर अंदर जा रहे थे तब तक वह शांत था। लेकिन लेखक को लगता है के उसे छला जा रहा है इसलिए वह व्यवस्था से प्रमाण माँगता है। ऐसा करने पर व्यवस्था उग्र हो उठती है और उस पर प्रहार करती है।
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"पहचान" (कहानी का सार)
राजा ने जनता को हुक्म दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद कर लें, जिससे जनता को शांति मिल सके। वास्तव में राजा अपने गलत कार्यों को जनता से छुपाना चाहता था और जनता को उन कार्यों के प्रति उदासीन करना चाहता था।
राजा ने हुक्म दिया कि उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे। लोगों ने ऐसा ही किया क्योंकि राजा की आज्ञा मानना जनता के लिए अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए-किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह कि काम पहले की तुलना में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। जनता ने जब आँखें खोलकर देखीं तो उन्हें पता चला कि तरक्की केवल राजा की हुई है, जनता की नहीं।
राजा ने हुक्म दिया –
- उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे।
- लोग अपने-अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिए बिलकुल ज़रूरी नहीं है।
- लोग अपने-अपने होंठ सिलवा लें, क्योंकि बोलना उत्पादन में सदा से बाधक रहा है।
इन सबका निहितार्थ था यह था कि राजा अपनी गलत मर्जी से कार्य करता रहे और जनता उससे उदासीन रहे।
जनता राज्य की स्थिति की ओर से आँखें बंद कर ले तो यह स्थिति राज्य के आर्थिक हितों के लिए ठीक होगी क्याेंकि इससे में उत्पादन बढ़ जाएगा। उसके विपरीत जनता पर इसका नकारात्मक असर होगा। ऐसा करने से राजा निरंकुश हो जाएगा और अत्याचार करेगा।
खैराती, रामू और छिद्दू ने जब आँखें खोलीं तो उन्हें सामने राजा ही इसलिए दिखाई दिया क्योंकि राजा की आज्ञा का पालन करने से केवल राजा की ही तरक्की हुई, जनता और ज्यादा दीन-हीन हो गई। जनता को इससे कोई लाभ नहीं हुआ।
पहचान (कहानी के प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – राजा ने जनता को हुक्म क्यों दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद कर लें?
उत्तर – राजा ने जनता को हुक्म दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद कर लें, जिससे जनता को शांति मिल सके। वास्तव में राजा अपने गलत कार्यों को जनता से छुपाना चाहता था और जनता को उन कार्यों के प्रति उदासीन करना चाहता था।
प्रश्न – आँखें बंद रखने और आँखें खोलकर देखने के क्या परिणाम निकले?
उत्तर – राजा ने हुक्म दिया कि उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे। लोगों ने ऐसा ही किया क्योंकि राजा की आज्ञा मानना जनता के लिए अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए-किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह कि काम पहले की तुलना में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। जनता ने जब आँखें खोलकर देखीं तो उन्हें पता चला कि तरक्की केवल राजा की हुई है, जनता की नहीं।
प्रश्न – राजा ने कौन-कौन से हुक्म निकाले? सूची बनाइए और इनके निहितार्थ लिखिए।
उत्तर – राजा ने हुक्म दिया –
- उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे।
- लोग अपने-अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिए बिलकुल ज़रूरी नहीं है।
- लोग अपने-अपने होंठ सिलवा लें, क्योंकि बोलना उत्पादन में सदा से बाधक रहा है।
इन सबका निहितार्थ था यह था कि राजा अपनी गलत मर्जी से कार्य करता रहे और जनता उससे उदासीन रहे।
प्रश्न – जनता राज्य की स्थिति की ओर से आँखें बंद कर ले तो उसका राज्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – जनता राज्य की स्थिति की ओर से आँखें बंद कर ले तो यह स्थिति राज्य के आर्थिक हितों के लिए ठीक होगी क्याेंकि इससे में उत्पादन बढ़ जाएगा। उसके विपरीत जनता पर इसका नकारात्मक असर होगा। ऐसा करने से राजा निरंकुश हो जाएगा और अत्याचार करेगा।
प्रश्न – खैराती, रामू और छिद्दू ने जब आँखें खोलीं तो उन्हें सामने राजा ही क्यों दिखाई दिया?
