कक्षा 9 » ग्राम श्री (सुमित्रानंदन पंत)

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ग्राम श्री 
(कविता का अर्थ)

शब्दार्थ – सनई – एक पौधा जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है। किंकिणी – करधनी। वृंत – डंठल। मुकुलित – अधखिला। अँवली – छोटा आँवला। सरपत – घास-पात, तिनके। सुरखाब – चक्रवाक पक्षी। हिम-आतप – सर्दी की धूप। मरकत – पन्ना नामक रत्न। हरना – आकर्षित करना

फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कविता ‘ग्रामश्री’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में हरी-भरी धरती के भव्य सौंदर्य का अंकन हुआ है।

व्याख्या – पंत कहते हैं कि खेतों में दूर-दूर तक मखमल के समान कोमल हरियाली फैली हुई है। उस मखमल जैसी हरियाली में चाँदी की तरह सफेद जाली की सूर्य की किरणें लिपटी हैं। जिस तरह मखमल के वस्त्रों में चाँदी की जाली उनकी शोभा बढ़ाती है उसी तरह खेतों में फैली हरियाली से सूरज की किरणें लिपटी हुई जान पड़ती हैं। फसलों के हरे तनों में हरा रक्त झलमला रहा है। धनधान्य से सम्पन्न पृथ्वी पर आकाश का स्वच्छ नीला फलक झुका हुआ है। आशय यह कि फसलों से सम्पन्न धरती के कारण पृथ्वी और आकाश मिले हुए से प्रतीत हो रहे हैं।

विशेष –

  1. धरती की शोभा का भव्य वर्णन हुआ है।
  2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘चाँदी की सी उजली जाली!’ उपमा अलंकार है।
  4.  ‘हिल हरित’ ‘निर्मल नील’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. ‘हरे हरे’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कविता ‘ग्रामश्री’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में पुष्पित और फलित धरती की शोभा का वर्णन है।

व्याख्या – जौ और गेहूँ पर बालियाँ आ गई हैं इसलिए पृथ्वी रोमांचित-सी लग रही है। अरहर और सनई की फलियों पर सोने जैसी करधनियाँ शोभा पा रही हैं। सरसों के पीले-पीले फूल खिल रहे हैं जिससे वातावरण में सभी तरफ तैलमय गंध फैली है। इधर हरी-भरी धरती से नीलम रत्न जैसी अलसी की कली ऊपर की ओर झाँक रही है।

विशेष –

  1. सम्पन्न धरती की सुन्दरता का वर्णन है।
  2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
  3. ‘रोमांचित सी’ ‘तीसी नीली!’ में उपमा अलंकार है।
  4. ‘नीलम की कलि’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. ‘फूली सरसों पीली पीली’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कविता ‘ग्रामश्री’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग – इस पद्यांश में कवि ने तितलियों और फूलों की क्रियाओं का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या – इस पद्यांश में कवि कहता है कि खेत में विभिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हुए हैं और उनके बीच में मटर के पौधे सखियों के तरह खिलखिला रहे हैं। कोमल पेटियों की तरह ये मटर के पौधे बीजों की लड़ी छिपाए हैं। विभिन्न रंगों की तितलियाँ सुंदर फूलों पर मंडरा रही है और उनका रसपान कर रही हैं। जब ये तितलियाँ एक डंठल से डंठल पर पर जाती हैं तो लगता है जैसे फूल ही फूल पर जाकर इधर-उधर उड़ रहे हैं।

विशेष – 

  1. प्रकृति की सुन्दरता का वर्णन है।
  2. खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
  3. मखमली पेटियों सी‘ में उपमा अलंकार है।
  4. छीमियाँ, छिपाए‘ ‘फूले फिरते’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. ‘रंग रंग’ ‘उड़ उड़’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली!

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कविता ‘ग्रामश्री’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में पुष्पित और फलित धरती की शोभा का वर्णन है।

व्याख्या – कवि पंत कहते हैं कि चाँदी और सोने की चमक वाले बौर से आम के पेड़ों की डालियाँ लद गई हैं। ढाक और पीपल के वृक्षों से पत्ते झड़ रहे हैं। इस अनुपम सौन्दर्य को देखकर कोयल मतवाली हो गई है। कटहल की गंध चारों ओर फैल गई है। जामुन पर भी अधखिले फूल आ गए हैं। जंगल में झरबेरी पर बेर लटक रहे हैं। आडू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि फूल उठे हैं।

विशेष – (1) प्रकृति का मादक चित्रण हुआ है।
(2) खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(3) ‘झरबेरी झूली’ में अनुप्रास अलंकार है।

पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कविता ‘ग्रामश्री’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग – फल और सब्जियों की गंध आदि से परिपूर्ण पर्वतीय गाँव की शोभा का अंकन हुआ है।

व्याख्या – पीले रंग वाले मीठे अमरूदों में पूरी तरह पकने के कारण लाल चित्तियाँ पढ़ गई हैं। सुनहरे रंग के मीठे बेर पक गए हैं और छोटे-छोटे आंवलों से पेड़ की डालियाँ लद गई हैं। पालक लहलहा रहा है और धनिये की महक चारों ओर वातावरण को सुगन्धित कर रही है। लौकी तथा सेम की बेल इधर-उधर फैल गई हैं। मखमल जैसे टमाटर पूरी तरह पककर लाल हो गए हैं और मिरचों की हरी थैलियाँ पूरी तरह बड़ी हो गई हैं।

विशेष – (1) फलित तथा गंधायमान प्राकृतिक वातावरण का मनोरम चित्रण हुआ है।
(2) खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।
(3) ‘झरबेरी झूली’ में अनुप्रास अलंकार है।

बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती_
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कविता ‘ग्रामश्री’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में गंगा के किनारे की सुन्दरता का अंकन किया गया है।

व्याख्या – कवि पंत कहते हैं कि पानी की लहरों से बनने वाले बालू के साँपों से गंगा के किनारे चिह्नित है। गंगा के किनारों पर खरपतवार से ढकी हुई तरबूजे की खेती सुन्दर लग रही है। वहाँ बगुले अपनी हाथों की कंघी से अपनी कलँगी सँभाल रहे हैं और गंगाजल में सुरखाब पक्षी तैरते हुए दिख रहे हैं और गंगा के किनारों पर नाव के आगे के भाग सो रहे हैं।

विशेष –

  1. गंगा तट की सुन्दरता का मनोहारी चित्रण है।
  2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  3. रूपक, अनुप्रास अलंकारों की छटा दर्शनीय है।

हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोए-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन!

संदर्भ – प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक क्षितिज भाग 1 में संकलित कविता ‘ग्रामश्री’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश में जाड़े के अंतिम दिनों की रात में सोए हुए गाँव की शोभा का वर्णन है।

व्याख्या – कवि पंत कहते हैं कि हँसमुख हरियाली तथा जाड़े के अन्तिम दिनों की गर्माहट में गाँववासी सुखद नींद में हैं। वे ओस से भीगी अंधेरी रात्रि में नक्षत्रलोक के स्वप्नों में खोए हुए हैं। सभी ग्रामवासी गहरी नींद का आनन्द ले रहे हैं। पन्ने के खुले हुए डिब्बे जैसे खुले से इस गाँव का नीले आकाश रूपी नीलम रत्न का ढक्कन है। जाड़े के अन्तिम समय में ओस से तर और शान्त यह गाँव हर आदमी का मन हर रहा है।

विशेष –

  1. गाँव के सौन्दर्य का मनोहारी अंकन हुआ है।
  2. खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
  3. सुख से अलसाए-से सोए’ ‘तारक स्वप्नों में-से खोए’ ‘मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम’ में उपमा अलंकार है।
  4. ‘नीलम नभ’ ‘हँसमुख हरियाली’ में अनुप्रास अलंकार है।

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ग्राम श्री
(प्रश्न-उत्तर)

प्रश्न – कवि ने गाँव को ‘हरता जन मन’ क्यों कहा है?

उत्तर – कवि पंत कहते हैं कि हँसमुख हरियाली तथा जाड़े के अन्तिम दिनों की गर्माहट में गाँववासी सुखद नींद में हैं। वे ओस से भीगी अंधेरी रात्रि में नक्षत्रलोक के स्वप्नों में खोए हुए हैं। सभी ग्रामवासी गहरी नींद का आनन्द ले रहे हैं। पन्ने के खुले हुए डिब्बे जैसे खुले से इस गाँव का नीले आकाश रूपी नीलम रत्न का ढक्कन है। जाड़े के अन्तिम समय में ओस से तर और शान्त यह गाँव हर आदमी का मन हर रहा है।

प्रश्न – कविता में किस मौसम के सौंदर्य का वर्णन है?

