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साँस-साँस में बाँस
(एलेक्स एम- जॉर्ज)
शब्दार्थ :- करतब – करामात । दफ़नाए – मुर्दे को ज़मीन में गाड़ने का काम।बहुतायत – बहुत अधिक । चलन – रिवाज । प्रचलन – चलन । तरकीब – तरीका । शंकु – खूँटी । ईंधन – जलाने का सामान। पालना – झूला । मसलन – उदाहरण के लिए । गठान – गाँठ । हुनर – कलाकारी । तर्जनी – अँगूठे के पास की अँगुली । दौरान – बीच । प्रक्रिया – तरीका
पाठ का सार
“साँस-साँस में बाँस” पाठ “एलेक्स एम० जॉर्ज” द्वारा लिखित निबंध है। इस निबंध में लेखक बाँस की बारे में बताते हैं। लेखक बताते हैं कि एक जादूगर थे चंगकीचंगलनबा। अपने जीवन में उन्होंने कई बड़े-बड़े करतब दिखलाए। जब मरने को हुए तो लोगों से बोले, “मुझे दफ़नाए जाने के छठे दिन मेरी कब्र खोदकर देखोगे तो कुछ नया-सा पाओगे।” कहा जाता है कि मौत के छठे दिन उनकी कब्र खोदी गई और उसमें से निकले बाँस की टोकरियों के कई सारे डिजाइन। लोगों ने उन्हें देखा, पहले उनकी नकल की और फिर नए डिजाइन भी बनाए।
बाँस भारत के विभिन्न हिस्सों में बहुतायत में होता है। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के सातों राज्यों में बाँस बहुत उगता है। इसलिए वहाँ बाँस की चीजें बनाने का चलन भी खूब है। सभी समुदायों के भरण-पोषण में इसका बहुत हाथ है। यहाँ हम खासतौर पर देश के उत्तरी-पूर्वी राज्य नागालैंड की बात करेंगे। नागालैंड के निवासियों में बाँस की चीजें बनाने का खूब प्रचलन है। इंसान ने जब हाथ से कलात्मक चीजें बनानी शुरू कीं, बाँस की चीजें तभी से बन रही हैं। आवश्यकता के अनुसार इसमें बदलाव हुए हैं और अब भी हो रहे हैं। कहते हैं कि बाँस की बुनाई का रिश्ता उस दौर से है, जब इंसान भोजन इकट्ठा करता था। शायद भोजन इकट्ठा करने के लिए ही उसने ऐसी डलियानुमा चीजें बनाई होंगी। क्या पता बया जैसी किसी चिड़िया के घाेंसले से टोकरी के आकार और बुनावट की तरकीब हाथ लगी हो! बाँस से केवल टोकरियाँ ही नहीं बनतीं। बाँस की खपच्चियों से ढेर चीजें बनाई जाती हैं, जैसे-तरह-तरह की चटाइयाँ, टोपियाँ, टोकरियाँ, बरतन, बैलगाड़ियाँ, फ़र्नीचर, सजावटी सामान, जाल, मकान, पुल और खिलौने भी। असम में ऐसे ही एक जाल, जकाई से मछली पकड़ते हैं। छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए इसे पानी की सतह पर रखा जाता है या फिर धीरे-धीरे चलते हुए खींचा जाता है। बाँस की खपच्चियों को इस तरह बाँधा जाता है कि वे एक शंकु का आकार ले लें। इस श्ांकु का ऊपरी सिरा अंडाकार होता है। निचले नुकीले सिरे पर खपच्चियाँ एक दूसरे में गुँथी हुई होती हैं। खपच्चियों से तरह-तरह की टोपियाँ भी बनाई जाती हैं। असम के चाय बागानों के चित्रें में तुम्हें लोग ऐसी टोपियाँ पहने दिख जाएँगे और हाँ उनकी पीठ पर टँगी बाँस की बड़ी-सी टोकरी देखना न भूलना। जुलाई से अक्टूबर, घनघोर बारिश के महीने! यानी लोगों के पास बहुत सारा खाली वक्त या कहो आसपास के जंगलों से बाँस इकट्ठा करने का सही वक्त। आमतौर पर वे एक से तीन साल की उम्र वाले बाँस काटते हैं। बूढ़े बाँस सख्त होते हैं और टूट भी तो जाते हैं। बाँस से शाखाएँ और पत्तियाँ अलग कर दी जाती हैं। इसके बाद ऐसे बाँसों को चुना जाता है जिनमें गाँठें दूर-दूर होती हैं। दाओ यानी चौड़े, चाँद जैसी फाल वाले चाकू से इन्हें छीलकर खपच्चियाँ तैयार की जाती हैं। खपच्चियों की लंबाई पहले से ही तय कर ली जाती है। मसलन, आसन जैसी छोटी चीजें बनाने के लिए बाँस को हरेक गठान से काटा जाता है। लेकिन टोकरी बनाने के लिए हो सकता है कि दो या तीन या चार गठानों वाली लंबी खपच्चियाँ काटी जाएँ। यानी कहाँ से काटा जाएगा यह टोकरी की लंबाई पर निर्भर करता है। आमतौर पर खपच्चियों की चौड़ाई एक इंच से ज्यादा नहीं होती है। चौड़ी खपच्चियाँ किसी काम की नहीं होतीं। इन्हें चीरकर पतली खपच्चियाँ बनाई जाती हैं। पतली खपच्चियाँ लचीली होती हैं। खपच्चियाँ चीरना उस्तादी का काम है। हाथों की कलाकारी के बिना खपच्चियों की मोटाई बराबर बनाए रखना आसान नहीं। इस हुनर को पाने में काप़्ाफ़ी समय लगता है। टोकरी बनाने से पहले खपच्चियों को चिकना बनाना बहुत जरूरी है। यहाँ फिर दाओ काम आता है। खपच्ची बाएँ हाथ में होती है और दाओ दाएँ हाथ में। दाओ का धारदार सिरा खपच्ची को दबाए रहता है जबकि तर्जनी दाओ के एकदम नीचे होती है। इस स्थिति में बाएँ हाथ से खपच्ची को बाहर की ओर खींचा जाता है। इस दौरान दायाँ अँगूठा दाओ को अंदर की ओर दबाता है और दाओ खपच्ची पर दबाव बनाते हुए घिसाई करता है। जब तक खपच्ची एकदम चिकनी नहीं हो जाती, यह प्रक्रिया दोहराई जाती है। इसके बाद होती है खपच्चियों की रंगाई। इसके लिए ज्यादातर गुड़हल, इमली की पत्तियों आदि का उपयोग किया जाता है। काले रंग के लिए उन्हें आम की छाल में लपेटकर कुछ दिनों के लिए मिट्टी में दबाकर रखा जाता है। बाँस की बुनाई वैसे ही होती है जैसे कोई और बुनाई। पहले खपच्चियों को चित्र में दिखाए गए तरीके से आड़ा-तिरछा रखा जाता है। फिर बाने को बारी-बारी से ताने के ऊपर-नीचे किया जाता है। इससे चैक का डिजाइन बनता है। पलंग की निवाड़ की बुनाई की तरह। टुइल बुनना हो तो हरेक बाना दो या तीन तानों के ऊपर और नीचे से जाता है। इससे कई सारे डिजाइन बनाए जा सकते हैं। टोकरी के सिरे पर खपच्चियों को या तो चोटी की तरह गूँथ लिया जाता है या फिर कटे सिरों को नीचे की ओर मोड़कर फँसा दिया जाता है और हमारी टोकरी तैयार! चाहो तो बेचो या घर पर ही काम में ले लो।
साँस-साँस में बाँस
अभ्यास-प्रश्न
निबंध से
प्रश्न :- बाँस को बूढ़ा कब कहा जा सकता है? बूढ़े बाँस में कौन सी विशेषता होती है जो युवा बाँस में नहीं पाई जाती?
उत्तर – तीन साल और उससे अधिक उम्र वाले बाँस को बूढ़ा कहा जाता है। बूढ़े बाँस सख्त होते हैं और टूट भी जाते हैं। युवा बाँस मुलायम होते हैं। उसे सामान बनाने के लिए किसी भी तरह मोड़ा जा सकता है।
प्रश्न :- बाँस से बनाई जाने वाली चीजों में सबसे आश्चर्यजनक चीज तुम्हें कौन सी लगी और क्यों?
उत्तर – बाँस से बनाई जाने वाली चीजों में सबसे आश्चर्यजनक हमें जो चीज़ लगी है वह है मछली पकड़ने वाला जाल ‘जकाई’। इसकी बुनावट तो कठिन है ही लेकिन जिस तरह इससे मछलियाँ फँसाई जाती हैं, वह और भी अधिक आश्चर्यजनक है।
प्रश्न :- बाँस की बुनाई मानव के इतिहास में कब आरंभ हुई होगी?
