कक्षा 6 » बाल रामकथा

जंगल और जनकपुर

शब्दार्थ :- ओझल – दिखाई न देना। संगम – वह स्थान जहाँ नदियाँ मिलती हैं। दुर्गम – जहाँ जाना कठिन है। कर्कश ध्वनि – कानों में चुभने वाली आवाज। आश्वस्त – तसल्ली। प्रत्यंचा – धनुष की डोरी। निर्विघ्न – बिना किसी रुकावट के। तुणीर – जिसमें तीर रखे होते हैं। मूर्च्छित – बेहोश हो जाना। विदेहराज – राजा जनक। संकेत – इशारा। हतप्रभ – आश्चर्यचकित। सुवासित – सुगंधित। 

पाठ का सार

राजमहल से निकलकर महर्षि विश्वामित्र सरयू नदी की ओर बढ़े। आश्रम पहुँचने के लिए उन्हें नदी पार करनी थी।  विश्वामित्र ने अयोध्या के निकट नदी पार नहीं की। दूर तक दक्षिणी तट पर सरयू के किनारे-किनारे चलते रहे। वे नदी के घुमाव के साथ-साथ चलते रहे। राजमहल पीछे छूट गया। उसकी आखिरी बस्ती भी निकल गई। चलते-चलते एक तीखा मोड़ आया तो सब कुछ दृष्टि से ओझल हो गया। महर्षि ने  कहा – “हम आज रात नदी तट पर ही विश्राम करेंगे”। दोनों राजकुमारों के चेहरे के भाव देखते हुए विश्वामित्र हलका-सा मुसकराए। राम के निकट आते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम दोनों को कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इन्हें सीखने के बाद कोई तुम पर प्रहार नहीं कर सकेगा। उस समय भी नहीं, जब तुम नींद में रहो।” राम और लक्ष्मण नदी में मुँह-हाथ धोकर लौटे। महर्षि के निकट आकर बैठे। विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को ‘बला-अतिबला’ नाम की विद्याएँ सिखाईं। सरयू नदी के किनारे राम और लक्ष्मण ने तिनकों और पत्तों का बिस्तर बिस्तर बनाया और रात बिताई।

अगली सुबह मार्ग में चलते हुए सरयू नदी के साथ गंगा नदी मिली। राम-लक्ष्मण अब दूरी बनाकर नहीं चलते थे। महर्षि के ठीक पीछे थे ताकि उनकी बातें ध्यान से सुन सकें। रास्ते में पड़ने वाले आश्रमों के बारे में। वहाँ के लोगों के बारे में। वृक्षों-वनस्पतियों के संबंध में। स्थानीय इतिहास उसमें शामिल होता था। विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण द्वारा नाव के द्वारा गंगा नदी को पार किया। नदी पार घना और दुर्गम जंगल था। सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुँचती थीं। वह डरावना भी था। हर ओर से झींगुरों की आवाज और जानवरों की दहाड़ के साथ कर्कश ध्वनियाँ सुनाई दे रही थी। राम और लक्ष्मण को आश्वस्त करते हुए महर्षि ने कहा, “ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं है। असली खतरा राक्षसी ताड़का से है। वह यहीं रहती है। तुम्हें वह खतरा हमेशा के लिए मिटा देना है।”

ताड़का के डर से कोई उस वन में नहीं आता था। जो भी आता, ताड़का उसे मार डालती। अचानक आक्रमण कर देती। उसका डर इतना था कि उस सुंदर वन का नाम ‘ताड़का वन’ पड़ गया था। राम ने महर्षि की आज्ञा को समझकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे एक बार खींचकर छोड़ा। इतना ताड़का को क्रोधित करने के लिए बहुत था। टँकार सुनते ही क्रोध से बिलबिलाई ताड़का गरजती हुई राम की ओर दौड़ी। दो बालकों को देखकर उसका क्रोध और भड़क उठा। तड़का के वहाँ आने से जंगल में जैसे तूफ़ान आ गया। विशालकाय पेड़ काँप उठे। पत्ते टूटकर इधर-उधर उड़ने लगे। धूल का घना बादल छा गया। उसमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता था। फिर ताड़का ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। राम ने उस पर बाण चलाए। लक्ष्मण ने भी निशाना साधा। ताड़का बाणों से घिर गई। राम का एक बाण उसके हृदय में लगा। वह गिर पड़ी। फिर नहीं उठ पाई।

विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राम को गले लगा लिया। उन्होंने दोनों राजकुमारों को सौ तरह के नए अस्त्र-शस्त्र दिए। उनका प्रयोग करने की विधि बताई। उनका महत्त्व समझाया। सुबह जंगल बदला हुआ था। अब वह ताड़का वन नहीं था। क्योंकि ताड़का नहीं थी। भयानक आवाजें गायब हो चुकी थीं। पत्तों से गुजरती हवा थी। उसकी सरसराहट का संगीत था। चिड़ियों की चहचहाहट थी। शांति थी। तसवीर बदल गई थी। वन अब पूरी तरह भयमुक्त था।

सिद्धाश्रम का अंतिम पड़ाव था-महर्षि का आश्रम। रास्ता छोटा और मनोहारी भी था। प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते तीनों लोग जल्दी ही आश्रम पहुँच गए। प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते तीनों लोग जल्दी ही आश्रम पहुँच गए। आश्रमवासियों ने उनकी अगवानी और अभिनंदन किया। महर्षि विश्वामित्र के आश्रम लौटने और राम-लक्ष्मण के आगमन के सुख में उनकी प्रसन्नता दुगुनी हो गई थी।

महर्षि विश्वामित्र यज्ञ की तैयारियों में लग गए। आश्रम की रक्षा की जिम्मेदारी राम-लक्ष्मण को सौंपकर महर्षि आश्वस्त थे। अनुष्ठान कुछ ही दिनों में पूरा होने वाला था। पाँच दिन तक शांति से निर्विघ्न रूप से सब ठीक-ठाक चलता रहा। लगता था कि राजकुमारों की उपस्थिति ने ही राक्षसों को भगा दिया है। राम और लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक न सोने का निर्णय किया। वे लगातार जागते और चौकस रहे। वे कमर में तलवार, पीठ पर तुणीर, हाथ में प्रत्यंचा चढ़ी हुई धनुष लेकर हर स्थिति के लिए तैयार थे।

अनुष्ठान का अंतिम दिन। अचानक भयानक आवाजों से आसमान भर गया। सुबाहु और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया।  मारीच  यज्ञ के अलावा भी इस बात से क्रोधित था कि राम-लक्ष्मण ने उसकी माँ ताड़का को मारा था। राम ने राक्षसों का हमला होते ही कार्रवाई की। धनुष उठाया और मारीच को निशाना बनाया। मारीच बाण लगते बाण के वेग से बहुत दूर जाकर गिरा और मूर्छित हो गया। जब होश आया तो उठकर दक्षिण दिशा की ओर भाग गया। राम का दूसरा बाण सुबाहु को लगा। उसके प्राण वहीं निकल गए। सुबाहु के मरने पर राक्षस सेना में भगदड़ मच गई। वे चीखते-चिल्लाते भागे। कुछ लक्ष्मण के बाणों का शिकार हुए। अन्य जान बचाकर भाग खड़े हुए। महर्षि विश्वामित्र का अनुष्ठान संपन्न हुआ।

अनुष्ठान पूरा होने पर महर्षि विश्वामित्र ने मिथिला जाने का निर्णय लिया। मिथिला के राजा जनक थे। राजा जनक को विदेहराज नाम से भी जाना जाता है। महर्षि विश्वामित्र के अनुसार राजा जनक पास अद्भुत शिव-धनुष था। महर्षि विश्वामित्र से मिथिला चलने की आज्ञा पाकर राम और लक्ष्मण अगली यात्रा, नए स्थान देखने और जानने का अवसर को लेकर उत्साहित थे।

