पाश्चात्य काव्यशास्त्र » नई समीक्षा

नई समीक्षा का प्रमुख केन्द्र अमेरिका माना जाता है पर इसकी शुरुआत ब्रिटेन में हुई थी। टी0एस0इलियट और आई0ए0रिचर्डस इसके अगुआ माने जाते हैं। इसके बाद अमरीकी आलोचकों ने साहित्य के अध्ययन और विश्लेषण के लिए नई समीक्षा को अपना लिया।

‘नई समीक्षा’ (दि न्यू क्रिटिसिज्म) शब्द का प्रयोग सि्ंपगार्न ने 1911 में किया था। तब से लेकर बहुत बाद तक नई समीक्षा ने किसी संप्रदाय का रूप नहीं लिया था। जो भी काव्य चिंतन या आलोचना नए तज्र की ओर रूढ़ि से अलग दिखाई देती थी उन्हें नई समीक्षा के अंतर्गत मान लिया जाता था।

एक पारिभाषिक शब्द के रूप में ‘न्यू क्रिटिसिज्म’ का प्रयोग सबसे पहले ‘जॉन क्रो रेंसम’ ने इसी नाम की अपनी पुस्तक में 1941 ई0 में किया। इसके पहले इलियट का निबंध ‘टेªडीशन एंड दि इंडिविजुअल टेलेंट 1917) और पुस्तक ‘दि सेक्रेड वुड’ रिचडर्स की ‘प्रिंसिपुल्स ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म’ 1924, और एम्पसन की ‘सेवेन टाइरस ऑफ ऐम्बिगुइटी (1924), जैसी महत्वपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी थी।

नई समीक्षा के सिद्धांत

नई समीक्षा के इस दौर में अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया तथा विभिन्न आलोचकों, लेखकों व कवियों आदि ने इसमें योगदान दिया। यहाँ इनका परिचय निम्न प्रकार है –

(क) टी0एस0 इलियट के सिद्धांत
1- कविता की निर्वैयक्तिकता
2- इतिहास बोध और परंपरा
3- वस्तु-प्रतिरूप या संबद्ध मूर्त विधान
4- संवेदना विच्छेद

(ख) आई0 ए0 रिचर्ड्स के सिद्धांत
1- मूल्य-सिद्धांत
2- सम्प्रेषण सिद्धांत
3- भाषा सिद्धांत
4- समंजन सिद्धांत

(ग) जॉन क्रो रसम का संरचना व बुनावट सिद्धांत

(घ) विलियम एम्पसन का अनेकार्थता सिद्धांत

(ड-) ब्रुक्स

1- विरोधाभास (पैराडॉक्स)
2- पदान्वय व अर्थविडम्बना
3- निरपेक्षमूल्य व तर्कसंगत वक्तव्य

(च) तनाव – एलेन टेट का तनाव सिद्धांत

(छ) उपलब्धियों का मूल्यांकन