भारतीय भाषा परिवार |
ऐसी भाषाएँ जो एक ही वंश या मूल भाषा से निकलकर विकसित हुई हों, एक भाषा परिवार का निर्माण करती है। विश्व में कुल 12 भाषा परिवार हैं। भारत में प्रायः दो भाषा परिवारों की भाषाएँ प्रचलित है –
(1) द्रविड़ भाषा परिवार – भारत के दक्षिण में तमिल, तेलगू, मलयालम और कन्नड़ भाषाएँ द्रविड़ भाषा परिवार के अंतर्गत आती हैं।
(2) भारत-यूरोपीय भाषा परिवार – संस्कृत जिस मूल भाषा से विकसित हुई है, उसी से ग्रीक, ईरानी, अंग्रेजी, जर्मन आदि भाषाएँ भी निकली हैं। इस समस्त परिवार को भारोपीय भाषा परिवार कहा जाता है। भारोपीय भाषा परिवार की वे भाषाएँ जो भारत में बोली जाती हैं, भारतीय आर्य भाषाएँ कही जाती हैं।
भारतीय आर्य भाषा परिवार |
भारतीय आर्य भाषा को प्राचीनतम् रूप हमें वैदिक संस्कृत में सुरक्षित मिलता है। वैदिक संस्कृत से आधुनिक आर्य भाषाओं तक आने में इसे चार चरणों से गुजरना पड़ा
1- वैदिक संस्कृत (1500 ई-पू- से 800 ई-पू-) | |||||||||||||||||||||||||||
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2- लौकिक संस्कृत (800 ई-पू- से 500 ई-पू- तक) | |||||||||||||||||||||||||||
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3- पालि और प्राकृत (500 ई-पू- से 500 ईस्वी तक)
प्राकृत की प्रमुख रचनाएँ हैं-
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4- अपभ्रंश (500 ई- से 1000 ई- तक)
(क) मार्कण्डेय ऋषि ने अपभ्रंश के तीन रूप – नागर, उपनागर, ब्राडच बताए है। नागर गुजरात में, उपनागर राजस्थान में तथा ब्राडच सिंध प्रदेश में प्रचलित थी। (ख) नमिसाधु ने अपभ्रंश के तीन रूप – नागर, उपनागर, आभीर बताए है (ग) दंडी ने अपभ्रंश को आभीरों की भाषा कहा है। (घ) बाणभट्ट तथा हेमचन्द्र ने अपभ्रंश को ग्रामभाषा कहा है। (ङ) अपभ्रंश उकार बहुला भाषा थी। (च) राजस्थानी को अपभ्रंश की जेठी बेटी कहा गया है। (ज) अवहट्ठ – अपभ्रंश के लोकभाषा रूप को अवहट्ठ कहा गया। अवहट्ठ का काल 900 ई0 से 1100 ई0 तक माना जाता है। वैसे तो अवहट्ठ को अपभ्रंश और पुरानी हिन्दी के बीच की कड़ी माना जाता है किन्तु राहुल सांकृत्यायन और चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने अपभ्रंश को ही पुरानी हिन्दी कहा है। विद्यापति ने कीर्तिलता में अवहट्ठ को देसिल बयना कहा – देसिल बयना सब जन मिट्ठा। ते तैसन जम्पओ अवहटट्ठा।। अवहट्ठ की प्रमुख रचनाएँ हैं-
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आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं का विकास अपभ्रंश से हुआ है जिसका प्रचलन एवं प्रयोग 500 ई- से 1000 ई- के बीच हुआ करता था। देश में उस समय अपभ्रंश के कई रूप प्रचलित थे जैसे ब्राड़च, पैशाची, महाराष्ट्री, अर्द्धमागधी, खस आदि। इनसे निकलने वाली भाषाएँ हैं-
ब्राड़च अपभ्रंश | सिंधी भाषा | |
पैशाची अपभ्रंश |
लहंदा भाषा | |
पंजाबी भाषा | ||
महाराष्ट्र अपभ्रश | मराठी भाषा | |
मागधी अपभ्रश
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असमीया | |
बंगला | ||
उड़िया | ||
बिहारी हिंदी |
मगही | |
मैथिली | ||
भोजपुरी | ||
अर्द्धमागधी अपभ्रंश
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पूर्वी हिंदी |
अवधी |
बघेली | ||
छत्तीसगढ़ी | ||
शौरसेनी |
पश्चिमी हिंदी |
ब्रज |
खड़ी बोली | ||
हरियाणवी | ||
बुंदेली | ||
कन्नौजी | ||
राजस्थानी हिंदी |
मेवाड़ी | |
मेवाती | ||
मारवाड़ी | ||
हाड़ौती | ||
खस अपभ्रंश |
पहाड़ी हिंदी |
मंडियाली |
गढ़वाली | ||
कुमाऊनी |
सिंधी
सिंधी भारत के पश्चिमी हिस्से और मुख्य रूप से सिंध प्रान्त में बोली जाने वाली एक प्रमुख भाषा है। गुजरात के कच्छ जिले मे सिंधी भाषा को कच्छी भाषा कहते है। सिन्धी के लगभग ७० प्रतिशत शब्द संस्कृत मूल के हैं। सिंधी देवनागरी में लिखी जाती है। |
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लहंदा लहन्दा पंजाबी भाषा की पश्चिमी उपभाषाओं के समूह को कहा जाता है। पंजाबी में ‘लहन्दा’ शब्द का मतलब ‘पश्चिम’ होता है, जिस से इन भाषाओं का यह नाम पड़ा है |
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पंजाबी पंजाबी भाषा पंजाब की आधुनिक भारतीय आर्यभाषा है। ग्रियर्सन ने पूर्वी पंजाबी को “पंजाबी” और पश्चिमी पंजाबी को “लहँब्रा” कहा है। वास्तव में पूर्वी पंजाबी और पश्चिमी पंजाबी पंजाबी की दो उपभाषाएँ हैं। पश्चिमी पंजाबी और पूर्वी पंजाबी की सीमारेखा रावी नदी मानी गई है। “पंजाब” असल में दो फ़ारसी शब्द “पंज” और “आब” का मेल है। “पंज” का मतलब “पांच” है और “आब” का मतलब “पानी” है। इस प्रदेश का प्राचीन नाम ‘सप्तसिंधु’ है। भाषा के लिए “पंजाबी” शब्द 1670 ई. में हाफिज़ बरखुदार (कवि) ने पहली बार प्रयुक्त किया |
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मराठी भाषा भाषाई परिवार के स्तर पर यह एक आर्य भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है। यह महाराष्ट्र और गोवा की राजभाषा है तथा पश्चिम भारत की सह-राज्यभाषा हैं। मातृभाषियों की संख्या के आधार पर मराठी विश्व में दसवें और भारत में तीसरे स्थान पर है। इसका मूल प्राकृत से उत्पन्न महाराष्ट्री अपभ्रंश से है। |
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मगही इसका क्षेत्र पटना, गया, हजारीबाग, मुंगेर व भागलपुर के आस पास है। |
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मैथिली मैथिली का अन्य नाम तिरहुतिया है। मैथिली का क्षेत्र मिथिला, दरभंगा, मुजफ्रफरपुर, पूर्णिया तथा मुंगेर है। मैथिल, कैथी व नागरी मैथिली की लिपियाँ हैं। |
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भोजपुरी भोजपुरी का अन्य नाम पूरबी है। भोजपुरी का क्षेत्र भोजपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, चम्पारण आदि तक है। भोजपुरी पहले कैथी लिपि में लिखी जाती थी। भोजपुरी के लोककवि भिखारी ठाकुर हैं। भिखारी ठाकुर ने बिदेसिया लिखा है। |
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अवधी इसका मुख्य क्षेत्र अयोध्या है। इसके क्षेत्र में लखनऊ, फतेहपुर, उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गौड़ा, बस्ती, सुल्तानपुर आदि आते हैं। अवधी को कौसली या बैसवाड़ी भी कहा जाता है। अवधी का पहला उल्लेख उद्योतन सूरि की कुवलयमाला में मिलता है। अवधी का पहला काव्य 1370 ई0 में मुल्लादाऊद द्वारा रचित चंदायन या लोरकहा है। अवधी की अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं-
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बघेली बघेली का क्षेत्र रीवां, नागौद, सतना, मेहर आदि है। |
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छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ी का क्षेत्र सरगुजा, बिलासपुर, रायगढ़, रायपुर, दुर्ग व छत्तीसगढ़ है। |
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ब्रज मध्यकाल में ब्रजभाषा प्रमुख साहित्यिक भाषा थी। इसका क्षेत्र मथुरा, अलीगढ़ के पास है। सूरदास ने इसे चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया। नंददास को ब्रज भाषा का जड़िया कहा जाता है। ब्रज की प्रारम्भिक रचनाएँ हैं
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खड़ी बोली खड़ीबोली का अन्य नाम कौरवी है।यह दिल्ली, मेरठ, बिजनौर, मुजफ्रफरनगर, रामपुर, मुरादाबाद और सहारनपुर के पास बोली जाती है। खड़ी बोली की ध्वनि में कर्कशता होती है। साहित्य के क्षेत्र में इसका प्रयोग सर्वप्रथम अमीर खुसरो ने किया। खड़ीबोली की अन्य आरंभिक रचनाएँ हैं-
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हरियाणवी इसे जाटू या बांगरू भी कहा जाता है। इसका क्षेत्र हरियाणा है। हरियाणवी को पहले फारसी लिपि में लिखा जाता था; अब नागरी लिपि में लिखा जाता है। |
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बुंदेली इसका क्षेत्र झाँसी, ग्वालियर व बुंदेलखण्ड के आस पास है। |
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कन्नौजी कन्नौजी का क्षेत्र कानपुर, पीलीभीत आदि है। |
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मेवाड़ी मेवाड़ी इसका क्षेत्र मेवाड़ के आसपास है। |
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मेवाती मेवाती का क्षेत्र उत्तरी राजस्थान, अलवर, भरतपुर तथा हरियाणा में गुड़गाँव के आस पास है। |
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मारवाड़ी मारवाड़ी का क्षेत्र जोधपुर, अजमेर, जैसलमेर, बीकानेर आदि है। |
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हाड़ौती इसके अन्य नाम ढूँढ़ाणी या जयपुरी हैं। यह राजस्थान के पूर्वी भाग व जयपुर के आस पास बोली जाती है। |
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मंडियाली (हिमाचल) | ||||||||||||||||||||||||||||||
गढ़वाली
श्रीनगरिया गढ़वाली का विशुद्ध रूप है। |
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कुमाऊनी |