महर्षि विश्वामित्र सोन नदी को पार करके राम-लक्ष्मण के साथ मिथिला की सीमा के पास पहुँचे। महर्षि विश्वामित्र गौतम ऋषि के आश्रम से होते हुए राम-लक्ष्मण के साथ मिथिला नगर पहुँचे। राजा जनक ने महल से बाहर आकर विश्वामित्र का स्वागत किया। तभी उनकी दृष्टि राजकुमारों पर पड़ी। विदेहराज चकित रह गए। विदेहराज ने महर्षि, उनके शिष्यों और राजकुमारों के ठहरने की व्यवस्था एक सुंदर उद्यान में की।

शिव-धनुष सचमुच विशाल था। लोहे की पेटी में रखा हुआ था। पेटी में पहिए लगे हुए थे। आठ पहिए। उसे उठाना लगभग असंभव था। पहियों के सहारे खिसकाकर उसे एक से दूसरी जगह ले जाया जाता था। अनुचर मुश्किल से उसे खींचते हुए यज्ञशाला में ले आए। धनुष देखते ही विदेहराज एक पल के लिए उदास हो गए। उन्होंने कहा, “मुनिवर! मैंने प्रतिज्ञा की है। अपनी पुत्री सीता के विवाह के संबंध में। जो यह धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा। अनेक राजकुमारों ने प्रयास किया और लज्जित हुए। उठाना तो दूर, वे इसे हिला तक नहीं सके। प्रत्यंचा क्या चढ़ाते।”

राम ने पहले धनुष देखा फिर महर्षि को। गुरु का संकेत मिलने पर राम ने वह विशाल धनुष सहज ही उठा लिया। यज्ञशाला में उपस्थित सभी लोग हतप्रभ थे। “इसकी प्रत्यंचा चढ़ा दूँ, मुनिवर” राम ने पूछा। “अवश्य। यदि ऐसा कर सकते हो।” विदेहराज चकित थे। राम ने आसानी से धनुष झुकाया। ऊपर से दबाकर प्रत्यंचा खींची। दबाव से धनुष बीच से टूट गया।
उसके दो टुकड़े हो गए।

यज्ञशाला में सन्नाटा छा गया। सब चुप थे। एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। सभागार की चुप्पी महाराज जनक ने तोड़ी। उनकी खुशी का ठिकाना न था। उन्हें सीता के लिए योग्य वर मिल गया था। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हुई। जनकराज ने कहा, “मुनिवर! आपकी अनुमति हो तो मैं महाराज दशरथ के पास संदेश भेजूँ। बारात लेकर आने का निमंत्रण। यह शुभ संदेश उन्हें शीघ्र भेजना चाहिए।”

विवाह से ठीक पहले विदेहराज ने महाराज दशरथ से कहा, “राजन! राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी कर बड़ी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ हैं – माँडवी और श्रुतकीर्ति। कृपया उन्हें भरत और शत्रुघ्न के लिए स्वीकार करें।” राजा दशरथ ने यह प्रस्ताव तत्काल मान लिया।

पाठ पर आधारित प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को लेकर किस प्रकार अयोध्या से निकले?

उत्तर :- राजमहल से निकलकर महर्षि विश्वामित्र सरयू नदी की ओर बढ़े। आश्रम पहुँचने के लिए उन्हें नदी पार करनी थी।  विश्वामित्र ने अयोध्या के निकट नदी पार नहीं की। दूर तक दक्षिणी तट पर सरयू के किनारे-किनारे चलते रहे। वे नदी के घुमाव के साथ-साथ चलते रहे। राजमहल पीछे छूट गया। उसकी आखिरी बस्ती भी निकल गई। चलते-चलते एक तीखा मोड़ आया तो सब कुछ दृष्टि से ओझल हो गया।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र ने नदी तट पर ही रात बिताने को क्यों कहा?

उत्तर :- महर्षि ने  कहा – “हम आज रात नदी तट पर ही विश्राम करेंगे”। दोनों राजकुमारों के चेहरे के भाव देखते हुए विश्वामित्र हलका-सा मुसकराए। राम के निकट आते हुए उन्होंने कहा, “मैं तुम दोनों को कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इन्हें सीखने के बाद कोई तुम पर प्रहार नहीं कर सकेगा। उस समय भी नहीं, जब तुम नींद में रहो।”

प्रश्न :- नदी किनारे महर्षि ने कौन-सी विद्याएँ दोनों भाइयों को सिखाई?