उत्तर – बाँस की बुनाई मानव के इतिहास में तब आरंभ हुई होगी, जब से इंसान ने कलात्मक चीजें बनानी आरंभ की। भोजन के लिए उसे एक डलियानुमा वस्तु की जरूरत पड़ी होगी। हो सकता है तभी उसने बाँस की बुनाई से डलिया बनाई होगी।
प्रश्न :-बाँस के विभिन्न उपयोगों से संबंधित जानकारी देश के किस भू-भाग के संदर्भ में दी गई है? एटलस में देखो।
उत्तर – भारत के कई भागों में बाँस बहुतायत में होता है। प्रमुख रूप से उत्तर-पूर्वी सात राज्यों में। ये राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर, त्रिपुरा।
निबंध से आगे
प्रश्न :- बाँस के कई उपयोग इस पाठ में बताए गए हैं। लेकिन बाँस के उपयोग का दायरा बहुत बड़ा है। नीचे दिए गए शब्दों की मदद से तुम इस दायरे को पहचान सकते हो-
उत्तर –
- संगीत- बाँसुरी एवं शहनाई बनायी जाती है।
- मच्छर- मच्छरदानी लगाने के लिए भी बाँसों की जरूरत होती है।
- फ़र्नीचर- बाँस से फ़र्नीचर बनाया जाता है।
- प्रकाशन- प्रकाशन के लिए बाँस से कागज बनाया जाता है।
- एक नया संदर्भ- बाँस से खिलौने, बरतन, मकान आदि भी बनाए जाते हैं।
प्रश्न :- इस लेख में दैनिक उपयोग की चीजें बनाने के लिए बाँस का उल्लेख प्राकृतिक संसाधन के रूप में हुआ है। नीचे दिए गए प्राकृतिक संसाधनों से दैनिक उपयोग की कौन-कौन सी चीजें बनाई जाती हैं – प्राकृतिक संसाधन दैनिक उपयोग की वस्तुएँ – चमड़ा, घास के तिनके, पेड़ की छाल, मिट्टी, गोबर
इनमें से किन्हीं एक या दो प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए कोई एक चीज बनाने का तरीका अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर –
- चमड़ा- बैग, जूता, बेल्ट, पर्स एवं बहुमूल्य वस्तुओं की कवर।
- घास के तिनके- चटाई, खिलौना, टोकरी इत्यादि।
- पेड़ की छाल- अगरबत्ती, कागज़, वस्त्र इत्यादि।
- मिट्टी- मकान, खिलौना, बरतन, गुल्लक इत्यादि।
- गोबर- घर की लिपाई-पुताई, उपले, खाद इत्यादि।
मिट्टी – चिकनी मिट्टी को लेकर कुम्हार उसे तैयार करता है। फिर चाक (चक्के) को घुमाकर उसपर मिट्टी रखकर अपनी मर्जी और हाथों की कला से उसे आकृति प्रदान करता है।
प्रश्न :- जिन जगहों की साँस में बाँस बसा है, अखबार और टेलीविजन के जरिए उन जगहों की कैसी तसवीर तुम्हारे मन में बनती है?
उत्तर – साँस में बाँस होने’ का अर्थ है – बाँस पर पूरी तरह निर्भर होना। हम बाँस उगने व चीजें बनाने वाली जगहों की तसवीरें अखबार और टेलीविज़न में देखते हैं। उनके फ़र्नीचर, बरतन, औज़ार और कुछ खाद्य पदार्थ भी बाँस के बने होते हैं।बाँस की सामग्री वे बाज़ार में बेचते हैं, जैसे-टोकरी, जाल, चटाई, खिलौने आदि। बाँस पर उनका व्यवसाय चलता है। लोग बाँस के बने घरों में रहते हैं, बाँस की बनी टोपियाँ पहनते हैं।
अनुमान और कल्पना
प्रश्न :- इस पाठ में कई हिस्से हैं जहाँ किसी काम को करने का तरीका समझाया गया है? जैसे-
छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए इसे पानी की सतह पर रखा जाता है या फिर धीरे-धीरे चलते हुए खींचा जाता है। बाँस की खपच्चियों को इस तरह बाँधा जाता है कि वे एक शंकु का आकार ले लें। इस शंकु का ऊपरी सिरा अंडाकार होता है। निचले नुकीले सिरे पर खपच्चियाँ एक-दूसरे में गुँथी हुई होती हैं।
इस वर्णन को ध्यान से पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर अनुमान लगाकर दो। यदि अंदाज लगाने में दिक्कत हो तो आपस में बातचीत करके सोचो-
(क) बाँस से बनाए गए शंकु के आकार का जाल छोटी मछलियों को पकड़ने के लिए ही क्यों इस्तेमाल किया जाता है?
उत्तर – शंकु के आकार वाले अर्थात् बड़े मुँह वाले जाल में अधिक मछलियाँ आ जाती हैं इसलिए बॉस से बनाए गए शंकु के आकार के जाल का उपयोग किया जाता है।
(ख) शंकु का ऊपरी हिस्सा अंडाकार होता है तो नीचे का हिस्सा कै सा दिखाई देता है?