उत्तर – खैराती, रामू और छिद्दू ने जब आँखें खोलीं तो उन्हें सामने राजा ही इसलिए दिखाई दिया क्योंकि राजा की आज्ञा का पालन करने से केवल राजा की ही तरक्की हुई, जनता और ज्यादा दीन-हीन हो गई। जनता को इससे कोई लाभ नहीं हुआ।
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"चार हाथ" (कहानी का सार)
मालिक ने मजदूरों को चार हाथ देने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा और वे नौकर हो गए। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज़ हो गया। उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने-आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया। उसने कटे हुए हाथ मंगवाए और अपने मज़दूरों के फिट करवाने चाहे, पर ऐसा नहीं हो सका। फिर उसने मज़दूरों के लकड़ी के हाथ लगवाने चाहे, पर उनसे काम नहीं हो सका। फिर उसने लोहे के हाथ फिट करवा दिए, पर मज़दूर मर गए।
मिल मालिक ने अलग-अलग तरीके से मज़दूरों के चार हाथ लगाने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहा। आखिर एक दिन बात उसकी समझ में आ गई। उसने मज़दूरी आधी कर दी और दुगुने मज़दूर नौकर रख लिए। इससे अधिकतम उत्पादन का उसका लक्ष्य पूरा हो गया।
चार हाथ (कहानी के प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – मज़दूरों को चार हाथ देने के लिए मिल मालिक ने क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर – मालिक ने मजदूरों को चार हाथ देने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा और वे नौकर हो गए। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज़ हो गया। उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने-आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया। उसने कटे हुए हाथ मंगवाए और अपने मज़दूरों के फिट करवाने चाहे, पर ऐसा नहीं हो सका। फिर उसने मज़दूरों के लकड़ी के हाथ लगवाने चाहे, पर उनसे काम नहीं हो सका। फिर उसने लोहे के हाथ फिट करवा दिए, पर मज़दूर मर गए।
प्रश्न – चार हाथ न लग पाने पर मिल मालिक की समझ में क्या बात आई?
उत्तर – मिल मालिक ने अलग-अलग तरीके से मज़दूरों के चार हाथ लगाने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहा। आखिर एक दिन बात उसकी समझ में आ गई। उसने मज़दूरी आधी कर दी और दुगुने मज़दूर नौकर रख लिए। इससे अधिकतम उत्पादन का उसका लक्ष्य पूरा हो गया।
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"साझा" (कहानी का सार)
किसान से हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी।
किसान किसी न किसी तरह हाथी के साथ खेती करने के लिए तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया। हाथी पूरे जंगल में घूमकर डुग्गी पीट आया कि गन्ने में उसका साझा है इसलिए कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा न होगा।
किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी से यह बात कही तो हाथी काप़्ाफ़ी बिगड़ा। हाथी ने कहा, फ्अपने और पराए की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर गन्ने खाएँ।य् किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूँड से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा, फ्आओ खाएँ।य् गन्ने का एक छोर हाथी की सूँड में था और दूसरा आदमी के मुँह में। गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी के मुँह की तरप़्ाफ़ खींचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया। हाथी ने कहा, फ्देखो, हमने एक गन्ना खा लिया।य् इसी तरह हाथी और आदमी के बीच साझे की खेती बँट गई।
साझा (कहानी के प्रश्न-उत्तर)
प्रश्न – साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को क्या बताया?
उत्तर – उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी।
प्रश्न – हाथी ने खेत की रखवाली के लिए क्या घोषणा की?
उत्तर – किसान किसी न किसी तरह हाथी के साथ खेती करने के लिए तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया। हाथी पूरे जंगल में घूमकर डुग्गी पीट आया कि गन्ने में उसका साझा है इसलिए कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा न होगा।
प्रश्न – आधी-आधी फसल हाथी ने किस तरह बाँटी?
उत्तर – किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी से यह बात कही तो हाथी काप़्ाफ़ी बिगड़ा। हाथी ने कहा, फ्अपने और पराए की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर गन्ने खाएँ। किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूँड से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा, आओ खाएँ। गन्ने का एक छोर हाथी की सूँड में था और दूसरा आदमी के मुँह में। गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी के मुँह की तरफ खींचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया। हाथी ने कहा, फ्देखो, हमने एक गन्ना खा लिया। इसी तरह हाथी और आदमी के बीच साझे की खेती बँट गई।
टेस्ट/क्विज
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