पाश्चात्य काव्यशास्त्र » प्लेटो

प्रश्न – प्लेटो के अनुकरण सिद्धांत पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – मानव प्रकृत्या अनुकरणप्रिय प्राणी है। उसकी यह अनुकरणप्रियता उसे पशुओं से पृथक धरातल पर ले जाती है। सभी लोग स्वभावतः अनुकरणात्मक कृत्तियों से आनन्दानुभूति प्राप्त करते हैं। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र में ‘अनुकरण’ शब्द का प्रयोग एक निश्चित कला सिद्धांत के लिए हुआ है।

वस्तुतः हिंदी का ‘अनुकरण’ शब्द अंग्रेजी के ‘इमीटेशन’ का अनुवाद है जो पुनः यूनानी शब्द ‘मीमेसिस’ का पर्याय बनकर अंग्रेजी में प्रयुक्त हुआ है। आज तक प्राप्त जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि इस शब्द के सर्वप्रथम प्रयोक्ता महाकवि होमर हैं।

अनुकरण संबंधी इस सामान्य चर्चा के क्रम में कला सिद्धांत के रूप में उसकी अवतारणा का श्रेय वस्तुतः प्लेटो को जाता है और अरस्तु का प्रेरणा-स्रोत प्लेटो द्वारा निरुपित यही अनुकरण-सिद्धांत है। प्लेटो ने जिन आधारों पर काव्य सहित विविध ललित कलाओं की निन्दा की उनमें से एक अनुकरण है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक कला के मूल में अनुकरण की भावना रहती है और कलागत अनुकरण, अनुकरण का अनुकरण होता है अतः प्रकृति से दुगुनी दूर होता है और इसलिए त्याज्य होता है।

उनके अनुसार पलंग का मूल कर्त्ता ईश्वर है, बढ़ई उसका अनुकर्त्ता है और चित्रकार अपने चित्र में जिस पलंग को चित्रित करता है वह बढ़ई के द्वारा अनुकृत पलंग का भी अनुकरण है। प्लेटो का दृढ़ अभिमत था कि चित्रकार को पलंग बनाने की कला का ज्ञान होता ही नहीं, ऐसी स्थिति में वह पलंग का चित्र अंकित कर दर्शक के मन में यह भ्रम उत्पन्न कर देता है कि वह पलंग का निर्माण करना जानता है जबकि वह बढ़ई की कारीगरी का ज्ञाता होता ही नहीं। अतः अपने चित्र के दर्शकों में वह निश्चय ही अज्ञान का आधान करने वाला होता है। समाज में मिथ्या का प्रचार करने वाले ऐसे व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत कर देना चाहिए। ठीक इसी प्रकार होमर आदि सभी कवि जो सत् तथा अन्य विषयों का अपने काव्य में छायानुकरण करते हैं, केवल अनुकर्त्ता होते हैं, सत्य से उनका संपर्क नहीं होता। कलाकार जैसे प्रकृति के समक्ष दर्पण रख देता है, इससे अधिक और वह कुछ नही करता और दर्पण में प्रकृति के दृश्यमान रूप से अधिक और प्रतिबिंबित हो ही क्या सकता है?

अपनी प्रस्तुत स्थापना की पुष्टि में प्लेटो ने कहा – ‘‘अच्छा तब, यदि कोई व्यक्ति उन कार्यों को जिन्हें वह प्रतिदर्शित या प्रतिबिंबित करता है वास्तविक रूप में करने में समर्थ हो, तो क्या तुम विश्वास करते हो कि वह अपने जीवन प्रतिबिंब-निर्माण दिखाकर, उसे ही जीवन का लक्ष्य मानकर संतुष्ट हो जाएगा? मैं तो कल्पना करता हँू कि यदि वह उन क्रिया-व्यापारों का जिन्हें वह प्रस्तुत करता है, सच्चा ज्ञाता होगा, तो वह शीघ्र ही उन्हें कार्यान्वित करने में संलग्न हो जाएगा। वह स्मारक रूप में अपने उत्तम कृत्यों को छोड़ने का प्रयास करेगा और नायक का गुणानुवाद करने वाले कवि की अपेक्षा कवि-वाणी के द्वारा अभिनन्दित नायक बनने के लिए अधिक उत्सुक होगा।’’ (एफ0एम0 कॉनफॉर्ड: द रिपब्लिक ऑफ प्लेटो पृष्ठ 321-22)