उत्तर – शंकु का ऊपरी हिस्सा अंडाकार होता है और नीचे का हिस्सा वृत्ताकार दिखाई देता है।
(ग) इस जाल से मछली पकड़ने वालों को धीरे-धीरे क्यों चलना पड़ता है?
उत्तर – जाल में मछलियों की संख्या बहुत होती है मछलियों के भार से जाल टूट जाने का डर रहता है। इसलिए इस जाल से मछलियों को पकड़ने वालों को धीरे-धीरे चलना पड़ता है।
शब्दों पर गौर
प्रश्न :- हाथों की कलाकारी, घनघोर बारिश, बुनाई का सफ़र, आड़ा-तिरछा, डलियानुमा, कहे मुताबिक।
इन वाक्यांशों का वाक्यों में प्रयोग करो।
उत्तर –
- हाथों की कलाकारी – हाथ की कलाकारी से ही मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं।
- घनघोर बारिश – घनघोर बारिश से सब तहस-नहस हो गया।
- बुनाई का सफ़र – बुनाई का सफ़र बहुत लंबा है।
- आड़ा-तिरछा – आड़ा-तिरछा चलना दुर्घटना का कारण बन सकता है।
- डलियानुमा – डलियानुमा टोकरी काफ़ी उपयोगी है।
- कहे मुताबिक – आपके कहे मुताबिक वह चला गया।
व्याकरण
प्रश्न :- ‘बुनावट’ शब्द ‘बुन’ क्रिया में ‘आवट’ प्रत्यय जोड़ने से बनता है। इसी प्रकार नुकीला, दबाव, घिसाई भी मूल शब्द में विभिन्न प्रत्यय जोड़ने से बने हैं। इन चारों शब्दों में प्रत्ययों को पहचानो और उन से तीन-तीन शब्द और बनाओ। इन शब्दों का वाक्यों में भी प्रयोग करो-
बुनावट, नुकीला, दबाव,घिसाई।
उत्तर –
बुनावट (प्रत्यय = आवट)
- लिखावट- अभिनव की लिखावट सुंदर है।
- सजावट- दिवाली पर घर की सजावट करते हैं।
- रुकावट- आगे बढ़ने में रुकावट है।
नुकीला (प्रत्यय-ईला)
- चमकीला- यह पत्थर कितना चमकीला है?
- जहरीला- यह साँप जहरीला नहीं है।
- पथरीला- पथरीले रास्ते पर मत चलो।
दबाव (प्रत्यय-आव)
- जमाव – पानी के जमाव से मच्छर पैदा होते हैं।
- बहाव – नदी का बहाव तेज है।
- ठहराव – हमारे जीवन में ठहराव आ गया है।
पिसाई (प्रत्यय आई)
- धुलाई – अनीता कपड़ों की धुलाई कर रही है।
- सफ़ाई – शिवांशु घर की सफाई कर दो।
- पिसाई – पापा गेहूँ की पिसाई करवाने गए हैं।
प्रश्न :- नीचे पाठ से कुछ वाक्य दिए गए हैं-
(क) वहाँ बाँस की चीजें बनाने का चलन भी खूब है।
(ख) हम यहाँ बाँस की एक-दो चीजों का ही जिक्र कर पाए हैं।
(ग) मसलन आसन जैसी छोटी चीजें बनाने के लिए बाँस को हरेक गठान से
काटा जाता है।
(घ) खपच्चियों से तरह-तरह की टोपियाँ भी बनाई जाती हैं।
रेखांकित शब्दों को ध्यान में रखते हुए इन बातों को अलग ढंग से लिखो।
उत्तर –
(क) वहाँ बाँस की चीजें बनाने की परंपरा भी खूब है।
(ख) हम यहाँ बाँस की एक-दो चीज़ों की ही चर्चा कर पाए हैं।
(ग) उदाहरण के लिए आसन जैसी छोटी-चीजें बनाने के लिए बाँस को प्रत्येक गाँठ से काटा जाता है।
(घ) खपच्चियों से कई प्रकार की टोपियाँ भी बनाई जाती है।
प्रश्न :- तर्जनी हाथ की किस उँगली को कहते हैं? बाकी उँगलियों को क्या कहते हैं? सभी उँगलियों के नाम अपनी भाषा में पता करो और कक्षा में अपने साथियों और शिक्षक को बताओ।
उत्तर – तर्जनी हाथ के अँगूठे के साथ वाली उँगली को कहते हैं? बाकी उँगलियों को मध्यमा, अनामिका, कनिष्का, अंगुष्ठा कहते हैं।
प्रश्न :- अंगुष्ठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा-ये पाँच उँगलियों के नाम हैं। इन्हें पहचान कर सही क्रम में लिखो।
उत्तर – अंगुष्ठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
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