उत्तर – कविता में जाड़े के अन्तिम दिनों के सौंदर्य का वर्णन है। इस समय पीले रंग वाले मीठे अमरूदों में पूरी तरह पकने के कारण लाल चित्तियाँ पढ़ गई हैं। सुनहरे रंग के मीठे बेर पक गए हैं और छोटे-छोटे आंवलों से पेड़ की डालियाँ लद गई हैं। पालक लहलहा रहा है और धनिये की महक चारों ओर वातावरण को सुगन्धित कर रही है। लौकी तथा सेम की बेल इधर-उधर फैल गई हैं। मखमल जैसे टमाटर पूरी तरह पककर लाल हो गए हैं और मिरचों की हरी थैलियाँ पूरी तरह बड़ी हो गई हैं।

प्रश्न – गाँव को ‘मरकत डिब्बे सा खुला’ क्यों कहा गया है?

उत्तर – कवि पंत कहते हैं कि हँसमुख हरियाली तथा जाड़े के अन्तिम दिनों की गर्माहट में गाँववासी सुखद नींद में हैं। वे ओस से भीगी अंधेरी रात्रि में नक्षत्रलोक के स्वप्नों में खोए हुए हैं। सभी ग्रामवासी गहरी नींद का आनन्द ले रहे हैं। पन्ने के खुले हुए डिब्बे जैसे खुले से इस गाँव का नीले आकाश रूपी नीलम रत्न का ढक्कन है।

प्रश्न – अरहर और सनई के खेत कवि को कैसे दिखाई देते हैं?

उत्तर – जौ और गेहूँ पर बालियाँ आ गई हैं इसलिए पृथ्वी रोमांचित-सी लग रही है। अरहर और सनई की फलियों पर सोने जैसी करधनियाँ शोभा पा रही हैं। सरसों के पीले-पीले फूल खिल रहे हैं जिससे वातावरण में सभी तरफ तैलमय गंध फैली है। इधर हरी-भरी धरती से नीलम रत्न जैसी अलसी की कली ऊपर की ओर झाँक रही है।

प्रश्न – भाव स्पष्ट कीजिएµ
(क) बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती

भाव –  कवि पंत कहते हैं कि पानी की लहरों से बनने वाले बालू के साँपों से गंगा के किनारे चिह्नित है।

(ख) हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए

भाव – जाड़े के अन्तिम समय में ओस से तर और शान्त यह गाँव हर आदमी का मन हर रहा है।

प्रश्न – निम्न पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर –

तिनकों के हरे हरे तन पर –  पुनरुक्ति प्रकाश और मानवीकरण अलंकार है। 
हिल हरित रुधिर है रहा झलक – में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न – इस कविता में जिस गाँव का चित्रण हुआ है वह भारत के किस भू-भाग पर स्थित है?

उत्तर – इस कविता में गंगा के तट पर बसे एक गाँव का मनोरम चित्रण हुआ है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न – भाव और भाषा की दृष्टि से आपको यह कविता कैसी लगी? उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर – ग्राम श्री’ कविता में ग्रामीण सौंदर्य का चित्रण है। वहाँ का वातावरण लोगों के मन को अनायास अपनी ओर खींच लेता है। गाँव हरियाली फैली है। खेतों में लहराती फ़सलें हैं जिन पर रंग-बिरंगे फूल खिले हैं तो दूसरी ओर फलों से लदे पेड़ भी हैं। भाव और भाषा की दृष्टि से कविता अतुलनीय है।

प्रश्न -आप जहाँ रहते हैं उस इलाके के किसी मौसम विशेष के सौंदर्य को कविता या गद्य में वर्णित कीजिए।

उत्तर – मैं दिल्ली का रहने वाला हूँ। हमारी कॉलोनी यमुना नदी से मात्र पाँच-सात किलोमीटर ही दूर है। इस क्षेत्र में ठंड और गर्मी दोनों ही खूब पड़ती हैं। मुझे गर्मी का मौसम अधिक पसंद है। इस ऋतु में सुबह-शाम जल क्रीड़ा करते हुए पक्षियों को निहारना सुखद लगता है। आम, फालसा, लीची आदि फल इसी समय खाने को मिलते हैं। यमुना नदी के आसपास की हरियाली आँखों को बहुत अच्छी लगती है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न – सुमित्रनंदन पंत ने यह कविता चौथे दशक में लिखी थी। उस समय के गाँव में और आज के गाँव में आपको क्या परिवर्तन नजर आते हैं?- इस पर कक्षा में सामूहिक चर्चा कीजिए।

उत्तर – छात्र कक्षा में परिचर्चा का आयोजन करें।

प्रश्न -अपने अध्यापक के साथ गाँव की यात्र करें और जिन फ़सलों और पेड़-पौधों का चित्रण प्रस्तुत कविता में हुआ है, उनके बारे में जानकारी प्राप्त करें।

उत्तर – छात्र अपने माता-पिता और अध्यापक की मदद से जानकारी प्राप्त करें।

टेस्ट/क्विज

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