अपनी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने यह प्रश्न उठाया कि तकनीकी कौशल से संबंध विषयों को छोड़कर भी यदि वैद्यादि की वार्ता तथा उपचार-प्रसंग का वर्णन करने वाले कवि को स्वयं औषध ज्ञान होता, तो प्राचीन अथवा आधुनिक कवियों में किसी भी कवि के रोगापचार करने अथवा तत्संबंधी ज्ञान वितरण करने का उल्लेख क्यों नहीं मिलता है। (एफ0एम0 कॉनफॉर्ड: द रिपब्लिक ऑफ प्लेटो पृष्ठ 322)

कला के संदर्भ में ‘माइमेसिस’ अर्थात् अनुकरण शब्द का प्रयोग उन्होंने परम्परासिद्ध मानकर प्रश्न को इस रूप में उठाया कि कला के लिए अनुकरणीय क्या है तथा अनुकरण का विषय क्या है? यही नहीं, उन्होंने ‘अनुकरण’ शब्द का प्रयोग निम्न संदर्भों में किया-

1- विचार-जगत और गोचर-जगत के बीच संबंध की व्याख्या के लिए।
2- वास्विक जगत और कला-जगत के लिए संबंध-निरुपण के लिए।

पहले का संबंध तत्व-मीमांसा से है और दूसरे का नैतिकता से। तात्विक दृष्टि से यह प्रश्न सत्य-असत्य का है और नैतिक दृष्टि से शुभ-अशुभ का। कला का प्रश्न स्वभावतः नैतिक परिधि में आता है। कला चिंतन के इतिहार में प्लेटो को नैतिकतावादी मानने का यही कारण है।

अनेक विद्वानों ने ‘प्लेटो’ के अनुकरण संबंधी इन मतों के बीच संगति स्थापित करने का प्रयास किया है। इन विद्वानों में जे0 टेट, डब्ल्यू0 सी0 ग्रीन, रिचर्ड मैकिओन आदि उल्लेखनीय हैं। प्लेटों ने ‘अनुकरण’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है इसका निर्णय करते हुए उनके संवादों की द्वन्द्वात्मक प्रक्रिया के पूरे परिदृश्य को ध्यान में रखना चाहिए। प्लेटो के विवेचन में एक रोचक बात यह है कि वे प्रसंग-विशेष में अर्थ-निश्चय केे लिए द्वन्द्वात्मक पद्धति का सहारा लेते हैं और कभी-कभी एक ही संवाद में यह अनुकरण शब्द विरोधी अर्थों का बोध कराने लगता है।

प्लेटो ने अनुकरण का एक अपेक्षाकृत सीमित अर्थ में प्रयोग शैली के प्रकार विशेष के लिए भी किया है। पूर्णतः अनुकरणात्मक शैली यानी त्रसदी और कामदी (नाटक) की शैली। कलाकृतियों में मिथ्यात्व के विभिन्न रूपों को स्पष्ट करने के लिए प्लेटो ने कभी अनुकरण के पर्याय रूप में और कभी विकल्प रूप में प्रतिकृति, सादृश्य, रूपक, छायाभास आदि अनेक सजातीय शब्दों का प्रयोग किया है। निस्संदेह इन शब्दों से अनुकरण की वास्तविक प्रकृति को समझने में काफी सहायता मिलती है, किन्तु जैसा कि विलियम के0 विमसाट का कहना है, इस पद्धति से अनुकरण की हीनार्थकता में कमी भले ही आ जाए किंतु उसका पूर्णतः निरसन नहीं हो पाया है।

सामान्य धारणा यही है कि प्लेटो कविता का निरस्कार उसकी अनुकरणधमी प्रकृति के कारण करते थे परन्तु कविता को वे अनुकरणात्मक होने के कारण नहीं, बल्कि सत्य और ज्ञान के अभाव के कारण हेय मानते थे। अनुकार्य विषय के सही ज्ञान के आधार पर किये जाने वाले अनुकरण को वे वैज्ञानिक और विद्वत्तापूर्ण अनुकरण कहते थे और अनुकरण का सत्य किसी वस्तु को गुण और परिमाण के अनुकूल प्रस्तुत करने में निहित मानते थे।