उत्तर :- राम और लक्ष्मण नदी में मुँह-हाथ धोकर लौटे। महर्षि के निकट आकर बैठे। विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को ‘बला-अतिबला’ नाम की विद्याएँ सिखाईं।

प्रश्न :- सरयू नदी के किनारे रात बिताते हुए राम और लक्ष्मण ने किसका बिस्तर बनाया?

उत्तर :- तिनकों और पत्तों का बिस्तर।

प्रश्न :- मार्ग में चलते हुए सरयू नदी के साथ और कौन-सी नदी मिली?

उत्तर :- गंगा नदी।

प्रश्न :- राम और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ किस प्रकार चलते थे?

उत्तर :- राम-लक्ष्मण अब दूरी बनाकर नहीं चलते थे। महर्षि के ठीक पीछे थे ताकि उनकी बातें ध्यान से सुन सकें। रास्ते में पड़ने वाले आश्रमों के बारे में। वहाँ के लोगों के बारे में। वृक्षों-वनस्पतियों के संबंध में। स्थानीय इतिहास उसमें शामिल होता था।

प्रश्न :- विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण किस प्रकार गंगा नदी को पार किया?

उत्तर :- नाव के द्वारा।

प्रश्न :- गंगा नदी पार कर उनको कैसा वातावरण दिखाई दिया?

उत्तर :- नदी पार घना और दुर्गम जंगल था। सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुँचती थीं। वह डरावना भी था। हर ओर से झींगुरों की आवाज और जानवरों की दहाड़ के साथ कर्कश ध्वनियाँ सुनाई दे रही थी। राम और लक्ष्मण को आश्वस्त करते हुए महर्षि ने कहा, “ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं है। असली खतरा राक्षसी ताड़का से है। वह यहीं रहती है। तुम्हें वह खतरा हमेशा के लिए मिटा देना है।”

प्रश्न :- उस सुंदर वन का नाम तड़का वन क्यों पड़ गया था?

उत्तर :- ताड़का के डर से कोई उस वन में नहीं आता था। जो भी आता, ताड़का उसे मार डालती। अचानक आक्रमण कर देती। उसका डर इतना था कि उस सुंदर वन का नाम ‘ताड़का वन’ पड़ गया था।

प्रश्न :- राम ने तड़का को बुलाने के लिए क्या किया?

उत्तर :- राम ने महर्षि की आज्ञा को समझकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे एक बार खींचकर छोड़ा। इतना ताड़का को क्रोधित करने के लिए बहुत था। टँकार सुनते ही क्रोध से बिलबिलाई ताड़का गरजती हुई राम की ओर दौड़ी। दो बालकों को देखकर उसका क्रोध और भड़क उठा।

प्रश्न :- राम ने तड़का को कैसे मारा?

उत्तर :- तड़का के वहाँ आने से जंगल में जैसे तूफ़ान आ गया। विशालकाय पेड़ काँप उठे। पत्ते टूटकर इधर-उधर उड़ने लगे। धूल का घना बादल छा गया। उसमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता था। फिर ताड़का ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। राम ने उस पर बाण चलाए। लक्ष्मण ने भी निशाना साधा। ताड़का बाणों से घिर गई। राम का एक बाण उसके हृदय में लगा। वह गिर पड़ी। फिर नहीं उठ पाई।

प्रश्न :- तड़का को मार डालने पर विश्वामित्र ने क्या किया?

उत्तर :- विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राम को गले लगा लिया। उन्होंने दोनों राजकुमारों को सौ तरह के नए अस्त्र-शस्त्र दिए। उनका प्रयोग करने की विधि बताई। उनका महत्त्व समझाया।

प्रश्न :- तड़का के वध के बाद तड़का वन का वातावरण कैसा हो गया था?

उत्तर :-  सुबह जंगल बदला हुआ था। अब वह ताड़का वन नहीं था। क्योंकि ताड़का नहीं थी। भयानक आवाजें गायब हो चुकी थीं। पत्तों से गुजरती हवा थी। उसकी सरसराहट का संगीत था। चिड़ियों की चहचहाहट थी। शांति थी। तसवीर बदल गई थी। वन अब पूरी तरह भयमुक्त था।

प्रश्न :- तड़का वन से सिद्धाश्रम का रास्ता कैसा था?

उत्तर :- सिद्धाश्रम का अंतिम पड़ाव था-महर्षि का आश्रम। रास्ता छोटा और मनोहारी भी था। प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते तीनों लोग जल्दी ही आश्रम पहुँच गए।

प्रश्न :- सिद्धाश्रम के आश्रमवासियों ने राम-लक्ष्मण का स्वागत किस प्रकार किया?

उत्तर :- प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते तीनों लोग जल्दी ही आश्रम पहुँच गए। आश्रमवासियों ने उनकी अगवानी और अभिनंदन किया। महर्षि विश्वामित्र के आश्रम लौटने और राम-लक्ष्मण के आगमन के सुख में उनकी प्रसन्नता दुगुनी हो गई थी।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र ने सिद्धाश्रम पहुँचकर क्या किया?

उत्तर :- महर्षि विश्वामित्र यज्ञ की तैयारियों में लग गए।

प्रश्न :- राम और लक्ष्मण किस प्रकार यज्ञ के अनुष्ठान की रक्षा करते?

उत्तर :- आश्रम की रक्षा की जिम्मेदारी राम-लक्ष्मण को सौंपकर महर्षि आश्वस्त थे। अनुष्ठान कुछ ही दिनों में पूरा होने वाला था। पाँच दिन तक शांति से निर्विघ्न रूप से सब ठीक-ठाक चलता रहा। लगता था कि राजकुमारों की उपस्थिति ने ही राक्षसों को भगा दिया है। राम और लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक न सोने का निर्णय किया। वे लगातार जागते और चौकस रहे। वे कमर में तलवार, पीठ पर तुणीर, हाथ में प्रत्यंचा चढ़ी हुई धनुष लेकर हर स्थिति के लिए तैयार थे।

प्रश्न :- अनुष्ठान के अंतिम दिन किन राक्षसों ने आश्रम पर हमला कर दिया था?

उत्तर :- अनुष्ठान का अंतिम दिन। अचानक भयानक आवाजों से आसमान भर गया। सुबाहु और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया।  मारीच  यज्ञ के अलावा भी इस बात से क्रोधित था कि राम-लक्ष्मण ने उसकी माँ ताड़का को मारा था।

प्रश्न :- राम-लक्ष्मण ने अनुष्ठान के अंतिम दिन सुबाहु और मारीच का सामना किस प्रकार किया?

उत्तर :- राम ने राक्षसों का हमला होते ही कार्रवाई की। धनुष उठाया और मारीच को निशाना बनाया। मारीच बाण लगते बाण के वेग से बहुत दूर जाकर गिरा और मूर्छित हो गया। जब होश आया तो उठकर दक्षिण दिशा की ओर भाग गया। राम का दूसरा बाण सुबाहु को लगा। उसके प्राण वहीं निकल गए। सुबाहु के मरने पर राक्षस सेना में भगदड़ मच गई। वे चीखते-चिल्लाते भागे। कुछ लक्ष्मण के बाणों का शिकार हुए। अन्य जान बचाकर भाग खड़े हुए। महर्षि विश्वामित्र का अनुष्ठान संपन्न हुआ।

प्रश्न :- अनुष्ठान पूरा होने पर महर्षि विश्वामित्र ने कहाँ जाने का निर्णय लिया?

उत्तर :- मिथिला।

प्रश्न :- मिथिला के राजा कौन थे?

उत्तर :- जनक।

प्रश्न :- राजा जनक को और किस नाम से भी जाना जाता है?

उत्तर :- विदेहराज।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र के अनुसार राजा जनक पास क्या था?

उत्तर :- अद्भुत शिव-धनुष।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र से मिथिला चलने की आज्ञा पाकर राम-लक्ष्मण की कैसी मनःस्थिति हो गई?

उत्तर :- राम और लक्ष्मण अगली यात्रा, नए स्थान देखने और जानने का अवसर को लेकर उत्साहित थे।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र किस नदी को पार करके राम-लक्ष्मण के साथ मिथिला की सीमा के पास पहुँचे?

उत्तर :- सोन नदी।

प्रश्न :- महर्षि विश्वामित्र किसके आश्रम से होते हुए राम-लक्ष्मण के साथ मिथिला नगर पहुँचे?

उत्तर :- गौतम ऋषि के आश्रम।

प्रश्न :- राजा जनक ने किस प्रकार महर्षि विश्वामित्र और राजकुमारों का स्वागत किया?

उत्तर :- राजा जनक ने महल से बाहर आकर विश्वामित्र का स्वागत किया। तभी उनकी दृष्टि राजकुमारों पर पड़ी। विदेहराज चकित रह गए। विदेहराज ने महर्षि, उनके शिष्यों और राजकुमारों के ठहरने की व्यवस्था एक सुंदर उद्यान में की।

प्रश्न :- शिव धनुष का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर :- शिव-धनुष सचमुच विशाल था। लोहे की पेटी में रखा हुआ था। पेटी में पहिए लगे हुए थे। आठ पहिए। उसे उठाना लगभग असंभव था। पहियों के सहारे खिसकाकर उसे एक से दूसरी जगह ले जाया जाता था। अनुचर मुश्किल से उसे खींचते हुए यज्ञशाला में ले आए।

प्रश्न :- विदेहराज जनक धनुष को देखकर उदास क्यों हो गए?

उत्तर :- धनुष देखते ही विदेहराज एक पल के लिए उदास हो गए। उन्होंने कहा, “मुनिवर! मैंने प्रतिज्ञा की है। अपनी पुत्री सीता के विवाह के संबंध में। जो यह धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा। अनेक राजकुमारों ने प्रयास किया और लज्जित हुए। उठाना तो दूर, वे इसे हिला तक नहीं सके। प्रत्यंचा क्या चढ़ाते।”

प्रश्न :- शिवधनुष को किसने उठाया?

उत्तर :- राम ने।

प्रश्न :- शिवधनुष किस प्रकार टूट गया?

उत्तर :- राम ने पहले धनुष देखा फिर महर्षि को। गुरु का संकेत मिलने पर राम ने वह विशाल धनुष सहज ही उठा लिया। यज्ञशाला में उपस्थित सभी लोग हतप्रभ थे। “इसकी प्रत्यंचा चढ़ा दूँ, मुनिवर” राम ने पूछा। “अवश्य। यदि ऐसा कर सकते हो।” विदेहराज चकित थे। राम ने आसानी से धनुष झुकाया। ऊपर से दबाकर प्रत्यंचा खींची। दबाव से धनुष बीच से टूट गया। उसके दो टुकड़े हो गए।

प्रश्न :- शिवधनुष टूटने पर क्या हुआ?

उत्तर :- यज्ञशाला में सन्नाटा छा गया। सब चुप थे। एक-दूसरे की ओर देख रहे थे। सभागार की चुप्पी महाराज जनक ने तोड़ी। उनकी खुशी का ठिकाना न था। उन्हें सीता के लिए योग्य वर मिल गया था। उनकी प्रतिज्ञा पूरी हुई। जनकराज ने कहा, “मुनिवर! आपकी अनुमति हो तो मैं महाराज दशरथ के पास संदेश भेजूँ। बारात लेकर आने का निमंत्रण। यह शुभ संदेश उन्हें शीघ्र भेजना चाहिए।”

प्रश्न :- राम और सीता के विवाह से ठीक पहले विदेहराज ने दशरथ से क्या निवेदन किया?

उत्तर :- विवाह से ठीक पहले विदेहराज ने महाराज दशरथ से कहा, “राजन! राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी कर बड़ी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ हैं – माँडवी और श्रुतकीर्ति। कृपया उन्हें भरत और शत्रुघ्न के लिए स्वीकार करें।” राजा दशरथ ने यह प्रस्ताव तत्काल मान लिया।

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